सोमवार, 24 दिसंबर 2012

तस्वीर के कई पहलू हैं ...

Rajiv Chaturvedi shared Gunjan Mishra's photo.
‎"मत भूलिए कि दामिनी के प्रसंगवश चल रही बहस दिल्ली के पुलिस कोंस्टेबिल सुभाष तोमर की मौत की बजह से दागदार हो चुकी है . सुभाष तोमर भी भारत का ही नागरिक था . समाज को सम्यकता में देखिये और देखिये गरीब नहीं ...मध्यम वर्ग बल्कि अभिजात्य वर्ग की औरतें नंगई पर आमादा हैं .समाज में कामुकता कौन परोस रहा है ?...कामोद्दीपन कौन कर रहा है ? हर बलात्कारी ...गली मोहल्ले के लुच्चे कामुक लफंगे से तो निपटा ही जाए पर समाज में पूनम पांडे और राखी सामंतों ,मल्लिका शेहरावतों से भी लगे हाथों निपटा जाए . चूंकि पुरुष "बहिरंग" होता है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी बहिरंग होती हैं और स्त्री स्वभाव से " अन्तरंग" होती है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी अन्तरंग होती हैं . हम जैसा समाज तैयार करते हैं वैसा ही भोगते हैं ...अभी हाल ही की दिल्ली की घटना नहीं घटनाओं पर गौर करें ...वह जो कामुक पुरुष कुत्तों जैसे सड़क पर गली चौराहों पर लार टपकाते महिलाओं को हवसी निगाहों से ताकते हैं ....वह कुत्तों जैसे पुरुष किन कुतियों के बेटे हैं ?...किन कुतियों के प्रेमी हैं ?...और उन लडकीयों /महिलाओं पर भी गौर करें जो कल नारे लगा रही थीं --"देखने वाले तेरी नज़रों में ही पाप है / मेरी स्कर्ट से ऊंची मेरी आवाज़ है " क्या कहना चाहती हैं वह ? ...यही न कि "जैसे -जैसे उनकी आवाज़ ऊपर उठेगी उनकी स्कर्ट भी और ऊपर उठ जायेगी " ...कहा तो यह जाना चाहिए था --"देखने वाले तेरी नज़रों में "भी" पाप है / मेरी स्कर्ट से ऊंची मेरी आवाज़ है" पर इसमें तो दोष की साझेदारी हो जाती . ...बलात्कार हो जाने के बाद पुलिस /सरकार की भूमिका होती है पर बलात्कार की घटनाएं न हों इसमें सरकार की नहीं समाज की भूमिका होती है ...क्या हमारा समाज यह भूमिका निभा रहा है ? क्या आवारा कुकुरनुमा लड़कों से उनके माता -पिता पूछते हैं उनकी आवारगी के रहस्य ...क्या उनकी अदाओं पर परिवार सेंसर बोर्ड की तरह काम करता है ? ...क्या माता -बहने उनको संस्कार देती हैं ? ...क्या कंजूस कपड़ों के वाबजूद उनमें खिड़की -रोशनदान बनवाये लडकी जब कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए जब पढ़ने जाती है तो माँ पूछती है कि पढने जा रही हो या कैबरे करने ? जब घर-परिवार अपने आंतरिक दायित्व में असफल हो जाता है तो समाज सेंसरबोर्ड की तरह सलीके से रहने की आचार संहिता लागू करता है ...तब चिल्ल-पों होती हैं सोसल पुलिसिंग/खाप गलत है ...कुत्तेनुमा आवारा पुरुषों की बातें तो होगई पर ताली तो दोनों हाथ से बजती है .... कुतियानुमा स्त्रीयों की भी बात तो हों नहीं तो बात एक पक्षीय ही रह जायेगी . कहा जारहा है कि समाज के 50% पुरुष चरित्रहीन हैं ...हो भी सकते हैं ...मान लिए हैं ...अब समझ लें --एक चरित्रहीन पुरुष के कम से कम दो स्त्रीयों से सम्बन्ध होना जरूरी है ...अब बताएं अगर 50% पुरुष चरित्रहीन है तो शत प्रतिशत स्त्रीयां भी तो चरित्रहीन हुईं ---इसलिए ऐसे वीभत्स तर्क न दें ...लडकियां "हौट" और "सेक्सी" अपनी प्रसंशा मानती हैं ...तो कितनी हौट और कितनी सेक्सी की पैमाइश कैसे होगी ? "...Guy with an attitude" लड़कियों में प्रचलित जुमला है ...किस बात का attitude ? प्रख्यात दार्शनिक राखी सामंत कहती हैं -"Rape is sex in surprise" एक अन्य विदुषी रीना जैन कहती हैं --"Virginity is just lack of opportunity. " --- इस समाज पर श्यापा नहीं कीजिये इसे सुधारिए ...यह हमारा आपका समाज है इसे हमने गंदा किया है ... इसे हम ही साफ़ करेंगे ." ---- राजीव चतुर्वेदी
प्रदर्शन का यह तरीका ठीक नहीं है ।कृपया बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन करे न की अंग प्रदर्शन । इस तरह के प्रदर्शन से भारतीय संस्कृति शर्मसार हो रही है । यह तरीका विरोध जताने का नहीं बल्कि अश्लीलता परोसने का है । इसलिए आप लोगो से मेरा विनम्र अनुरोध है की प्रदर्शन के लिए दुसरे तरीको को अपनाएं ।
प्रदर्शन का यह तरीका ठीक नहीं है ।कृपया बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन करे न की अंग प्रदर्शन । इस तरह के प्रदर्शन से भारतीय संस्कृति शर्मसार हो रही है । यह तरीका विरोध जताने का नहीं बल्कि अश्लीलता परोसने का है । इसलिए आप लोगो से मेरा विनम्र अनुरोध है की प्रदर्शन के लिए दुसरे तरीको को अपनाएं
राजीव दीक्षित की पोस्ट से साभार ....

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

लो... अब खाओ विदेशी राशन.... डा0 प्रवीण तोगड़िया

  • Pravin Togadia
    लो! अब खाओ आलू गेहू अमरिका के, लहसून चीन का, टोमेटो यूरोप के, कुकर की १० सीटियाँ करके भी न गलने वाली कड़क प्लास्टिक जैसी दाल कोरिया की, चावल प्याज पाकिस्तान का, शिमला मिर्च इटाली की और पता नहीं क्या क्या कहाँ कहाँ का! साडी सी पिन तक चीन से आती है, प्लास्टिक की डिब्बी भी चीन कोरिया से आती है, रीबोक वाले शूज की लेस भी इंडोनेशिया में बनवा लेते हैं, प्रोक्टर एंड गेम्बल वाले सेनिटरी नेप्किंस, विक्स तक इ
    म्पोर्ट कर यहाँ बेचते हैं, केलोग्स कोर्न फ्लेक्स वाले मकई के दाने बाहर से लाते हैं. इन सभी की घाटा सहने की शक्ति भारत के छोटे दुकानदारों और उत्पादकों से अधिक है. केलोग्स वाले भारत में आये तब उन्होंने प्रेस में कहा था - हम १३ वर्ष घाटा सह सकते हैं, लेकिन भारतीयों की सुबह के नाश्ते की आदतें बदलकर ही रहेंगे. आज शहरों के कई लोग इडली, पोहा, पराठा, पूरी -कचोडी जलेबी समोसा छोड़ कोर्न फ्लेक्स खाकर शाला. ऑफिस जाते हैं. जिस देश में भूखमरी से मरनेवालों का प्रमाण २८% हो, छोटे किसानों का प्रमाण ७०% हो (जिनसे विदेशी खुर्दा बझार वाले कुछ नहीं खरीदते) उस देश में देश की परंपरागत यशदायी अर्थनीति त्याग कर देश को देखते हैं कहाँ ले जा रहे हैं. कोई जापान से ट्रेनें लाने जा रहे हैं, कारें लाने जा रहे हैं तो कोई खुर्दा बझार में विदेशी पूंजी! प्रगति अच्छी होती हैं जो सभी गरीबों को भी को साथ ले. अब विदेशी कब भारत के आम आदमी को साथ लेकर चले हैं, यह नहीं जानते हम. सेवा नहीं, व्यवसाय कर मुनाफा करने आ रहे हैं. भारत के किसान को बहुत रुपये मिलेंगे कहती है सरकार. देखते हैं कितना सच कहती है - या बाकी सभी वादों जैसा यह भी खोखला वादा. सुषमाजी ने बहुत अनुसंधान कर अच्छी तरह से इस विषय पर पक्ष रखा था. राजनीति और देश का कल्याण दोनों साथ साथ चलते तो आज सुषमा जी ने लाया हुआ प्रस्ताव नहीं गिरता. अब बेहतर यही है की बड़े बड़े विदेशी दुकानों की चमक दमक से बहक कर वहाँ खरीदारी न करे और अपने पास वाले हमेशा के किराना 'अंकल' से ही वस्तुएँ खरीदें. चाहे तो वालमार्ट, कोसको, केरिफोर के एयर कंडिशन में घुमने चले जाइए लेकिन खरीदें अपने हमेशा के किराना दूकान से - कीमत तो वे भी आप के लिए कम करते हैं, महीनो महीनो बिल न दो तो रुकते हैं. सोचियेगा! सबसे बेहतर है की अब हिंदू राष्ट्र की ओर ही चलियेगा!