शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

ये कहाँ आ गए हम... युद्धवीर सिंह लांबा

  • युधवीर सिंह लाम्बा भारतीय
    जागो भारत जागो -:- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज (अमेरिका , इंग्लैंड) की तरह ओल्ड एज होम ????????
    भारत में बुजुर्गों के लिए नित नये आश्रम बन रहे हैं। उनके लिए घर में जगह नहीं है। अंग्रेजी शिक्षित परिवारों, सुसज्जित आधुनिक घरों और स्वार्थी लोगों में चुके हुए पुराने जमाने के मां-बाप फिट नहीं बैठते। उनकी धन-सम्पलि और जमीन-जायदाद काम की होती है। बुजुर्गों
    के प्रति ऐसा रवैया मानसिक रूप से बीमार समाज का परिचायक है। यह स्थिति सचमुच दुःखद, दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है।
    जिस जिगर के टुकड़े को पालने में मां-बाप ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, मां खुद गीले में सोई और अपने लाल को सूखे में सुलाया, लेकिन मां-बाप को जब बुढ़ापा आया तो इन जिगर के टुकड़ों को मां-बाप अखरने लगे। उनकी अनदेखी होने लगी। ऐसे मामले में भी लगातार सामने आ रहे हैं जब ये लाड़ले ही अपने मां-बाप को घर से निकाल कर ओल्ड एज होम में छोड़ आए। कई ऐसे मामले भी हैं जब इन्हीं बच्चों ने मां-बाप को घर में कैद कर लिया या फिर खुले आसमान के नीचे उन्हें अपने हाल पर आंसू बहाने के लिए छोड़ दिया।
    हमें ओल्ड एज होम की कतई भी आवश्यकता नहीं है यदि ये बढ़ रहे है तो यह हमारे मानव समाज के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है । जो माता पिता हमें ऊँगली पकर कर चलना सिखाते है उनके बुढ़ापे में हम उन्हें सम्मान के साथ रख नहीं सकते धिक्कार है हमें! मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज की तरह बुजुर्ग पीढ़ी में अकेलेपन की भावना तेजी से बढ़ रही है।
    ये वही भारत देश है जहाँ राम ने अपने वृद्ध पिता का आदेश मान कर 14 बरस वन का वास किया था, ये वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कांवर में बैठा कर तीर्थ यात्रा के लिए ले जाता है ।
    हमारी संस्कृति में सदा ही बड़े बुजुर्गों को पूजनीय माना गया है। गोस्वामी तुलसी दास ने भी रामचरित मानस में प्रात काल उठि के रघुनाथा, मात-पिता गुरु नावहिं माथा चौपाई से बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से परिवार फलता-फूलता है। हमारे वृद्धजन ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हुए समाज के हित में काम करने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए हमें अपने बड़े-बुजुर्गों का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए। इससे ही हमारी वसुधैव कुटुम्बुकम की नींव को बल मिलेगा।
    जो युवा अपने माता पिता को वृद्धाश्रमों में भेजते हैं, जो उन्हें बोझ समझते हैं कि वह कभी भी सुख नहीं पा सकते है | 'जिस माँ ने नौ महीने अपने गर्भ में पाला है आज वो दर -दर की ठोकरे खा रही है ..
    वेदों में कहा गया है की -|पिता धर्म है ,पिता स्वर्ग है तथा पिता ही तप है ,आज भारतीय युवाओं के पास अपने बुजुर्गों के लिए समय नहीं है जबकि भारतीय समाज में माता-पिता की सेवा को समस्त धर्मों का सार है |
    जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!
    जागो भारत जागो -:- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज (अमेरिका , इंग्लैंड) की तरह ओल्ड एज होम ????????

भारत में बुजुर्गों के लिए नित नये आश्रम बन रहे हैं। उनके लिए घर में जगह नहीं है। अंग्रेजी शिक्षित परिवारों, सुसज्जित आधुनिक घरों और स्वार्थी लोगों में चुके हुए पुराने जमाने के मां-बाप फिट नहीं बैठते। उनकी धन-सम्पलि और जमीन-जायदाद काम की होती है। बुजुर्गों
के प्रति ऐसा रवैया मानसिक रूप से बीमार समाज का परिचायक है। यह स्थिति सचमुच दुःखद, दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है।

जिस जिगर के टुकड़े को पालने में मां-बाप ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, मां खुद गीले में सोई और अपने लाल को सूखे में सुलाया, लेकिन मां-बाप को जब बुढ़ापा आया तो इन जिगर के टुकड़ों को मां-बाप अखरने लगे। उनकी अनदेखी होने लगी। ऐसे मामले में भी लगातार सामने आ रहे हैं जब ये लाड़ले ही अपने मां-बाप को घर से निकाल कर ओल्ड एज होम में छोड़ आए। कई ऐसे मामले भी हैं जब इन्हीं बच्चों ने मां-बाप को घर में कैद कर लिया या फिर खुले आसमान के नीचे उन्हें अपने हाल पर आंसू बहाने के लिए छोड़ दिया।

हमें ओल्ड एज होम की कतई भी आवश्यकता नहीं है यदि ये बढ़ रहे है तो यह हमारे मानव समाज के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है । जो माता पिता हमें ऊँगली पकर कर चलना सिखाते है उनके बुढ़ापे में हम उन्हें सम्मान के साथ रख नहीं सकते धिक्कार है हमें! मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज की तरह बुजुर्ग पीढ़ी में अकेलेपन की भावना तेजी से बढ़ रही है।

ये वही भारत देश है जहाँ राम ने अपने वृद्ध पिता का आदेश मान कर 14 बरस वन का वास किया था, ये वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कांवर में बैठा कर तीर्थ यात्रा के लिए ले जाता है ।

हमारी संस्कृति में सदा ही बड़े बुजुर्गों को पूजनीय माना गया है। गोस्वामी तुलसी दास ने भी रामचरित मानस में प्रात काल उठि के रघुनाथा, मात-पिता गुरु नावहिं माथा चौपाई से बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से परिवार फलता-फूलता है। हमारे वृद्धजन ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हुए समाज के हित में काम करने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए हमें अपने बड़े-बुजुर्गों का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए। इससे ही हमारी वसुधैव कुटुम्बुकम की नींव को बल मिलेगा।

जो युवा अपने माता पिता को वृद्धाश्रमों में भेजते हैं, जो उन्हें बोझ समझते हैं कि वह कभी भी सुख नहीं पा सकते है | 'जिस माँ ने नौ महीने अपने गर्भ में पाला है आज वो दर -दर की ठोकरे खा रही है ..

वेदों में कहा गया है की -|पिता धर्म है ,पिता स्वर्ग है तथा पिता ही तप है ,आज भारतीय युवाओं के पास अपने बुजुर्गों के लिए समय नहीं है जबकि भारतीय समाज में माता-पिता की सेवा को समस्त धर्मों का सार है |

जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

    मंगलवार, 27 नवंबर 2012

    चम्पादक और पुलिस संवाद.... डा अनिल पाण्डेय


    डा. अनिल पांडेय

    चम्पादक - जी, आप कैसे गिरफ्तार कर सकते हैं एक चम्पादक को...वो भी दफ्तर से...
    पुलिस अधिकारी - आपके खिलाफ़ वारंट है...
    चम्पादक - वारंट से क्या होता है...हम चम्पादक हैं...कानून वानून नहीं मानते...
    पुलिस अधिकारी - डंडा तो मानते हो कि नहीं...
    चम्पादक - देखिए ये महंगा पड़ सकता है...
    पुलिस अधिकारी -100 करोड़ हैं ही नहीं हमारे पास...2-3 लाख में आपका पेट नहीं भरेगा...क्या करोगे...चलो अब...
    चम्पादक - मेरी पहुंच बेहद ऊपर तक है...
    पुलिस अधिकारी - मेरे भी बॉस वही हैं...
    चम्पादक - सस्पैंड करवा दूंगा...
    पुलिस अधिकारी - बहुत करवा लिया...आज तो बदले का दिन है...
    चम्पादक - थाने चलो, वहीं देखते हैं...वर्दी का घमंड है...
    पुलिस अधिकारी - चलो...वर्दी उतार कर ही बात करेंगे आज रात...
    चम्पादक - अच्छा..अरे...ओह..बुरा मान गए क्या...देखो अपन तो भाई भाई हैं...
    पुलिस अधिकारी - मैं तो कभी गिरफ्तार नहीं हुआ...कैसे भाई...
    चम्पादक मालिक को फोन लगाते हैं....
    फोन पर - डायल किया गया नम्बर फिलहाल स्विच ऑफ़ है...
    चम्पादक - मरवा दिया @#$%^& ने...बोले धंधा लाओ...वाट ही लगवा दी...कहा था टिंगल टेढ़ा आदमी है...पावरप्राश के दो स्लॉट और ले आते...बाकी पांटी से बात करवा देते...कुछ ज़मीनें दिलवा देते...
    पुलिस अधिकारी - बेटा, तुमको भी तो बड़ी पड़ी थी, जल्दी चैनल हेड बनने की...जब रिपोर्टर थे...थाने आते थे...तभी से लक्षण दिखते थे...लेकिन 10-20 हज़ार की दलाली से इतनी जल्दी उड़ने की इच्छा से ये ही होना था...खिचड़ी गर्म हो तो किनारे से खाना शुरु करो...बीच से खाओगे तो मुंह जलाओगे...
    चम्पादक - अब ज्ञान न दो...मालिकवा भी फोन नहीं उठा रहा...
    पुलिस अधिकारी - चलो...क्या करना है...
    चम्पादक - रुको एक फोन और कर लें...
    (चम्पादक न्यूज़रूम में फ़ोन लगाता है...)
    चम्पादक - सुनो...हम दोनों को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है...ब्रेकिंग चलवाओ...और अगला बुलेटिन चलाओ...फोनो लो...लाइव लो...मेन एंकर को लगा दो...लोकतंत्र पर हमला...सम्पादकों की गिरफ्तारी...सरकार का मीडिया पर हमला...आज़ादी छीनने की कोशिश...मीडिया पर दबाव बनाने की कोशिश...लोकतंत्र के चौथे खंभे की नींव में पानी भरने की सरकारी साज़िश...जो जो याद आए, सारे जुमले ठेल दो...और हां एंकर लिंक लिख कर पढ़वाना...नहीं बहुत अक्खड़ एंकर है...मन से बोला तो ऐसी तैसी करवा देगा...सम्पादक की गिरफ्तारी कैसे कर सकते हैं...भले ही राष्ट्रपति की कर लें...हां याद रखना...लोगों को इमरजेंसी की याद भी दिला देना...समझे...
    पुलिस अधिकारी - बहुत हो गया...चलो रास्ते से बीयर भी लेनी है, दिल्ली में दुकान दस बजे बंद हो जाती है...बाकी बात वकील से करना...
    चम्पादक - अच्छा...वो बीयर लेना तो एक ओल्ड मॉंक का अद्धा भी ले लेना...बाकी तो लोकतंत्र की हत्या हो ही गई...ग़म ही ग़लत कर लें...
    पुलिस वाला मुस्कुराता है...
    *****************************************
    (इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है...हो तो वो खुद ज़िम्मेदार है...)

    शनिवार, 24 नवंबर 2012

    आप लोगो की इन सभी मुद्दों पर क्या राय है?--- अनिल गुप्ता


    अनिल गुप्ता
    १. POTA : यह कानून काफी सख्त कानून था आतंकवाद के खिलाफ .. यह कानून कांग्रेस ने सत्ता में आते ही हटा दिया था. आप लोगो की क्या राय है?
    २. Fertility Control act: यह कानून का असली मकसद देश की जनसँख्या को नियंत्रित करना होगा .. इस कानून के तहत एक परिवार के सिर्फ और सिर्फ २ बच्चे हो सकते है . अगर किसी भी परिवार में दो से ज्यादा बच्चे होते है तोह उसको किसी भी त
    रह की सरकारी मदद नहीं मिलेगी , न कोई सरकारी नौकरी | यह कानून इसीलिए जरुरी है क्यूंकि आज देश में संसाधन बहुत तेजी से इस्तेमाल हो रहे है और बदती जनसँख्या के कारण महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी भी बड रही है ..
    ३. Border Security: इस कानून के तहत भारत की पूरी सीमा ८ मीटर ऊँची और १ मीटर मोटी दीवार से सील कर दी जाएगी .. पूरी सीमा पर भारत के जवान होंगे , अगर कोई भी घुसपैठिया भारत की सीमा में घुसता दिखाई दे तोह सीधा गोली मारने का अधिकार होगा भारत के सैनिको के पास. यह कानून इसीलिए जरुरी है क्यूंकि आज भारत की सीमा पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है इसी कारण पडोसी देशो जैसे की बांग्लादेश और नेपाल के रस्ते पाकिस्तानी हमारे देश में घुस जाते है और आतंकवाद मचाते है .. वहीँ दूसरी ओर भारत के संसाधनों का उपयोग करके भारत को ही बर्बाद करते है , भारत का आम नागरिक संसाधनों की कमी से भी झुजता है ..
    ४. Universal Civil Code: इस कानून के तहत भारत का हर व्यक्ति समान होगा .. सबके लिए कानून एक होगा .. ना कोई हिन्दू होगा और ना ही कोई मुस्लिम होगा .. आज भारत में ऐसा कोई भी कानून नहीं है ! ..
    --------------------------------------------------------
    कृपया करके अपनी राय और अपनी टिपण्णी जरुर दे .. और अपने मित्रो के साथ भी इस लेख को शेयर करें ताकी वो भी अपनी राय रख सके |
    भारत माता की जय
    जय श्री राम.

    शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

    सरकार की दोगली नीति ... विकास पुंडीर

    विकास पुंडीर हिन्दू राष्ट्रवादी'

    ज्यादा से ज्यादा "Share" करे,ताकि हर हिन्दुस्तानी जान सके .
*******************************************
सोनिया गाँधी के "निजी मनोरंजन क्लब" यानी नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-

1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को "महसूस" होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…

(इसका मोटा अर्थ यह है कि यदि 100-200 कांग्रेसी अथवा 100-50 जेहादी तत्व किसी राज्य में दंगा फ़ैला दें तो राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी)…

2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा "बहुसंख्यकों" द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि "अल्पसंख्यक" हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…

3) यदि दंगों के दौरान किसी "अल्पसंख्यक" महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि "बहुसंख्यक" वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…

4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ "घृणा अभियान" चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…

5) "अल्पसंख्यक समुदाय" के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ "बहुसंख्यक समुदाय" ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा कर रहा है)…

इस विधेयक के तमाम बिन्दुओं का ड्राफ़्ट तैयार किया है, सोनिया गाँधी की "किचन कैबिनेट" के सुपर-सेकुलर सदस्यों एवं अण्णा को कठपुतली बनाकर नचाने वाले IAS व NGO गैंग के टट्टुओं ने… इस बिल की ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्यों के नाम पढ़कर ही आप समझ जाएंगे कि यह बिल "क्यों", "किसलिये" और "किसको लक्ष्य बनाकर" तैयार किया गया है…। "माननीय"(?) सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं - हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, तीस्ता सीतलवाड, राम पुनियानी, जॉन दयाल, शबनम हाशमी, सैयद शहाबुद्दीन… यानी सब के सब एक नम्बर के "छँटे हुए" सेकुलर… । "वे" तो सिद्ध कर ही देंगे कि "बहुसंख्यक समुदाय" ही हमलावर होता है और बलात्कारी भी…

अब यह विधेयक संसद में रखा जाएगा, फ़िर स्थायी समिति के पास जाएगा, तथा अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसे पास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सके तथा भाजपा की राज्य सरकारों पर बर्खास्तगी की तलवार टांगी जा सके…। यह बिल लोकसभा में पास हो ही जाएगा, क्योंकि भाजपा के अलावा कोई और पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी…। जो बन पड़े उखाड़ लो..

और दीजिये वोट कांग्रेस को..

जागो हिन्दुओ जागो.
आखिर कब तक सोओगे??
आखिर कब तक??
    सोनिया गाँधी के "निजी मनोरंजन क्लब" यानी नेशनल एडवायज़री

    काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
    1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को "महसूस" होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…
    (इसका मोटा अर्थ यह है कि यदि 100-200 कांग्रेसी अथवा 100-50 जेहादी तत्व किसी राज्य में दंगा फ़ैला दें तो राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी)…
    2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा "बहुसंख्यकों" द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि "अल्पसंख्यक" हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…
    3) यदि दंगों के दौरान किसी "अल्पसंख्यक" महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि "बहुसंख्यक" वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…
    4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ "घृणा अभियान" चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…
    5) "अल्पसंख्यक समुदाय" के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ "बहुसंख्यक समुदाय" ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा कर रहा है)…
    इस विधेयक के तमाम बिन्दुओं का ड्राफ़्ट तैयार किया है, सोनिया गाँधी की "किचन कैबिनेट" के सुपर-सेकुलर सदस्यों एवं अण्णा को कठपुतली बनाकर नचाने वाले IAS व NGO गैंग के टट्टुओं ने… इस बिल की ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्यों के नाम पढ़कर ही आप समझ जाएंगे कि यह बिल "क्यों", "किसलिये" और "किसको लक्ष्य बनाकर" तैयार किया गया है…। "माननीय"(?) सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं - हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, तीस्ता सीतलवाड, राम पुनियानी, जॉन दयाल, शबनम हाशमी, सैयद शहाबुद्दीन… यानी सब के सब एक नम्बर के "छँटे हुए" सेकुलर… । "वे" तो सिद्ध कर ही देंगे कि "बहुसंख्यक समुदाय" ही हमलावर होता है और बलात्कारी भी…
    अब यह विधेयक संसद में रखा जाएगा, फ़िर स्थायी समिति के पास जाएगा, तथा अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसे पास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सके तथा भाजपा की राज्य सरकारों पर बर्खास्तगी की तलवार टांगी जा सके…। यह बिल लोकसभा में पास हो ही जाएगा, क्योंकि भाजपा के अलावा कोई और पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी…। जो बन पड़े उखाड़ लो..
    और दीजिये वोट कांग्रेस को..
    जागो हिन्दुओ जागो.
    आखिर कब तक सोओगे??
    आखिर कब तक??

    गुरुवार, 22 नवंबर 2012

    डूब मरें ऐसी औलादें.... समीर सिंह

    Sameer Singh

    इसे एक बार ज़रूर पढ़े ......।।।।
    =========================================
    बात दुर्ग के रेलवे स्टेशन की है .., कल रात .,मैं ट्रेन के इंतज़ार में रेल्वे - प्लेटफार्म पर टहल रहा था .,
    एक वृद्ध महिला , जिनकी उम्र लगभग 60 - 65 वर्ष के लगभग रही होगी ., वो मेरे पास आयी और मुझसे खाने के लिए पैसे माँगने लगी ....
    उनके कपडे फटे ., पूरे तार - तार थे ., उनकी दयनीय हालत देख कर ऐसा लग रहा था की पिछले कई द

    िनों से भोजन भी ना किया हो ..
    मुझे उनकी दशा पर बहुत तरस आया तो मैंने अपना पर्स टटोला ., कुछ तीस रुपये के आसपास छुट्टे पैसे और एक हरा " गांधी " मेरे पर्स में था .,
    मैंने वो पूरे छुट्टे उन्हें दे दिए...
    मैंने पैसे उन्हें दिए ही थे ., की इतने में एक महिला ., एक छोटे से रोते - बिलखते., दूधमुहे बच्चे के साथ टपक पड़ी ., और छोटे दूधमुहे बच्चे का वास्ता देकर वो भी मुझसे पैसे माँगने लगी ... मैं उस दूसरी महिला को कोई ज़वाब दे पाता की उन वृद्ध माताजी ने वो सारे पैसे उस दूसरी महिला को दे दिए ., जो मैंने उन्हें दिए थे .... पैसे लेकर वो महिला तो चलती बनी... लेकिन मैं सोच में पड़ गया ... मैंने उनसे पूछा की-" आपने वो पैसे उस महिला को दे दिए ..??? "
    उनका ज़वाब आया -" उस महिला के साथ उसका छोटा सा दूधमुहा बच्चा भी तो था ., मैं भूखे रह लूंगी लेकिन वो छोटा बच्चा बगैर दूध के कैसे रह पायेगा ... ??? भूख के मारे रो भी रहा था ..."
    उनका ज़वाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गया .... सच ... भूखे पेट भी कितनी बड़ी मानवता की बात उनके ज़ेहन में बसी थी ....
    उनकी सोच से मैं प्रभावित हुआ ., तो उनसे यूं ही पूछ लिया की यूं दर -बदर की ठोकरे खाने के पीछे आखिर कारण क्या है ...???
    उनका ज़वाब आया की उनके दोनों बेटो ने शादी के बाद उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया ., पति भी चल बसे .., आखिर में कोई चारा न बसा ...
    बेटो ने तो दुत्कार दिया ., लेकिन वो भी हर बच्चे में अपने दोनों बेटो को ही देखती है ., इतना कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ...
    मैं भी भावुक हो गया .,मैंने पास की एक कैंटीन से उन्हें खाने का सामान ला दिया ... मैं भी वहा से फिर साईड हट गया ...
    लेकिन बार-बार ज़ेहन में यही बात आ रही थी ., की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है ., जो अपनी जन्म देने वाली माँ तक को सहारा नहीं दे सकती ...??? लानत है ऐसी संतान पर .... और दूसरी तरफ वो " माँ " ., जिसे हर बच्चे में अपने " बेटे " दिखाई देते है ....
    धन्य है " मातृत्व-प्रेम ".......

    इसे एक बार ज़रूर पढ़े ......।।।।
=========================================
बात दुर्ग के रेलवे स्टेशन की है .., कल रात .,मैं  ट्रेन के इंतज़ार में  रेल्वे - प्लेटफार्म  पर टहल रहा था ., 
एक वृद्ध महिला , जिनकी उम्र लगभग 60 - 65 वर्ष के लगभग रही होगी ., वो  मेरे पास  आयी और मुझसे खाने के लिए पैसे माँगने लगी ....  
उनके कपडे फटे ., पूरे तार - तार थे ., उनकी दयनीय हालत देख  कर ऐसा लग रहा था की पिछले कई दिनों  से  भोजन भी  ना किया हो ..
मुझे उनकी दशा पर बहुत तरस आया तो मैंने अपना पर्स टटोला ., कुछ तीस रुपये के आसपास छुट्टे पैसे और एक हरा " गांधी " मेरे पर्स में था .,
मैंने वो पूरे छुट्टे उन्हें दे दिए...

मैंने पैसे उन्हें दिए ही थे ., की इतने में एक महिला ., एक छोटे से रोते - बिलखते., दूधमुहे बच्चे के साथ टपक पड़ी ., और छोटे दूधमुहे बच्चे का वास्ता देकर  वो भी मुझसे पैसे माँगने लगी ... मैं उस दूसरी महिला को कोई ज़वाब दे पाता  की उन वृद्ध माताजी ने वो  सारे पैसे उस दूसरी महिला को दे दिए ., जो मैंने उन्हें दिए थे .... पैसे लेकर वो महिला तो चलती  बनी... लेकिन मैं सोच में पड़  गया ... मैंने   उनसे पूछा की-" आपने वो पैसे उस महिला को  दे दिए ..??? "
उनका ज़वाब आया -" उस महिला के साथ उसका छोटा सा   दूधमुहा बच्चा भी तो था ., मैं भूखे रह लूंगी लेकिन वो छोटा बच्चा बगैर दूध के कैसे रह पायेगा ... ???  भूख के मारे रो भी रहा था ..."
उनका ज़वाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गया .... सच ... भूखे पेट भी कितनी बड़ी मानवता की बात उनके ज़ेहन में बसी थी ....

उनकी सोच से मैं प्रभावित हुआ ., तो उनसे यूं  ही पूछ लिया की यूं दर -बदर की ठोकरे खाने के पीछे आखिर कारण क्या है ...???
उनका ज़वाब आया की उनके दोनों बेटो ने शादी के बाद उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया ., पति भी चल बसे .., आखिर में कोई चारा न बसा ...
बेटो ने तो दुत्कार दिया ., लेकिन वो  भी हर बच्चे में अपने दोनों बेटो को ही देखती है ., इतना कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ...

मैं भी भावुक हो गया .,मैंने  पास की एक कैंटीन से उन्हें खाने का सामान ला दिया ... मैं भी वहा  से फिर साईड  हट गया ...
लेकिन बार-बार ज़ेहन में यही बात आ रही थी ., की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है ., जो अपनी जन्म देने वाली माँ तक को सहारा  नहीं दे सकती ...??? लानत  है  ऐसी संतान   पर .... और दूसरी तरफ वो " माँ " ., जिसे हर बच्चे में अपने " बेटे " दिखाई देते है ....
धन्य है " मातृत्व-प्रेम ".........

    मंगलवार, 20 नवंबर 2012

    बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी .... संजय कुमार त्रिपाठी

    Sanjay Kumar Tripathi

    सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी

    ***खूब लड़ी मर्दानी वो तो झासी वाली रानी थी ******महारानी रानी लक्ष्मीबाई (१९ नवंबर १८२८ – १७ जून १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और१८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। इनका जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। **** सन १८४२ में इनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन १८५३ में राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु २१ नवंबर १८५३ में हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।****** बिरला मंदिर, दिल्ली में लक्ष्मीबाई का भित्ति चित्रडलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थे, को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया, तथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया। इसके साथ ही रानी को झाँसी के किले को छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हर कीमत पर झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था।झाँसी का युद्ध*****१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट, जिसमें लक्ष्मीबाई का चित्र है।*****झाँसी १८५७ के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया।*****१८५७ के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। १८५८ के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया. 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लढ़ते-लढ़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई. लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और "विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक" थीं।

    जय महाकाल......जय श्री राम........

    सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।   चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी

***खूब लड़ी मर्दानी वो तो झासी वाली रानी थी ******महारानी रानी लक्ष्मीबाई (१९ नवंबर १८२८ – १७ जून १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और१८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। इनका जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। **** सन १८४२ में इनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन १८५३ में राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु २१ नवंबर १८५३ में हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।****** बिरला मंदिर, दिल्ली में लक्ष्मीबाई का भित्ति चित्रडलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थे, को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया, तथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया। इसके साथ ही रानी को झाँसी के किले को छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हर कीमत पर झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था।झाँसी का युद्ध*****१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट, जिसमें लक्ष्मीबाई का चित्र है।*****झाँसी १८५७ के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया।*****१८५७ के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। १८५८ के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया. 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लढ़ते-लढ़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई. लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और "विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक" थीं।
जय महाकाल......जय श्री राम........

    तक्षशिला विश्वविद्यालय --- भारत गौरव गाथा

    Sanjay Kumar Tripathi

    ‎'तक्षशिला विश्वविद्यालय'वर्तमान पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था। आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी। शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे। परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी। चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छ: माह का शोध कार्य करना पड़ता था। इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री मिलती थी।
    * यह विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी।
    * तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे।
    * यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था।
    * 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के'चिकित्सा शास्त्र'का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था।
    आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र
    500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला'आयुर्वेद विज्ञान'का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतड़ियों तक का ऑपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था। शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे। इनकी संख्या प्राय: सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी। अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था। छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था।
    शुल्क और परीक्षा
    शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उससमय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी। धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की। इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे। चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे। विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफ़ी क्षति पहुंचाई। अंतत: छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया।
    पाठ्यक्रम
    * उस समय विश्वविद्यालय कई विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध करता था, जैसे - भाषाएं , व्याकरण, दर्शन शास्त्र , चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, कृषि , भूविज्ञान, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान, समाज-शास्त्र, धर्म , तंत्र शास्त्र, मनोविज्ञान तथा योगविद्या आदि।
    * विभिन्न विषयों पर शोध का भी प्रावधान था।
    * शिक्षा की अवधि 8 वर्ष तक की होती थी।
    * विशेष अध्ययन के अतिरिक्त वेद , तीरंदाजी, घुड़सवारी, हाथी का संधान व एक दर्जन से अधिक कलाओं की शिक्षा दी जाती थी।
    * तक्षशिला के स्नातकों का हर स्थान पर बड़ा आदर होता था।
    * यहां छात्र 15-16 वर्ष की अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
    स्वाभाविक रूप से चाणक्य को उच्च शिक्षा की चाह तक्षशिला ले आई। यहां चाणक्य ने पढ़ाई में विशेष योग्यता प्राप्त की
    जय महाकाल !!
    जय जय श्री राम !!
    जय सनातन सेना......................

    'तक्षशिला विश्वविद्यालय'वर्तमान पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था। आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी। शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे। परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी। चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छ: माह का शोध कार्य करना पड़ता था। इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री मिलती थी।

* यह विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी।

* तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे।

* यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था।

* 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के'चिकित्सा शास्त्र'का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था।

आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र 

500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला'आयुर्वेद विज्ञान'का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतड़ियों तक का ऑपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था। शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे। इनकी संख्या प्राय: सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी। अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था। छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था।

शुल्क और परीक्षा 

शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उससमय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी। धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की। इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे। चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे। विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफ़ी क्षति पहुंचाई। अंतत: छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया।

पाठ्यक्रम

* उस समय विश्वविद्यालय कई विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध करता था, जैसे - भाषाएं , व्याकरण, दर्शन शास्त्र , चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, कृषि , भूविज्ञान, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान, समाज-शास्त्र, धर्म , तंत्र शास्त्र, मनोविज्ञान तथा योगविद्या आदि।

* विभिन्न विषयों पर शोध का भी प्रावधान था।

* शिक्षा की अवधि 8 वर्ष तक की होती थी।

* विशेष अध्ययन के अतिरिक्त वेद , तीरंदाजी, घुड़सवारी, हाथी का संधान व एक दर्जन से अधिक कलाओं की शिक्षा दी जाती थी।

* तक्षशिला के स्नातकों का हर स्थान पर बड़ा आदर होता था।

* यहां छात्र 15-16 वर्ष की अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने आते थे। 

स्वाभाविक रूप से चाणक्य को उच्च शिक्षा की चाह तक्षशिला ले आई। यहां चाणक्य ने पढ़ाई में विशेष योग्यता प्राप्त की

जय महाकाल !!
जय जय श्री राम !!

जय सनातन सेना......................

    बुधवार, 14 नवंबर 2012

    मुसलमान :राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान…..शंखनाद धर्म और राजनीति

    यह बात तो सब जानते है कि भारत के मुसलमान "वन्दे मातरम "का विरोध करते हैं .उनका तर्क है की , वह अल्लाह के सिवा किसी की स्तुति या वंदना नहीं कर सकते है .यह इस्लाम केविरुद्ध है.ऐसा उनका तर्क है .भारत में लगभग 19370 मदरसे चल रहे हैं ,और सबको सरकार से मदद मिलाती है .लेकिन आपने आजतक किसी मदरसे में नहीं देखा होगा कि 26 जनवरी और 15 अगस्त जैसे राष्ट्रिय पर्वों पर वहां स

    म्मान पूर्वक राष्ट्र ध्वज फहराया गया हो ,और राष्ट्र गान गाया गया हो .मुसलमान इसे गुनाह मानते हैं .कुछ समय पूर्व एक फतवा पढ़ने को मिला था ,जिसमे ,लोगों ने मुल्लों से पूछा था कि ,क्या राष्ट्र गान गाना और राष्ट्र ध्वज का सम्मान करना इस्लाम में जायज है ?उत्तर के रूप में जो फतवा दिया गया है ,उसके मुख्य अंश हिंदी और अंगरेजी में दिए जा रहे हैं .साथ में कुरान कि उन आयतों ,और हदीसों के अरबी में हवाले भी दिए जा रहे हैं ,जिनके अधर पर इसे हराम करार दिया गया .
    यह फतवा गुरुवार दिनांक -23 दिसंबर 2010 को "फतवा अल जन्नाह अल दायमा "ने जारी किया है ,जिसे ई मेल से भारत भेजा गया था .
    111877 -Thu 17/1/1432 - 23/12/2010 Basic Tenets of Faith
    Respect for the national anthem or flag" احترام النشيد الوطني او العلم"
    What is the ruling on standing when the national anthem is played, or when the flag is saluted?.
    Praise be to Allaah.- الحمد لله .
    Firstly:
    पहिली बात यह है कि ,राष्ट्र गान को गाना और सुनना हराम है !
    Playing or listening to national anthems is haraam.
    This has been discussed in the answer to question no. 5000 and 20406. It makes no difference whether what is played is songs or the national anthem or anything else.
    सवाल संख्या 5000 और 20406 पर विमर्श के बाद तय किया कि चाहे राष्ट्र गान हो ,या कोई और उस से कोई फर्क नहीं होता .
    Secondly:
    दूसरी बात यह है कि , विनम्रता से खड़ा होना है ,जो सर्फ अल्लाह के लिए ही होना चाहिए
    Standing by way of humility and veneration is not befitting unless it is done for Allaah.
    الدائمة عن طريق التواضع والتعظيم لا يليق إلا إذا تم القيام به من أجل الله
    Allaah says (interpretation of the meaning):
    “And stand before Allaah with obedience”
    इस आयत में स्पष्ट किया गया है कि ,"अल्लाह के आगे पूरे भक्ति और विनय भाव से खड़े हो" .सूरा -बकरा 2 :238
    والوقوف بين يدي الله مع طاعة
    al-Baqarah 2:238].
    और जिस दिन रूह और फ़रिश्ते पंक्तिबद्ध होकर खड़े होंगे ,वे बोलेंगे नहीं ,सिवाय उस व्यक्ति के ,जिसे रहमान अनुज्ञा दे दे .
    Allaah has said that because of His greatness and majesty, the greatest of creation (the angels) will stand for Him on the Day of Resurrection and no one will speak until after Allaah has given him permission. He says (interpretation of the meaning):
    “The Day that Ar‑Rooh [Jibreel (Gabriel)
    يَوْمَ يَقُومُ الرُّوحُ وَالْمَلَائِكَةُ صَفًّا لَّايَتَكَلَّمُونَ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرحْمَنُ وَقَالَ صَوَابًا
    [al-Naba’ 78:38].
    जो कोई किसी अल्लाह के द्वारा पैदा की गयी किसी भी चीज के आगे खड़े होकर वैसा आदर प्रकट करे ,जिसका हक़ सिर्फ अल्लाह को है ,तो रसूल ने कहा जो भी किसी मनष्य के आगे खड़ा होगा तो उसका स्थान जहन्नम में होगा .
    The one who claims that there is any created being for whom one should stand out of respect have given that created being one of the rights of Allaah.
    Hence the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) said:
    “Whoever likes men to stand up for him, let him take his place in Hell.”
    "من يحب الرجال على الوقوف له ، فليتبوأ مقعده من النار
    Narrated by al-Tirmidhi (2755);
    classed as saheeh by al-Albaani in Saheeh al-Tirmidhi. That is because this is part of the might and pride that belongs only to Allaah.
    وذلك لأن هذا هو جزء من القوة والعزة التي ينتمي فقط إلى الله تعالى
    See: Tafseer al-Tahreer wa’l-Tanweer by al-Taahir ibn ‘Ashoor (15/51).
    जब खलीफा अल महदी रसूल की मस्जिद में दाखिल हुए तो उनके आदर में सब खड़े हो गए ,सिवाय इमरान इब्न अबी जई के .लोगों ने कहा खड़े हो जाओ यह अमीरुल मोमिनीन हैं ,उन्होंने कहा लोगों को सिर्फ दुनिया के मालिक के आगे खड़ा होना चाहिए .तुम चाहे मेरे बाल पकड कर मुझे खड़ा कर लो .
    The caliph al-Mahdi entered the Mosque of the Messenger of Allaah (peace and blessings of Allaah be upon him) and the people all stood up for him except Imam Ibn Abi Dhi’b. It was said to him: Stand up; this is the Ameer al-Mu’mineen. He said: The people should only stand up for the Lord of the Worlds.
    Al-Mahdi said: Let him be, for all the hairs of my head have stood on end.
    Siyar A’laam al-Nubala’ (7/144).
    The scholars of the Standing Committee were asked: Is it permissible to stand to show respect to any national anthem or flag?
    They replied: فلا يجوز للمسلم أن يقف احتراما لأي النشيد الوطني أو العلم
    सलमानों को यह इजाजत नहीं है कि राष्ट्र ध्वज के आगे खड़े होकर उसका आदर करें और राष्ट्रगान गायें ,चाहे उस समारोह में राष्ट्रपति भी क्यों न हो .
    It is not permissible for the Muslim to stand out of respect for any national anthem or flag, rather this is a reprehensible innovation which was not known at the time of the Messenger of Allaah (peace and blessings of Allaah be upon him) or at the time of the Rightly-Guided Caliphs (may Allaah be pleased with them), and it is contrary to perfect Tawheed and sincere veneration of Allaah alone. It is also a means that leads to shirk and is an imitation of the kuffaar in their reprehensible customs, and following them in their exaggeration about their presidents and in their ceremonies. The Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) forbade imitating them.
    فلا يجوز للمسلم أن يقف احتراما لأي النشيد الوطني أو العلم، بل هو من البدع المنكرة التي لم تكن معروفة في عهد رسول الله صلى الله عليه وعليه وسلم) أو في زمن الخلفاء الراشدين رضي الله عنهم)، وأنها منافية لكمال التوحيد والتبجيل خالص لله وحده. وهي أيضا وسيلة تؤدي إلى الشرك وتشبها بالكفار في عادتهم القبيحة ، ومجاراة لهم في غلوهم نظرهم حول رؤسائهم واحتفالات. وقد نهى النبي صلى الله عليه وس "
    And Allaah is the Source of strength; may Allaah send blessings and peace upon our Prophet Muhammad and his family and companions. End quote.
    Fataawa al-Lajnah al-Daa’imah فتاوى اللجنة الدائمة آل
    (1/235).
    والله أعلم
    And Allaah knows best.
    यही कारण है कि ,मुसलमानमें राष्ट्र भक्ति का आभाव है ,और वे राष्ट्रगान और तिरंगा का आदर नहीं करते .मुसलमानों का रिमोट मुल्लों के हाथों
    में होता है .यह खुराफाती मुल्ले चुपचाप फतवों से उनको भड़काते रहते हैं .लेकिन जब चाहे अपने अधिकारों कि बात करते रहते हैं .और हमारी सरकारें वोट कि खातिर उनके लिए खजाने खोल देती है .

    मंगलवार, 6 नवंबर 2012

    जानिए हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड मे 108 के महत्व को ... कुमार सतीश

    Kumar Satish530971_351578671604473_122949046_n

    हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!
    लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????
    दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया

    था l
    आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).
    अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :
    1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ
    150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)
    2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ
    1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
    सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .
    3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
    384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
    पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .
    4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .
    क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .
    5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .
    1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास
    6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .
    1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)
    7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ
    8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ
    9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)
    1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल
    @@@@ उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,
    1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को
    0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती
    8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
    अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .
    इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है..... ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.
    जय महाकाल...!!!
    साभार:राजन सिंह