शुक्रवार, 8 मार्च 2013

आधार कार्ड निराधार कवायद



दिशाहीनता जब हद से गुजर जाए, तो उसे मूर्खता ही कहा जाता है. यूआईडी यानी आधार कार्ड के मामले में यूपीए सरकार ने दिशाहीनता की सारी सीमाएं अब लांघ दी हैं. आधार कार्ड पर हज़ारों करोड़ रुपये सरकार ने ख़र्च कर दिए. कांग्रेस पार्टी ने डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का स्कीम इस कार्ड से जोड़ने का ऐलान कर दिया. कई झूठे वायदे कर लोगों को गुमराह करने में भी पीछे नहीं रही सरकार. देश के करोड़ों लोगों ने अपनी आखों की पुतली के अलावा और न जाने क्या-क्या जमा करा दिया और कैबिनेट मंत्रियों को यह भी पता नहीं है कि आधार स़िर्फ एक नंबर है या यह किसी कार्ड का नाम है. अब सवाल यह है कि वर्ष 2009 से यूआईडी कार्ड पर काम चल रहा है और अब इतने दिनों बाद देश के कई महान मंत्री यह कहें कि उन्हें यूआईडी या आधार के बारे में सही जानकारी नहीं है, तो ऐसी कैबिनेट को कौन सा ईनाम दिया जाए. ऐसी सरकार को क्या संज्ञा दी जाए. इसके अलावा यूआईडी को लेकर एक बिल संसद में लंबित है. अगर यह बिल पास हो गया, तो यूआईडीएआई को वैधता मिल जाएगी, लेकिन संसदीय समिति ने इस बिल को नकार दिया है. यह पता नहीं है कि यह बिल पास हो पाएगा या नहीं. यह भी पता नहीं है कि जब तक यह बिल पास हो, तब तक यूपीए की सरकार रहेगी या नहीं. कर्नाटक हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज यूआईडी की कमियां और इसके ग़ैरक़ानूनी पहलू को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं. इस केस की सुनवाई स्वयं अल्तमस कबीर कर रहे हैं. चौथी दुनिया पिछले तीन साल से यूआईडी या आधार कार्ड के ख़तरों से अपने पाठकों को अवगत कराता रहा है. आज यह स्कीम इस मुकाम पर पहुंच गया है, जहां यूआईडी या आधार कार्ड के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग गया है और दूसरी तरफ यूपीए सरकार है, जो क़ानूनों को ताक पर रखने की ज़िद पर अड़ी है.
पिछले दिनों हुए कैबिनेट मीटिंग में यह एक बहस का मुद्दा बन गया कि यह आधार कार्ड है या कोई नंबर. इस कैबिनेट मीटिंग में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, समाज कल्याण मंत्री कुमारी शैलजा, हैवी इंडस्ट्री मंत्री प्रफुल्ल पटेल और रेलमंत्री पवन बंसल ने यूआईडी पर सवाल उठाए. हैरानी की बात यह है कि यूआईडी पर उठे सवालों को सुलझाने के लिए इस बैठक में एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर का गठन किया गया, जो आधार से जुड़े सवालों पर जबाव तैयार करेगी. अब सवाल यह है कि यह ग्रुप ऑफ मिनिस्टर क्या करेगी, क्योंकि देश में आधे लोगों का कार्ड बन गया है, कई लोग आधार कार्ड लेकर घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, इसमें दूसरा कंफ्यूजन भी है. नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रार भी एक दूसरा कार्ड धड़ल्ले से बना रही है. यह एनपीआर कार्ड और आधार कार्ड में क्या फ़़र्क है, यह किसी को पता नहीं है और न ही कोई बता रहा है. इसके बावजूद सरकार लगातार यह अफ़वाह फैला रही है कि डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब कैबिनेट मिनिस्टर तक को इस स्कीम के बारे में पता नहीं है, तो यह सरकार देश की जनता को क्या बता पाएगी. इस बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया यूआईडी के बचाव में कूदे. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि आधार कोई कार्ड नहीं, बल्कि एक नंबर है, लेकिन यूआईडी के एक प्रचार को हम आपके सामने पेश कर रहे हैं, जिसमें साफ़- साफ़ यह लिखा है कि आधार एक कार्ड है. इस प्रचार में यह लिखा है कि मेरे पास आधार कार्ड है. इसके अलावा इसी प्रचार में हर व्यक्ति के हाथ में एक कार्ड है. हैरानी होती है कि देश चलाने वालों ने एक स्कीम को लेकर पूरे देश में तमाशा खड़ा कर दिया है और ख़ुद को हंसी का पात्र बना दिया. हालांकि सवाल यह है कि यूआईडी को लेकर, अब तक सरकार सारे कामकाज को क्यों गोपनीय रखा है. इस स्कीम में आख़िर ऐसी क्या बात है, जिसकी वजह से सरकार सारे नियम क़ानून को ताक पर रख दिया है. सरकार अजीबो-ग़रीब तरी़के से काम करती है. केंद्रीय सरकार ने यूआईडी/आधार नंबर को प्रॉविडेंट फंड के ऑपरेशन के लिए अनिवार्य बना दिया है, जबकि अब तक इसके लिए कोई क़ानूनी आदेश जारी नहीं किया गया है. मतलब यह कि इस कार्ड को प्रॉविडेंट फंड के लिए ग़ैरक़ानूनी तरी़के से अनिवार्य बना दिया गया है. हैरानी की बात यह है कि इसकी वेबसाइट पर आज भी यह लिखा हुआ है कि यह कार्ड स्वेच्छी है, यानी वॉलेनटरी है. इसका मतलब तो यही हुआ कि यूआईडी को लेकर सरकार कोई क़ानून नहीं बनाएगी, लेकिन अपने अलग- अलग विभागों में इसे अनिवार्य कर देगी. यहां ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि यूआईडी तो सिर्फ देश के आधे हिस्से में लागू किया गया है और बाकी हिस्से में एनपीआर कार्ड बनेगा, तो फिर ऐसी स्थिति में आधार कार्ड को प्रॉविडेंट फंड जैसे स्कीम में अनिवार्य कैसे किया जा सकता है. और अगर सरकार इसे पीएफ में अनिवार्य करना चाहती है, तो जिन राज्यों में आधार कार्ड नहीं बनेगा, वहां किस कार्ड को वैध माना जाएगा. सरकार ने यूआईडी के नाम पर ऐसा चक्रव्यूह बना दिया है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब देश के सारे मज़दूर यूआईडी कार्ड पर ही निर्भर हो जाएंगे. यूआईडी/आधार कार्ड के फार्म के कॉलम नंबर ९ में एक अजीबो-ग़रीब बात लिखी हुई है. इसे एक शपथ के रूप में लिखा गया है. कॉलम 9 में लिखा है कि यूडीआईएआई को उनके द्वारा दी गई सारी जानकारियों को किसी कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियों को देने में उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं है. इस कॉलम के आगे हां और ना के बॉक्स बने हैं. दरअसल, इस हां और ना का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि फॉर्म भरने वाले लोग हां पर टिक लगा देते हैं. बंगलुरु में यूआईडीएआई के डिप्टी चेयरमैन ने यह घोषणा की, यूडीआईएआई पुलिस जांच में लोगों की जानकारी मुहैया कराएगा. सवाल यह है कि क्या पुलिस एक कल्याणकारी सेवा करने वाली एजेंसी है. समस्या यह है कि इस फॉर्म पर कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियों के नाम ही नहीं हैं. इसका मतलब यह है कि यूआईडीएआई जिसे भी कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियां मान लेगी, उसके साथ लोगों की जानकारियां शेयर कर सकती हैं. यानी एक बार लोगों ने अपनी जानकारियां दे दी, तो उसके बाद उन जानकारियों के इस्तेमाल पर लोगों का कोई अधिकार नहीं रह जाएगा. दरअसल, इन जानकारियों को सरकार सेंट्रलाइज्ड आईडेंटिटी डाटा रजिस्टर (सीआईडीआर) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रार के लिए जमा इसलिए कर रही है, ताकि पूरे देश के लोगों का एक डाटा बेस तैयार हो सके, लेकिन इसका एक ख़तरनाक पहलू भी है. इन जानकारियों को बायोमैट्रिक टेक्नोलॉजी कंपनियों को दे दिया जाएगा, क्योंकि यूआईडीएआई ने इन जानकारियों को ऑपरेट करने का ठेका निजी कंपनियों को दे दिया है. इन कंपनियों में सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज (सेगेम मोर्फो), एल 1 आईडेंटिटी सॉल्युशन, एसेंचर आदि हैं. जैसा कि चौथी दुनिया में पहले भी बताया जा चुका है कि इन कंपनियों के तार अमेरिका की ख़ुफिया एजेंसी के अधिकारियों से जुड़ी हुई है, इसलिए यह मामला और भी गंभीर हो जाता है. सरकार न तो संसद में और न ही मीडिया में यह साफ़ कर पाई है कि ऐसी क्या मजबूरी है कि देश के लोगों की जानकारियां ऐसी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है, जिनका बैकग्राउंड न स़िर्फ संदिग्ध हैं, बल्कि ख़तरनाक भी है. अब यह समझ में नहीं आता है कि मनमोहन सिंह की सरकार यूआईडीएआई और उसके चेयरमैन नंदन नेलकानी को लेकर इतनी गोपनीयता क्यों बरत रही है. सारे क़ायदे क़ानून को ताक पर रखकर सरकार उन्हें इतना महत्व क्यों दे रही है. इसका क्या राज है. 2 जुलाई, 2010 को यूआईडीएआई की तरफ से बयान जारी होता है कि कैबिनेट सेक्रेटेरिएट में चेयरमैन की नियुक्ति का फैसला ले लिया गया है. योजना आयोग 2 जुलाई, 2009 के नोटिफिकेशन में यह बताया गया कि सक्षम प्राधिकारी यानी कॉम्पीटेंट अथॉरिटी के द्वारा यह पारित किया गया है कि नंदन नेलकानी, इंफोसिस के को-चेयरमैन, को यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया का अगले पांच साल तक चेयरमैन रहेंगे. यहां दो चूक हुई. उन्हें यूआईडी का चेयरमैन उस वक्त बनाया गया, जब वह इंफोसिस के को-चेयरमैन की कुर्सी पर विराजमान थे. मतलब यह कि कुछ समय के लिए वे यूआईडीएआई के साथ-साथ इंफोसिस के को-चेयरमैन बने रहे. अगर कोई दूसरा होता, तो वह दोनों जगहों से जाता. ग़ौरतलब है कि सोनिया गांधी को ऐसी ही ग़लती की वजह से त्यागपत्र देना पड़ा था, लेकिन नेलकानी का बाल भी बांका नहीं हुआ. दूसरी ग़लती यह कि नंदन नेलकानी ने कोई गोपनीयता की शपथ भी नहीं ली, जैसा कि हर कैबिनेट मंत्री को लेना होता है, लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया. सरकार ने देश के सभी नागरिकों की गुप्त जानकारियों को उनके हाथ सौंप दिया. अब तो मनमोहन सिंह ही बता सकते हैं कि नेलकानी पर इतना भरोसा करने की वजह क्या है. वैसे यह भी जानना ज़रूरी है कि भारत में किसी भी व्यक्ति के बायोमैट्रिक को कलेक्ट करना क़ानूनी रूप से ग़लत है, लेकिन सरकार ने नंदन नेलकानी साहब के लिए खुली छूट दे रखी है. नंदन नेलकानी और यूपीए सरकार ने यूआईडी को लेकर जितने भी दावे किए, वे सब झूठे साबित हुए. नंदन नेलकानी का सबसे बड़ा दावा यह था कि इसका डुप्लीकेट नहीं बन सकता. कहने का मतलब कि यह कार्ड इस तरह के तकनीकी से युक्त है, जो इसे फुलप्रूफ बनाता है, लेकिन यह दावा खोखला साबित हुआ. अब इस तरह की शिकायतें आने लगी हैं, जिससे यह पता चलता है कि यह न तो फुलप्रूफ है और इसका डुप्लीकेशन भी पूरी तरह संभव है. अब नंदन नेलकानी को यह भी जबाव देना चाहिए कि उन्होंने देश के सामने झूठे वायदे क्यों किए और लोगों को गुमराह क्यों किया. वैसे शर्मसार होकर यूआईडीएआई ने इन गड़बड़ियों पर जांच के आदेश दे दिए हैं. अब तक 300 ऑपरेटरों को स़िर्फ महाराष्ट्र में ब्लैकलिस्ट किया जा चुका है, जिनमें 22 ऑपरेटर मुंबई में स्थित हैं. दिसंबर 2012 में यूआईडीएआई क़रीब 3.84 लाख आधार नंबर कैंसिल कर चुकी है, क्योंकि वे नंबर फर्जी थे. नंदन नेलकानी के बड़े-बड़े वायदों की सच्चाई यह है कि अभी आधार कार्ड का काम सही ढंग से शुरू भी नहीं हो पाया और गड़बड़ियां शुरू हो गई हैं. यूपीए सरकार वही सरकार है, जिसने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जब अन्ना हजारे ने जनलोकपाल के लिए अनशन किया था, तो चीख-चीखकर कहा था कि क़ानून सड़क पर नहीं बनते. यह काम संसद का है. संसद में क़ानून बनाने की एक प्रक्रिया है, लेकिन जब बात यूआईडी यानी आधार कार्ड की आई, तो सरकार ने सारे नियम क़ानून को ताक पर ऱख दिया. यूआईडी के लिए क़ानून संसद में तो नहीं बनी, लेकिन लगता है यूआईडी के सारे नियम किसी ड्राइंग रूम में दोस्तों के बीच बनाया गया है. देश में धड़ल्ले से आधार कार्ड बनाए ज़रूर गए, लेकिन सरकार ने इस बात की ज़रूरत भी नहीं समझी कि इस बाबत कोई ठोस क़ानून बन सके. हालांकि क़ानून बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हुई और यह मामला संसदीय समिति के पास भी गया, लेकिन आज स्थिति यह है कि बिना संसद की सहमति के इस स्कीम को देश के ऊपर थोप दिया गया. आधार कार्ड का एक और पहलू है. संसदीय समिति ने इसे निरस्त कर आधारहीन घोषित कर दिया है. संसदीय समिति ने सिर्फ इसकी वैधता पर ही सवाल नहीं उठाया, बल्कि संसदीय समिति ने इस प्रोजेक्ट को ही रिजेक्ट कर दिया. संसदीय समिति ने पहले इसके जानकारों और विशेषज्ञों से पूछताछ की और उसके बाद यूआईडीएआई के अधिकारियों को पूरा समय दिया कि उनके सवालों का सही तरह से जवाब दें, लेकिन यूआईडीएआई के अधिकारी इन सवालों का जवाब नहीं दे सके. संसदीय समिति ने उन्हीं सवालों को दोहराया, जिन्हें हम चौथी दुनिया में पिछले तीन वर्षों से लगातार छापते आए हैं. 31 सदस्यों वाली संसदीय समिति के 28 लोगों ने यूआईडी प्रोजेक्ट को सिरे से नकार दिया और जो तीन बचे थे, उनमें से एक ने कहा कि वह संसदीय समिति में बिल्कुल नए हैं, इसलिए उन्हें यूआईडी के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. एक वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद थे, जिन्होंने बिना कोई कारण बताए संसदीय समिति के फैसले के विपरीत अपना रुख रखा. संसदीय समिति ने सात मुख्य बिंदुओं पर यूआईडी को निरस्त किया, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, जल्दीबाज़ी, दिशाहीनता, ग़ैर भरोसेमंद टेक्नोलॉजी, प्राईवेसी का हक़, व्यावहारिकता, अध्ययन की कमी और सरकार के अलग-अलग विभागों में तालमेल की कमी शामिल है. ससंदीय समिति का कहना है कि यूआईडी स्कीम को बिना सोचे समझे ही बना दिया गया है. इस स्कीम का उद्देश्य क्या है यह भी साफ नहीं है और अब तक दिशाहीन तरी़के से इसे लागू किया गया है, जो आने वाले दिनों में इस स्कीम को निजी कंपनियों पर आश्रित कर सकता है. संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस प्रोजेक्ट को दिशाहीन बताकर और इस बिल को नामंजूर करते हुए सरकार से अपील की है कि वह इस स्कीम पर पुनर्विचार करे. सरकार को यह बताना चाहिए कि क्या उन्होंने इस कार्ड को लेकर कोई फिजिबिलिटी टेस्ट किया है. अगर नहीं किया है, तो फिर पूरे देश पर क्यों थोप दिया. क्या दुनिया के किसी देश में इस तरह के कार्ड का इस्तेमाल हो रहा है. क्या इस तरह की टेक्नोलॉजी दुनिया के किसी भी देश में सफल हो पाया है. क्या दुनिया के किसी भी देश में सरकारी योजनाओं को इस तरह के नंबर से जोड़ा गया है. अगर नहीं, तो फिर भारत सरकार यह अक्लमंदी का काम क्यों कर रही है, जबकि इंग्लैंड में इस योजना में आधा ख़र्च करने के बाद इसे अंततः रोक दिया गया. सच्चाई यह है कि यह कोई नहीं जानता कि यह कार्ड कैसे काम करता है. यह टेक्नोलॉजी किस तरह से ऑपरेट होती है. दुनिया भर के एक्सपर्ट्स का मानना है कि बायोमैट्रिक से पहचान पत्र बनाने की कोई सटीकटेक्नोलॉजी नहीं है. दरअसल, यह पूरा प्रोजेक्ट विदेशी कंपनियां अपनी टेक्नॉलाजी को भारत में टेस्ट कर रहे हैं और हमारी महान सरकार ने पूरे देश की जनता को बलि का बकरा बना दिया है. अब इस सवाल का जवाब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ही दे सकते हैं कि सरकार ने राष्ट्रीय ख़जाने से हज़ारों करोड़ रुपये बिना बिल पास कराए क्यों ख़र्च किया. यह मामला गृह मंत्रालय का है, लेकिन जवाब प्रधानमंत्री को देना चाहिए, क्योंकि यूआईडी के सर्वेसर्वा नंदन नेलकानी मनमोहन सिंह के ख़ास मित्र हैं. यह कैसा प्रजातंत्र है और यह सरकार चलाने का कौन सा तरीक़ा है, जहां किसी स्कीम का बिल संसद में लटका पड़ा हो, जिस बिल पर संसदीय समिति की ऐसी राय हो और जिस बिल पर संसद में भीषण विरोध हो रहा हो, लेकिन सरकार इन सब को नज़रअंदाज़ कर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च कर देती है. सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस प्रोजेक्ट पर कितना पैसा ख़र्च होगा, यह बात अब तक गुप्त रखा गया है. ऐसी स्थिति में हमें यह मान लेना चाहिए कि हर साल इस प्रोजेक्ट में हज़ारों करोड़ रुपये बर्बाद कर दिए जाएंगे, वह भी बिना किसी क़ानून के. यहां सवाल यह भी उठता है कि अगर संसद में यूआईडीएआई बिल पास न हुआ और इस योजना को बंद करना पड़ा, तब क्या होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अगर इस मामले में प्रतिकूल फैसला सुना दिया, तो क्या होगा. योजना तो बंद हो ही जाएगी, लेकिन ग़रीब जनता का हज़ारों करोड़ रुपया, जो कि पानी की तरह बहा दिया गया है, उसे कौन लौटाएगा. क्या नंदन नेलकानी उसे वापस करेंगे या फिर उन्हें नियुक्त करने वाले मनमोहन सिंह इस ज़िम्मेदारी को उठाएंगे. यूआईडी कार्ड है या नंबर, इससे देश की जनता को कोई फ़़र्क नहीं पड़ता है, लेकिन सरकार को अगर लोगों का विश्वास जीतना है, तो इस पूरे प्रोजेक्ट की स्वतंत्र जांच कराकर सरकार को श्वेत पत्र पेश करना चाहिए, ताकि देश की जनता आधार कार्ड की हक़ीक़त जान सके.
यह कार्ड ख़तरनाक है : पार्ट-1
चौथी दुनिया ने अगस्त 2011 में ही बताया था कि कैसे यह यूआईडी कार्ड हमारे देश की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक है. दरअसल, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने इसके लिए तीन कंपनियों को चुना- एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते हैं. इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग हैं, जिनका अमेरिकी खु़फिया एजेंसी सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन अमेरिका की सबसे बड़ी डिफेंस कंपनियों में से है, जो 25 देशों में फेस डिटेक्शन, इलेक्ट्रॅानिक पासपोर्ट आदि जैसी चीजों को बेचती है. इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है. इसके सीईओ ने 2006 में कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है. ग़ौरतलब है कि जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के ख़िलाफ़ झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. सवाल यह है कि सरकार इस तरह की कंपनियों को भारत के लोगों की सारी जानकारियां देकर क्या करना चाहती है? एक तो ये कंपनियां पैसा कमाएंगी, साथ ही पूरे तंत्र पर इनका क़ब्ज़ा भी होगा. इस कार्ड के बनने के बाद समस्त भारतवासियों की जानकारियों का क्या-क्या दुरुपयोग हो सकता है, यह सोचकर ही किसी के भी दिमाग़ की बत्ती गुल हो जाएगी.
यह कार्ड ख़तरनाक है : पार्ट- 2
नवंबर 2011 में भी चौथी दुनिया ने यूआईडी कार्ड से संबंधित एक कवर स्टोरी की थी और बताया था कि कैसे अगर यह कार्ड गलत हाथों में चला गया, तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. हमने बताया था कि अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम है. इस म्यूजियम में एक मशीन रखी है, जिसका नाम है होलेरिथ डी-11. इस मशीन को आईबीएम कंपनी ने द्वितीय विश्व युद्ध से पहले बनाया था. यह एक पहचान-पत्र की छंटाई करने वाली मशीन है, जिसका इस्तेमाल हिटलर ने 1933 में जनगणना करने में किया था. यही वह मशीन है, जिसके ज़रिए हिटलर ने यहूदियों की पहचान की थी. नाज़ियों को यहूदियों की लिस्ट आईबीएम कंपनी ने दी थी. यह कंपनी जर्मनी में जनगणना करने के काम में थी, जिसने न स़िर्फ जातिगत जनगणना और यहूदियों की गणना की, बल्कि उनकी पहचान भी कराई. आईबीएम और हिटलर के इस गठजोड़ ने इतिहास के सबसे खतरनाक जनसंहार को अंजाम दिया. भारत सरकार ने खास तौर पर जर्मनी और आम तौर पर यूरोप के अनुभवों को नज़रअंदाज़ करके इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी है, जबकि यह बात दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि निशानदेही के यही औजार बदले की भावना से किन्हीं खास धर्मों, जातियों, क्षेत्रों या आर्थिक रूप से असंतुष्ट तबकों के खिलाफ़ भी इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं. यह एक खतरनाक स्थिति है.पिछले दिनों हुए कैबिनेट मीटिंग में यह एक बहस का मुद्दा बन गया कि यह आधार कार्ड है या कोई नंबर. इस कैबिनेट मीटिंग में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, समाज कल्याण मंत्री कुमारी शैलजा, हैवी इंडस्ट्री मंत्री प्रफुल्ल पटेल और रेलमंत्री पवन बंसल ने यूआईडी पर सवाल उठाए. हैरानी की बात यह है कि यूआईडी पर उठे सवालों को सुलझाने के लिए इस बैठक में एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर का गठन किया गया, जो आधार से जुड़े सवालों पर जबाव तैयार करेगी. अब सवाल यह है कि यह ग्रुप ऑफ मिनिस्टर क्या करेगी, क्योंकि देश में आधे लोगों का कार्ड बन गया है, कई लोग आधार कार्ड लेकर घूम रहे हैं. इतना ही नहीं, इसमें दूसरा कंफ्यूजन भी है. नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रार भी एक दूसरा कार्ड धड़ल्ले से बना रही है. यह एनपीआर कार्ड और आधार कार्ड में क्या फ़़र्क है, यह किसी को पता नहीं है और न ही कोई बता रहा है. इसके बावजूद सरकार लगातार यह अफ़वाह फैला रही है कि डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब कैबिनेट मिनिस्टर तक को इस स्कीम के बारे में पता नहीं है, तो यह सरकार देश की जनता को क्या बता पाएगी. इस बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया यूआईडी के बचाव में कूदे. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि आधार कोई कार्ड नहीं, बल्कि एक नंबर है, लेकिन यूआईडी के एक प्रचार को हम आपके सामने पेश कर रहे हैं, जिसमें साफ़- साफ़ यह लिखा है कि आधार एक कार्ड है. इस प्रचार में यह लिखा है कि मेरे पास आधार कार्ड है. इसके अलावा इसी प्रचार में हर व्यक्ति के हाथ में एक कार्ड है. हैरानी होती है कि देश चलाने वालों ने एक स्कीम को लेकर पूरे देश में तमाशा खड़ा कर दिया है और ख़ुद को हंसी का पात्र बना दिया. हालांकि सवाल यह है कि यूआईडी को लेकर, अब तक सरकार सारे कामकाज को क्यों गोपनीय रखा है. इस स्कीम में आख़िर ऐसी क्या बात है, जिसकी वजह से सरकार सारे नियम क़ानून को ताक पर रख दिया है. सरकार अजीबो-ग़रीब तरी़के से काम करती है. केंद्रीय सरकार ने यूआईडी/आधार नंबर को प्रॉविडेंट फंड के ऑपरेशन के लिए अनिवार्य बना दिया है, जबकि अब तक इसके लिए कोई क़ानूनी आदेश जारी नहीं किया गया है. मतलब यह कि इस कार्ड को प्रॉविडेंट फंड के लिए ग़ैरक़ानूनी तरी़के से अनिवार्य बना दिया गया है. हैरानी की बात यह है कि इसकी वेबसाइट पर आज भी यह लिखा हुआ है कि यह कार्ड स्वेच्छी है, यानी वॉलेनटरी है. इसका मतलब तो यही हुआ कि यूआईडी को लेकर सरकार कोई क़ानून नहीं बनाएगी, लेकिन अपने अलग- अलग विभागों में इसे अनिवार्य कर देगी. यहां ग़ौर करने वाली बात यह भी है कि यूआईडी तो सिर्फ देश के आधे हिस्से में लागू किया गया है और बाकी हिस्से में एनपीआर कार्ड बनेगा, तो फिर ऐसी स्थिति में आधार कार्ड को प्रॉविडेंट फंड जैसे स्कीम में अनिवार्य कैसे किया जा सकता है. और अगर सरकार इसे पीएफ में अनिवार्य करना चाहती है, तो जिन राज्यों में आधार कार्ड नहीं बनेगा, वहां किस कार्ड को वैध माना जाएगा. सरकार ने यूआईडी के नाम पर ऐसा चक्रव्यूह बना दिया है कि एक दिन ऐसा आएगा, जब देश के सारे मज़दूर यूआईडी कार्ड पर ही निर्भर हो जाएंगे. यूआईडी/आधार कार्ड के फार्म के कॉलम नंबर ९ में एक अजीबो-ग़रीब बात लिखी हुई है. इसे एक शपथ के रूप में लिखा गया है. कॉलम 9 में लिखा है कि यूडीआईएआई को उनके द्वारा दी गई सारी जानकारियों को किसी कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियों को देने में उन्हें कोई ऐतराज़ नहीं है. इस कॉलम के आगे हां और ना के बॉक्स बने हैं. दरअसल, इस हां और ना का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि फॉर्म भरने वाले लोग हां पर टिक लगा देते हैं. बंगलुरु में यूआईडीएआई के डिप्टी चेयरमैन ने यह घोषणा की, यूडीआईएआई पुलिस जांच में लोगों की जानकारी मुहैया कराएगा. सवाल यह है कि क्या पुलिस एक कल्याणकारी सेवा करने वाली एजेंसी है. समस्या यह है कि इस फॉर्म पर कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियों के नाम ही नहीं हैं. इसका मतलब यह है कि यूआईडीएआई जिसे भी कल्याणकारी सेवा में लगी एजेंसियां मान लेगी, उसके साथ लोगों की जानकारियां शेयर कर सकती हैं. यानी एक बार लोगों ने अपनी जानकारियां दे दी, तो उसके बाद उन जानकारियों के इस्तेमाल पर लोगों का कोई अधिकार नहीं रह जाएगा. दरअसल, इन जानकारियों को सरकार सेंट्रलाइज्ड आईडेंटिटी डाटा रजिस्टर (सीआईडीआर) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्ट्रार के लिए जमा इसलिए कर रही है, ताकि पूरे देश के लोगों का एक डाटा बेस तैयार हो सके, लेकिन इसका एक ख़तरनाक पहलू भी है. इन जानकारियों को बायोमैट्रिक टेक्नोलॉजी कंपनियों को दे दिया जाएगा, क्योंकि यूआईडीएआई ने इन जानकारियों को ऑपरेट करने का ठेका निजी कंपनियों को दे दिया है. इन कंपनियों में सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज (सेगेम मोर्फो), एल 1 आईडेंटिटी सॉल्युशन, एसेंचर आदि हैं. जैसा कि चौथी दुनिया में पहले भी बताया जा चुका है कि इन कंपनियों के तार अमेरिका की ख़ुफिया एजेंसी के अधिकारियों से जुड़ी हुई है, इसलिए यह मामला और भी गंभीर हो जाता है. सरकार न तो संसद में और न ही मीडिया में यह साफ़ कर पाई है कि ऐसी क्या मजबूरी है कि देश के लोगों की जानकारियां ऐसी कंपनियों के हवाले किया जा रहा है, जिनका बैकग्राउंड न स़िर्फ संदिग्ध हैं, बल्कि ख़तरनाक भी है. अब यह समझ में नहीं आता है कि मनमोहन सिंह की सरकार यूआईडीएआई और उसके चेयरमैन नंदन नेलकानी को लेकर इतनी गोपनीयता क्यों बरत रही है. सारे क़ायदे क़ानून को ताक पर रखकर सरकार उन्हें इतना महत्व क्यों दे रही है. इसका क्या राज है. 2 जुलाई, 2010 को यूआईडीएआई की तरफ से बयान जारी होता है कि कैबिनेट सेक्रेटेरिएट में चेयरमैन की नियुक्ति का फैसला ले लिया गया है. योजना आयोग 2 जुलाई, 2009 के नोटिफिकेशन में यह बताया गया कि सक्षम प्राधिकारी यानी कॉम्पीटेंट अथॉरिटी के द्वारा यह पारित किया गया है कि नंदन नेलकानी, इंफोसिस के को-चेयरमैन, को यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया का अगले पांच साल तक चेयरमैन रहेंगे. यहां दो चूक हुई. उन्हें यूआईडी का चेयरमैन उस वक्त बनाया गया, जब वह इंफोसिस के को-चेयरमैन की कुर्सी पर विराजमान थे. मतलब यह कि कुछ समय के लिए वे यूआईडीएआई के साथ-साथ इंफोसिस के को-चेयरमैन बने रहे. अगर कोई दूसरा होता, तो वह दोनों जगहों से जाता. ग़ौरतलब है कि सोनिया गांधी को ऐसी ही ग़लती की वजह से त्यागपत्र देना पड़ा था, लेकिन नेलकानी का बाल भी बांका नहीं हुआ. दूसरी ग़लती यह कि नंदन नेलकानी ने कोई गोपनीयता की शपथ भी नहीं ली, जैसा कि हर कैबिनेट मंत्री को लेना होता है, लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया. सरकार ने देश के सभी नागरिकों की गुप्त जानकारियों को उनके हाथ सौंप दिया. अब तो मनमोहन सिंह ही बता सकते हैं कि नेलकानी पर इतना भरोसा करने की वजह क्या है. वैसे यह भी जानना ज़रूरी है कि भारत में किसी भी व्यक्ति के बायोमैट्रिक को कलेक्ट करना क़ानूनी रूप से ग़लत है, लेकिन सरकार ने नंदन नेलकानी साहब के लिए खुली छूट दे रखी है. नंदन नेलकानी और यूपीए सरकार ने यूआईडी को लेकर जितने भी दावे किए, वे सब झूठे साबित हुए. नंदन नेलकानी का सबसे बड़ा दावा यह था कि इसका डुप्लीकेट नहीं बन सकता. कहने का मतलब कि यह कार्ड इस तरह के तकनीकी से युक्त है, जो इसे फुलप्रूफ बनाता है, लेकिन यह दावा खोखला साबित हुआ. अब इस तरह की शिकायतें आने लगी हैं, जिससे यह पता चलता है कि यह न तो फुलप्रूफ है और इसका डुप्लीकेशन भी पूरी तरह संभव है. अब नंदन नेलकानी को यह भी जबाव देना चाहिए कि उन्होंने देश के सामने झूठे वायदे क्यों किए और लोगों को गुमराह क्यों किया. वैसे शर्मसार होकर यूआईडीएआई ने इन गड़बड़ियों पर जांच के आदेश दे दिए हैं. अब तक 300 ऑपरेटरों को स़िर्फ महाराष्ट्र में ब्लैकलिस्ट किया जा चुका है, जिनमें 22 ऑपरेटर मुंबई में स्थित हैं. दिसंबर 2012 में यूआईडीएआई क़रीब 3.84 लाख आधार नंबर कैंसिल कर चुकी है, क्योंकि वे नंबर फर्जी थे. नंदन नेलकानी के बड़े-बड़े वायदों की सच्चाई यह है कि अभी आधार कार्ड का काम सही ढंग से शुरू भी नहीं हो पाया और गड़बड़ियां शुरू हो गई हैं. यूपीए सरकार वही सरकार है, जिसने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जब अन्ना हजारे ने जनलोकपाल के लिए अनशन किया था, तो चीख-चीखकर कहा था कि क़ानून सड़क पर नहीं बनते. यह काम संसद का है. संसद में क़ानून बनाने की एक प्रक्रिया है, लेकिन जब बात यूआईडी यानी आधार कार्ड की आई, तो सरकार ने सारे नियम क़ानून को ताक पर ऱख दिया. यूआईडी के लिए क़ानून संसद में तो नहीं बनी, लेकिन लगता है यूआईडी के सारे नियम किसी ड्राइंग रूम में दोस्तों के बीच बनाया गया है. देश में धड़ल्ले से आधार कार्ड बनाए ज़रूर गए, लेकिन सरकार ने इस बात की ज़रूरत भी नहीं समझी कि इस बाबत कोई ठोस क़ानून बन सके. हालांकि क़ानून बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हुई और यह मामला संसदीय समिति के पास भी गया, लेकिन आज स्थिति यह है कि बिना संसद की सहमति के इस स्कीम को देश के ऊपर थोप दिया गया. आधार कार्ड का एक और पहलू है. संसदीय समिति ने इसे निरस्त कर आधारहीन घोषित कर दिया है. संसदीय समिति ने सिर्फ इसकी वैधता पर ही सवाल नहीं उठाया, बल्कि संसदीय समिति ने इस प्रोजेक्ट को ही रिजेक्ट कर दिया. संसदीय समिति ने पहले इसके जानकारों और विशेषज्ञों से पूछताछ की और उसके बाद यूआईडीएआई के अधिकारियों को पूरा समय दिया कि उनके सवालों का सही तरह से जवाब दें, लेकिन यूआईडीएआई के अधिकारी इन सवालों का जवाब नहीं दे सके. संसदीय समिति ने उन्हीं सवालों को दोहराया, जिन्हें हम चौथी दुनिया में पिछले तीन वर्षों से लगातार छापते आए हैं. 31 सदस्यों वाली संसदीय समिति के 28 लोगों ने यूआईडी प्रोजेक्ट को सिरे से नकार दिया और जो तीन बचे थे, उनमें से एक ने कहा कि वह संसदीय समिति में बिल्कुल नए हैं, इसलिए उन्हें यूआईडी के बारे में पूरी जानकारी नहीं है. एक वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद थे, जिन्होंने बिना कोई कारण बताए संसदीय समिति के फैसले के विपरीत अपना रुख रखा. संसदीय समिति ने सात मुख्य बिंदुओं पर यूआईडी को निरस्त किया, जिनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, जल्दीबाज़ी, दिशाहीनता, ग़ैर भरोसेमंद टेक्नोलॉजी, प्राईवेसी का हक़, व्यावहारिकता, अध्ययन की कमी और सरकार के अलग-अलग विभागों में तालमेल की कमी शामिल है. ससंदीय समिति का कहना है कि यूआईडी स्कीम को बिना सोचे समझे ही बना दिया गया है. इस स्कीम का उद्देश्य क्या है यह भी साफ नहीं है और अब तक दिशाहीन तरी़के से इसे लागू किया गया है, जो आने वाले दिनों में इस स्कीम को निजी कंपनियों पर आश्रित कर सकता है. संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस प्रोजेक्ट को दिशाहीन बताकर और इस बिल को नामंजूर करते हुए सरकार से अपील की है कि वह इस स्कीम पर पुनर्विचार करे. सरकार को यह बताना चाहिए कि क्या उन्होंने इस कार्ड को लेकर कोई फिजिबिलिटी टेस्ट किया है. अगर नहीं किया है, तो फिर पूरे देश पर क्यों थोप दिया. क्या दुनिया के किसी देश में इस तरह के कार्ड का इस्तेमाल हो रहा है. क्या इस तरह की टेक्नोलॉजी दुनिया के किसी भी देश में सफल हो पाया है. क्या दुनिया के किसी भी देश में सरकारी योजनाओं को इस तरह के नंबर से जोड़ा गया है. अगर नहीं, तो फिर भारत सरकार यह अक्लमंदी का काम क्यों कर रही है, जबकि इंग्लैंड में इस योजना में आधा ख़र्च करने के बाद इसे अंततः रोक दिया गया. सच्चाई यह है कि यह कोई नहीं जानता कि यह कार्ड कैसे काम करता है. यह टेक्नोलॉजी किस तरह से ऑपरेट होती है. दुनिया भर के एक्सपर्ट्स का मानना है कि बायोमैट्रिक से पहचान पत्र बनाने की कोई सटीकटेक्नोलॉजी नहीं है. दरअसल, यह पूरा प्रोजेक्ट विदेशी कंपनियां अपनी टेक्नॉलाजी को भारत में टेस्ट कर रहे हैं और हमारी महान सरकार ने पूरे देश की जनता को बलि का बकरा बना दिया है. अब इस सवाल का जवाब प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ही दे सकते हैं कि सरकार ने राष्ट्रीय ख़जाने से हज़ारों करोड़ रुपये बिना बिल पास कराए क्यों ख़र्च किया. यह मामला गृह मंत्रालय का है, लेकिन जवाब प्रधानमंत्री को देना चाहिए, क्योंकि यूआईडी के सर्वेसर्वा नंदन नेलकानी मनमोहन सिंह के ख़ास मित्र हैं. यह कैसा प्रजातंत्र है और यह सरकार चलाने का कौन सा तरीक़ा है, जहां किसी स्कीम का बिल संसद में लटका पड़ा हो, जिस बिल पर संसदीय समिति की ऐसी राय हो और जिस बिल पर संसद में भीषण विरोध हो रहा हो, लेकिन सरकार इन सब को नज़रअंदाज़ कर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च कर देती है. सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस प्रोजेक्ट पर कितना पैसा ख़र्च होगा, यह बात अब तक गुप्त रखा गया है. ऐसी स्थिति में हमें यह मान लेना चाहिए कि हर साल इस प्रोजेक्ट में हज़ारों करोड़ रुपये बर्बाद कर दिए जाएंगे, वह भी बिना किसी क़ानून के. यहां सवाल यह भी उठता है कि अगर संसद में यूआईडीएआई बिल पास न हुआ और इस योजना को बंद करना पड़ा, तब क्या होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अगर इस मामले में प्रतिकूल फैसला सुना दिया, तो क्या होगा. योजना तो बंद हो ही जाएगी, लेकिन ग़रीब जनता का हज़ारों करोड़ रुपया, जो कि पानी की तरह बहा दिया गया है, उसे कौन लौटाएगा. क्या नंदन नेलकानी उसे वापस करेंगे या फिर उन्हें नियुक्त करने वाले मनमोहन सिंह इस ज़िम्मेदारी को उठाएंगे. यूआईडी कार्ड है या नंबर, इससे देश की जनता को कोई फ़़र्क नहीं पड़ता है, लेकिन सरकार को अगर लोगों का विश्वास जीतना है, तो इस पूरे प्रोजेक्ट की स्वतंत्र जांच कराकर सरकार को श्वेत पत्र पेश करना चाहिए, ताकि देश की जनता आधार कार्ड की हक़ीक़त जान सके.यह कार्ड ख़तरनाक है : पार्ट-1चौथी दुनिया ने अगस्त 2011 में ही बताया था कि कैसे यह यूआईडी कार्ड हमारे देश की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक है. दरअसल, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने इसके लिए तीन कंपनियों को चुना- एसेंचर, महिंद्रा सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन का उदाहरण लेते हैं. इस कंपनी के टॉप मैनेजमेंट में ऐसे लोग हैं, जिनका अमेरिकी खु़फिया एजेंसी सीआईए और दूसरे सैन्य संगठनों से रिश्ता रहा है. एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन अमेरिका की सबसे बड़ी डिफेंस कंपनियों में से है, जो 25 देशों में फेस डिटेक्शन, इलेक्ट्रॅानिक पासपोर्ट आदि जैसी चीजों को बेचती है. इस कंपनी के डायरेक्टरों के बारे में जानना ज़रूरी है. इसके सीईओ ने 2006 में कहा था कि उन्होंने सीआईए के जॉर्ज टेनेट को कंपनी बोर्ड में शामिल किया है. ग़ौरतलब है कि जॉर्ज टेनेट सीआईए के डायरेक्टर रह चुके हैं और उन्होंने ही इराक़ के ख़िलाफ़ झूठे सबूत इकट्ठा किए थे कि उसके पास महाविनाश के हथियार हैं. सवाल यह है कि सरकार इस तरह की कंपनियों को भारत के लोगों की सारी जानकारियां देकर क्या करना चाहती है? एक तो ये कंपनियां पैसा कमाएंगी, साथ ही पूरे तंत्र पर इनका क़ब्ज़ा भी होगा. इस कार्ड के बनने के बाद समस्त भारतवासियों की जानकारियों का क्या-क्या दुरुपयोग हो सकता है, यह सोचकर ही किसी के भी दिमाग़ की बत्ती गुल हो जाएगी.यह कार्ड ख़तरनाक है : पार्ट- 2नवंबर 2011 में भी चौथी दुनिया ने यूआईडी कार्ड से संबंधित एक कवर स्टोरी की थी और बताया था कि कैसे अगर यह कार्ड गलत हाथों में चला गया, तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. हमने बताया था कि अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम है. इस म्यूजियम में एक मशीन रखी है, जिसका नाम है होलेरिथ डी-11. इस मशीन को आईबीएम कंपनी ने द्वितीय विश्व युद्ध से पहले बनाया था. यह एक पहचान-पत्र की छंटाई करने वाली मशीन है, जिसका इस्तेमाल हिटलर ने 1933 में जनगणना करने में किया था. यही वह मशीन है, जिसके ज़रिए हिटलर ने यहूदियों की पहचान की थी. नाज़ियों को यहूदियों की लिस्ट आईबीएम कंपनी ने दी थी. यह कंपनी जर्मनी में जनगणना करने के काम में थी, जिसने न स़िर्फ जातिगत जनगणना और यहूदियों की गणना की, बल्कि उनकी पहचान भी कराई. आईबीएम और हिटलर के इस गठजोड़ ने इतिहास के सबसे खतरनाक जनसंहार को अंजाम दिया. भारत सरकार ने खास तौर पर जर्मनी और आम तौर पर यूरोप के अनुभवों को नज़रअंदाज़ करके इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी है, जबकि यह बात दिन के उजाले की तरह साफ़ है कि निशानदेही के यही औजार बदले की भावना से किन्हीं खास धर्मों, जातियों, क्षेत्रों या आर्थिक रूप से असंतुष्ट तबकों के खिलाफ़ भी इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं. यह एक खतरनाक स्थिति है.

रविवार, 17 फ़रवरी 2013

काबा या कालकोठरी ?



काबा या अल्लाह की कालकोठरी ?भारत के सभी धर्मों में ईश्वर को सर्वव्यापी ( Omnipresnt ) माना जाता है . अर्थात ईश्वर का निवास किसी विशेष स्थान पर नहीं हो सकता . हम उसकी उपासना किसी भी देश , किसी भी स्थान पर कर सकते हैं .हम श्रद्धा पूर्वक ईइश्वर को जहाँ भी पुकारते है . ईश्वर वहीँ उपस्थित हो जाता है .ईसाइयों के अनुसार उनके खुदा का निवास वैसे तो स्वर्ग के चौथे असमान पर है , लेकिन वह अपने नबियों जैसे , आदम . मूसा और दाऊद से मिलने के लिए पृथ्वी पर उतर जाता था . और नबियों से आमने सामने बातें भी करता था .लेकिन मुसलमानों का अल्लाह सिर्फ जन्नत में बताया जाता है . जैसे कुरान में दिया है .
1--अल्लाह का निवास
"जो एक महान सिंहासन का स्वामी है .सूरा -नम्ल 27 :26
वह एक बड़े सिंहासन पर विराजमान है .सूरा -अत तौबा 9 :29
वह ऊंचाई पर स्थित तख़्त का स्वामी है. सूरा -अल मोमनीन 40 :15
अरबी भाषा में" काबा كعبه"का अर्थ "टखने Ankle " होता है .लेकिन इसका तात्पर्य " उच्च स्थान a high place .इज्जत वाला respected भी होता है .इसे " बैतुल अतीक بيت العتيق" यानि पुराना घर और " मस्जिदुल हरामمسجد الحرام "यानि वर्जित मस्जिद भी कहा जाता है .
2-अरब में कई काबा थे
इस्लाम से पूर्व अरब में छोटे बड़े मिलाकर लगभग 20 काबा मौजूद थे . और सभी में उपासना होती थी .जिनने कुछ प्रसिद्ध कबाओं के बारे में हदीसों में भी उल्लेख है .यह इस प्रकार हैं .इस्लाम से पहले के एक कवि " जोहैर इब्न अबी सलमा " ने अपनी किताब"अल मुआल्ल्का " में अरब के कुछ प्रसिद्ध काबा के नाम दिए हैं .
1 . नजरान काबा ,यह मक्का से दक्षिण में था 2 .सिंदाद काबा यह कूफा में था 3 .जुल खलश काबा यह मक्का के पूर्व में था .शद्दाद काबा 4 .गफ्तान काबा इसे सन 624 में तुड़वा दिया गया 5 . मक्का का काबा जो कुरैश लोगों ने बनाया था .इनमे कुछ ऐसे भी थे जिनमे मूर्ति पूजा नहीं होती थी . फिर भी मुहम्मद ने उन्हें तुड़वा दिया . यह हदीसों से साबित है जैसे
1.नजरान काबा
नजरान के जब्ल तसल की पहाड़ी पर एक काबा था . जहाँ जादातर ईसाई थे . जो मूर्तिपूजक नहीं थे . कुछ अरब भी वहां इबादत करते थे .मुहम्मद ने सन 631 में वहां हमला किया , और लोगों को इस्लाम कबूल करने को कहा . और जब उन लोगों ने इंकार किया तो मुहम्मद वहां के सभी 2000 लोगों को क़त्ल करा कर उनकी लाशें जलवा दीं." सही मुस्लिम - किताब 4 हदीस 1003
2-गफ्तान काबा
अरब के नज्द शहर के पास बनी गफ्तान यहूदी कबीले का एक काबा था .वह लोग मूर्ति पूजक नहीं थे . लेकिन अरब के लोग उस काबा को भेंट चढाते थे . जब मुहम्मद को पता चला तो उसने इस्लामी महीने जमादुल ऊला हिजरी 4 सन 624 को मदीना से आकर वहां हमला किया . और लोगों को क़त्ल करके वह काबा नष्ट करा दिया . बुखारी - किताब 8 हदीस 630
3-यमनी काबा
जरीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा मैंने रसूल को बताया कि यमन में एक और काबा है . जिसे लोग " जिल खलश ذي هلسا" या " काबा अल यमनिया" और " काबा अश शम्शिया الكعبة الشامية " कहते हैं . वहां "अहमस " कबीले के लोग रहते है . यह सुनते ही रसूल ने कहा तुम तुरंत फ़ौज लेकर वहां जाओ . और उस काबा को तोड़ दो . और वहां मौजूद सभी लोगों को क़त्ल कर दो .क्योंकि दुनिया में एक ही काबा रह सकता है .
बुखारी -जिल्द 5 किताब 58 हदीस 160
जबीर ने कहा कि इस काबा के उत्तर में यमन में अहमस कबीले का एक और काबा था . जिसे " जुल खलश" काबा कहते थे . रसूल के कहने से हम 350 घुड सवारों की फ़ौज लेकर गए और वहां के सभी लोगों को क़त्ल करके और उस काबा को नष्ट करके वापस आ गए .
सही मुस्लिम किताब 31 हदीस 6052
मुहम्मद के आदेश से अप्रेल सन 632 यानि हिजरी 10 मुसलमानों ने यमन का काबा नष्ट कर दिया . और वहां मौजूद सभी लोगों को क़त्ल कर दिया
.बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 641

3-कुरान का झूठा दावा और काबा
मुसलमान समझते हैं कि काबा का निर्माण इब्राहीम ने अपने हाथों से किया था . जैसा कुरान कि कुरान में लिखा है ,
"याद रखो जब हमने काबा को केंद्र बनाया और इब्राहीम को आदेश दिया कि इस जगह को इबादत की जगह बनाओ ,और इस काम की इब्राहीम और इस्माइल को जिम्मेदारी सौंप दी " सूरा - बकरा 2 :125
"और जब इब्राहीम और इस्माइल काबा की नींव रख रहे थे ,तो उन्होंने दुआ की थी ,कि हमारी तरफ इस घर को स्वीकार कर लो " सूरा - 2 :127
4-बाइबिल से प्रमाण
कुरान का यह दावा कि काबा इब्राहीम ने बनाया था . सरासर झूठ है . क्योंकि बाइबिल अनुसार इब्राहीम और इस्माइल अरब या मक्का कभी नहीं गए .चूँकि बाइबिल कुरान से काफी पुरानी है . इसलिए उसकी बात सही है . उसमे लिखा है .
"फिर इब्राहीम ऊर से निकल कर बेतेल के पूर्व में एक पहाड़ पर तंबू बनाकर रहने लगा .और वहीं उसने एक वेदी भी बनायीं "उत्पत्ति 12 :8
फिर कुछ सालों के बाद इब्राहीम अपना तम्बू उखाड़ कर ममरे के बांजों में हेब्रोन में जाकर बस गया . और जीवन भर वहीं रहा "उत्पत्ति 13 :18
इब्राहीम कनान देश के ऊर शहर में पैदा हुआ था . और जब बूढ़ा हुआ तो 175 साल की आयु में मर गया . उसके लडके इशक और इस्माइल ने उसे मकपेला की गुफा में दफना दिया .अर्थात जो जमीन उसने हित्तियों से खरीदी थी .बाद में इब्राहीम की पत्नी सारा को भी उसी जमीन में दफना दिया गया "बाईबिल .उत्पत्ति 25 :9 -10
" और जब इस्माइल भी 137 साल का होकर मरा तो उसे भी उसी भूमि में दफना दिया गया ."उत्पति 25 :17
5-मुहम्मद का सफ़ेद झूठ
अबू जर ने कहा मैंने रसूल से पूछा कि दुनिया में सबसे पहले अल्लाह का कौन सा घर बना था . रसूल बोले " मस्जिदुल हराम " यानि काबा . फिर मैंने पूछा दूसरा घर कौन सा बना है तो रसूल बोले " मस्जिदुल अक्सा " जो यरूशलेम में है .फिर मैंने पूछा इन दौनों घरों के निर्माण में कितने सालों का अंतर है . तो रसूल बोले चालीस साल ' बुखारी - जिल्द 4 किताब 55 हदीस 636
6-यरूशलेम का मंदिर
यरूशलेम स्थित जिस मस्जिद को मुसलमान " बैतुल मुकद्दस " कहते हैं उसे हिब्रू में " बेथ ह मिकदिश בֵּית־הַמִּקְדָּשׁ" कहते है .मुसलमान इसे " मस्जिदुल अक्सा " भी कहते हैं .इसका निर्माण राजा सुलेमान ( Solomon ) ने 957 ई० पू . में किया था . वास्तव में वह मस्जिद नहीं एक यहूदी मंदिर Temple था . जहाँ वेदी पर चढ़ावा चढ़ाता था और स्तुति होती थी
7-किबला का परिवर्तन
मुसलमान जिस उपासना स्थल की तरफ नमाज पढ़ते हैं उसे " क़िबला " कहा जाता है .पहले मुसलमान यरूशलेम के मंदिर की तरफ नमाज पढ़ते थे . लेकिन मुहम्मद ने 11 फरवरी सन 624 ( शाबान महीना हिजरी 2 ) अचानक मुसलमानों को काबा की तरफ नमाज पढ़ने का हुक्म दे दिया . यह बात कुरान में भी इस तरह लिखी है
"यह मूर्ख लोग कहते हैं कि मुसलमान जिस किबले पर थे उसे किस चीज ने फेर दिया " सूरा- 2 :142
"तो समझ लो हमीं हैं . जो तुम्हें उस किबले से उस किबले की तरफ फेरे देते हैं . जिसे तुम पसंद करोगे . और अब तुम अपना मुंह मस्जिदुल हराम यानि काबा की तरफ फेर दो " सूरा -बकरा 2 :144
8-काबा में चित्र और मूर्तियाँ
प्रसिद्ध इतिहासकार , F. E. Peters ने अपनी पुस्तक " The Hajj " के पेज 3 से 41 में काबा के बारे में बताया है ,यह किताब सन 1994 में प्रकाशित हुई है .इसके अनुसार मुहम्मद का एक पूर्वज "अम्र इब्न लुहैय(Amr ibn Luhayy )जब एकबार मेसोपोटामिया गया था तो , वहां से " हुब्ल( Hubl ) नामके देवता की मूर्ति लाया था . और मक्का के काबा में लगा दी थी . लोग हुब्ल को सबसे बड़ा देवता मानते थे , फिर देखादेखी कुरैश लोगों ने काबा में कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ लगा दी .काबा में मरियम . इब्राहीम और इस्माइल के चित्र भी लगे थे . जिन पर लोग धन चढाते थे.जो पुजारियों में बाँट दिया जाता था . काबा के पुजारी को " शेख " कहा जाता था . मुहम्मद के समय मुख्य पुजारी " अबू सुफ़यान " था
इब्न अब्बास ने कहा कि जब रसूल काबा के अन्दर जाने लगे तो देखा कि वहां दीवार पर इब्राहीम और इस्माइल की तस्वीर बनी हुई है . जो हाथों में तीर लेकर उनकी संख्या गिन कर शकुन निकाल रहे है . रसूल बोले लानत है कुरैश पर . इब्राहिम और इस्माइल ने कभी ऐसा नहीं किया . तुम इस तस्वीर को मिटा डालो "
बुखारी - जिल्द 4 किताब 55 हदीस 571

.देखिये विडियो Islam Exposed: Kaaba is the House of Idols:

http://www.youtube.com/watch?v=NgQjzNYklr0
9-मूर्तियाँ तोड़ने का कारण
उस समय काबा के अन्दर और दीवार के पास 360 देवी देवताओं की मूर्तियाँ रखी थी .जिनकी पूजा करने के लिए हर कबीले के कई पुजारी रहते थे . जिन्हें शेख कहा जाता था .चूँकि मक्का यमन से सीरिया जाने वाले मुख्य व्यापारिक में पड़ता था इसलिए काफिले वाले काबा के देवताओं पर जो धन चढाते थे वह सभी पुजारियों में बंट जाता था .और अक्सर बहुत कम चढ़ावा आता था .मुहम्मद से समय मुख्य पुजारी " अबू सुफ़यान " था . मुहम्मद ने रमजान के महीने हिजरी 8 सन 630 को उसे कैद कर लिया और कई पुजारियों को क़त्ल करा दिया .और काबा की सभी मूर्तियों को तोड़ कर काबा अपने रिश्तेदारों के हवाले कर दिया .और कहा "सत्य आ गया और असत्य मिट गया " सूरा -बनी इसराइल 17 :81
हमने तो कुरैश के लोगों से रिश्ता बना लिया . और उन्हीं को अल्लाह के इस घर की इबादत करने के लिए नियुक्त कर दिया . ताकि भूखों मरने के डर से बच सकें . और निश्चिन्त होकर खाएं पियें .सूरा- कुरैश 106 : 1 से 4 तक
10-काबा के अन्दर क्या है ?
काबा की लम्बाई 39 .6 इंच है .और कुल क्षेत्रफल 627 फुट है . यानि 13 x 9 वर्ग मीटर है छत की ऊंचाई 2 .2 मीटर और दीवार एक मीटर मोटी है
उत्तरी अमेरिका के इस्लामी सोसायटी के अध्यक्ष को 1998 में काबा के अन्दर जाने का अवसर मिला था . उन्होंने जो देखा वह इस प्रकार है ,अन्दर दो खम्भे हैं . एक सुगंधी जलाने चौकी है . छत पर कंदील लटका है लेकिन बिजली नहीं है . कोई खिड़की नहीं है . बह एक ही दरवाजा है .देखिये विडियो
Inside Kaaba Video

http://www.youtube.com/watch?NR=1&feature=fvwp&v=17XG-kxUskY

इन सभी प्रमाणों से निम्न बातें स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है कि 1.मुसलमानों का अल्लाह ईश्वर नहीं हो सकता क्योंकि वह सर्वव्यापी नहीं है .यदि वह सर्वव्यापी है तो किसी और देश में काबा क्यों नहीं बन सकता .2 - मुहम्मद को यरूशलेम के इतिहास का कोई ज्ञान नहीं था , इस लिए उसे अल्लाह का रसूल मानना मुर्खता है 3 .मुहम्मद का एकेश्वरवाद सिर्फ पाखंड था . वह उसके बहाने दुसरे धर्म स्थानों को लूटना चाहता था . वर्ना उसने उन कबाओं को क्यों तोडा जहाँ मूर्ति पूजा नहीं होती थी .4.अगर अल्लाह सचमुच जिन्दा है तो वह आज किसी मुल्ले मौलवी से बात क्यों नहीं करता , क्या सभी मुसलमान पापी हैं ?5 . मुहमद ने अपने कुनबे के लोगों का हमेशा के लिए पेट भरने का इंतजाम कर दिया था .लेकिन वास्तविकता तो यही है कि अल्लाह चाहे कैसा भी रहा होगा वह आज तक एक ऐसी अँधेरी और बंद कालकोठरी में कैद है , जिसमे हवा भी नहीं जा सकती .
अल्लाह काबा में कैद है . और कैदी की उपासना बेकार है !
http://www.bible.ca/islam/islam-kaba-history.htm
1--अल्लाह का निवास "जो एक महान सिंहासन का स्वामी है .सूरा -नम्ल 27 :26 वह एक बड़े सिंहासन पर विराजमान है .सूरा -अत तौबा 9 :29 वह ऊंचाई पर स्थित तख़्त का स्वामी है. सूरा -अल मोमनीन 40 :15 अरबी भाषा में" काबा كعبه"का अर्थ "टखने Ankle " होता है .लेकिन इसका तात्पर्य " उच्च स्थान a high place .इज्जत वाला respected भी होता है .इसे " बैतुल अतीक بيت العتيق" यानि पुराना घर और " मस्जिदुल हरामمسجد الحرام "यानि वर्जित मस्जिद भी कहा जाता है .2-अरब में कई काबा थे इस्लाम से पूर्व अरब में छोटे बड़े मिलाकर लगभग 20 काबा मौजूद थे . और सभी में उपासना होती थी .जिनने कुछ प्रसिद्ध कबाओं के बारे में हदीसों में भी उल्लेख है .यह इस प्रकार हैं .इस्लाम से पहले के एक कवि " जोहैर इब्न अबी सलमा " ने अपनी किताब"अल मुआल्ल्का " में अरब के कुछ प्रसिद्ध काबा के नाम दिए हैं . 1 . नजरान काबा ,यह मक्का से दक्षिण में था 2 .सिंदाद काबा यह कूफा में था 3 .जुल खलश काबा यह मक्का के पूर्व में था .शद्दाद काबा 4 .गफ्तान काबा इसे सन 624 में तुड़वा दिया गया 5 . मक्का का काबा जो कुरैश लोगों ने बनाया था .इनमे कुछ ऐसे भी थे जिनमे मूर्ति पूजा नहीं होती थी . फिर भी मुहम्मद ने उन्हें तुड़वा दिया . यह हदीसों से साबित है जैसे 1.नजरान काबा नजरान के जब्ल तसल की पहाड़ी पर एक काबा था . जहाँ जादातर ईसाई थे . जो मूर्तिपूजक नहीं थे . कुछ अरब भी वहां इबादत करते थे .मुहम्मद ने सन 631 में वहां हमला किया , और लोगों को इस्लाम कबूल करने को कहा . और जब उन लोगों ने इंकार किया तो मुहम्मद वहां के सभी 2000 लोगों को क़त्ल करा कर उनकी लाशें जलवा दीं." सही मुस्लिम - किताब 4 हदीस 1003 2-गफ्तान काबा अरब के नज्द शहर के पास बनी गफ्तान यहूदी कबीले का एक काबा था .वह लोग मूर्ति पूजक नहीं थे . लेकिन अरब के लोग उस काबा को भेंट चढाते थे . जब मुहम्मद को पता चला तो उसने इस्लामी महीने जमादुल ऊला हिजरी 4 सन 624 को मदीना से आकर वहां हमला किया . और लोगों को क़त्ल करके वह काबा नष्ट करा दिया . बुखारी - किताब 8 हदीस 630 3-यमनी काबा जरीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा मैंने रसूल को बताया कि यमन में एक और काबा है . जिसे लोग " जिल खलश ذي هلسا" या " काबा अल यमनिया" और " काबा अश शम्शिया الكعبة الشامية " कहते हैं . वहां "अहमस " कबीले के लोग रहते है . यह सुनते ही रसूल ने कहा तुम तुरंत फ़ौज लेकर वहां जाओ . और उस काबा को तोड़ दो . और वहां मौजूद सभी लोगों को क़त्ल कर दो .क्योंकि दुनिया में एक ही काबा रह सकता है .बुखारी -जिल्द 5 किताब 58 हदीस 160 जबीर ने कहा कि इस काबा के उत्तर में यमन में अहमस कबीले का एक और काबा था . जिसे " जुल खलश" काबा कहते थे . रसूल के कहने से हम 350 घुड सवारों की फ़ौज लेकर गए और वहां के सभी लोगों को क़त्ल करके और उस काबा को नष्ट करके वापस आ गए .सही मुस्लिम किताब 31 हदीस 6052 मुहम्मद के आदेश से अप्रेल सन 632 यानि हिजरी 10 मुसलमानों ने यमन का काबा नष्ट कर दिया . और वहां मौजूद सभी लोगों को क़त्ल कर दिया .बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 641 
3-कुरान का झूठा दावा और काबा मुसलमान समझते हैं कि काबा का निर्माण इब्राहीम ने अपने हाथों से किया था . जैसा कुरान कि कुरान में लिखा है ,"याद रखो जब हमने काबा को केंद्र बनाया और इब्राहीम को आदेश दिया कि इस जगह को इबादत की जगह बनाओ ,और इस काम की इब्राहीम और इस्माइल को जिम्मेदारी सौंप दी " सूरा - बकरा 2 :125 "और जब इब्राहीम और इस्माइल काबा की नींव रख रहे थे ,तो उन्होंने दुआ की थी ,कि हमारी तरफ इस घर को स्वीकार कर लो " सूरा - 2 :127 4-बाइबिल से प्रमाण कुरान का यह दावा कि काबा इब्राहीम ने बनाया था . सरासर झूठ है . क्योंकि बाइबिल अनुसार इब्राहीम और इस्माइल अरब या मक्का कभी नहीं गए .चूँकि बाइबिल कुरान से काफी पुरानी है . इसलिए उसकी बात सही है . उसमे लिखा है ."फिर इब्राहीम ऊर से निकल कर बेतेल के पूर्व में एक पहाड़ पर तंबू बनाकर रहने लगा .और वहीं उसने एक वेदी भी बनायीं "उत्पत्ति 12 :8 फिर कुछ सालों के बाद इब्राहीम अपना तम्बू उखाड़ कर ममरे के बांजों में हेब्रोन में जाकर बस गया . और जीवन भर वहीं रहा "उत्पत्ति 13 :18 इब्राहीम कनान देश के ऊर शहर में पैदा हुआ था . और जब बूढ़ा हुआ तो 175 साल की आयु में मर गया . उसके लडके इशक और इस्माइल ने उसे मकपेला की गुफा में दफना दिया .अर्थात जो जमीन उसने हित्तियों से खरीदी थी .बाद में इब्राहीम की पत्नी सारा को भी उसी जमीन में दफना दिया गया "बाईबिल .उत्पत्ति 25 :9 -10 " और जब इस्माइल भी 137 साल का होकर मरा तो उसे भी उसी भूमि में दफना दिया गया ."उत्पति 25 :17 5-मुहम्मद का सफ़ेद झूठ अबू जर ने कहा मैंने रसूल से पूछा कि दुनिया में सबसे पहले अल्लाह का कौन सा घर बना था . रसूल बोले " मस्जिदुल हराम " यानि काबा . फिर मैंने पूछा दूसरा घर कौन सा बना है तो रसूल बोले " मस्जिदुल अक्सा " जो यरूशलेम में है .फिर मैंने पूछा इन दौनों घरों के निर्माण में कितने सालों का अंतर है . तो रसूल बोले चालीस साल ' बुखारी - जिल्द 4 किताब 55 हदीस 636 6-यरूशलेम का मंदिर यरूशलेम स्थित जिस मस्जिद को मुसलमान " बैतुल मुकद्दस " कहते हैं उसे हिब्रू में " बेथ ह मिकदिश בֵּית־הַמִּקְדָּשׁ" कहते है .मुसलमान इसे " मस्जिदुल अक्सा " भी कहते हैं .इसका निर्माण राजा सुलेमान ( Solomon ) ने 957 ई० पू . में किया था . वास्तव में वह मस्जिद नहीं एक यहूदी मंदिर Temple था . जहाँ वेदी पर चढ़ावा चढ़ाता था और स्तुति होती थी 7-किबला का परिवर्तन मुसलमान जिस उपासना स्थल की तरफ नमाज पढ़ते हैं उसे " क़िबला " कहा जाता है .पहले मुसलमान यरूशलेम के मंदिर की तरफ नमाज पढ़ते थे . लेकिन मुहम्मद ने 11 फरवरी सन 624 ( शाबान महीना हिजरी 2 ) अचानक मुसलमानों को काबा की तरफ नमाज पढ़ने का हुक्म दे दिया . यह बात कुरान में भी इस तरह लिखी है "यह मूर्ख लोग कहते हैं कि मुसलमान जिस किबले पर थे उसे किस चीज ने फेर दिया " सूरा- 2 :142 "तो समझ लो हमीं हैं . जो तुम्हें उस किबले से उस किबले की तरफ फेरे देते हैं . जिसे तुम पसंद करोगे . और अब तुम अपना मुंह मस्जिदुल हराम यानि काबा की तरफ फेर दो " सूरा -बकरा 2 :144 8-काबा में चित्र और मूर्तियाँ प्रसिद्ध इतिहासकार , F. E. Peters ने अपनी पुस्तक " The Hajj " के पेज 3 से 41 में काबा के बारे में बताया है ,यह किताब सन 1994 में प्रकाशित हुई है .इसके अनुसार मुहम्मद का एक पूर्वज "अम्र इब्न लुहैय(Amr ibn Luhayy )जब एकबार मेसोपोटामिया गया था तो , वहां से " हुब्ल( Hubl ) नामके देवता की मूर्ति लाया था . और मक्का के काबा में लगा दी थी . लोग हुब्ल को सबसे बड़ा देवता मानते थे , फिर देखादेखी कुरैश लोगों ने काबा में कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ लगा दी .काबा में मरियम . इब्राहीम और इस्माइल के चित्र भी लगे थे . जिन पर लोग धन चढाते थे.जो पुजारियों में बाँट दिया जाता था . काबा के पुजारी को " शेख " कहा जाता था . मुहम्मद के समय मुख्य पुजारी " अबू सुफ़यान " था इब्न अब्बास ने कहा कि जब रसूल काबा के अन्दर जाने लगे तो देखा कि वहां दीवार पर इब्राहीम और इस्माइल की तस्वीर बनी हुई है . जो हाथों में तीर लेकर उनकी संख्या गिन कर शकुन निकाल रहे है . रसूल बोले लानत है कुरैश पर . इब्राहिम और इस्माइल ने कभी ऐसा नहीं किया . तुम इस तस्वीर को मिटा डालो "बुखारी - जिल्द 4 किताब 55 हदीस 571 
.देखिये विडियो Islam Exposed: Kaaba is the House of Idols:
http://www.youtube.com/watch?v=NgQjzNYklr09-मूर्तियाँ तोड़ने का कारणउस समय काबा के अन्दर और दीवार के पास 360 देवी देवताओं की मूर्तियाँ रखी थी .जिनकी पूजा करने के लिए हर कबीले के कई पुजारी रहते थे . जिन्हें शेख कहा जाता था .चूँकि मक्का यमन से सीरिया जाने वाले मुख्य व्यापारिक में पड़ता था इसलिए काफिले वाले काबा के देवताओं पर जो धन चढाते थे वह सभी पुजारियों में बंट जाता था .और अक्सर बहुत कम चढ़ावा आता था .मुहम्मद से समय मुख्य पुजारी " अबू सुफ़यान " था . मुहम्मद ने रमजान के महीने हिजरी 8 सन 630 को उसे कैद कर लिया और कई पुजारियों को क़त्ल करा दिया .और काबा की सभी मूर्तियों को तोड़ कर काबा अपने रिश्तेदारों के हवाले कर दिया .और कहा "सत्य आ गया और असत्य मिट गया " सूरा -बनी इसराइल 17 :81 हमने तो कुरैश के लोगों से रिश्ता बना लिया . और उन्हीं को अल्लाह के इस घर की इबादत करने के लिए नियुक्त कर दिया . ताकि भूखों मरने के डर से बच सकें . और निश्चिन्त होकर खाएं पियें .सूरा- कुरैश 106 : 1 से 4 तक 10-काबा के अन्दर क्या है ?काबा की लम्बाई 39 .6 इंच है .और कुल क्षेत्रफल 627 फुट है . यानि 13 x 9 वर्ग मीटर है छत की ऊंचाई 2 .2 मीटर और दीवार एक मीटर मोटी है उत्तरी अमेरिका के इस्लामी सोसायटी के अध्यक्ष को 1998 में काबा के अन्दर जाने का अवसर मिला था . उन्होंने जो देखा वह इस प्रकार है ,अन्दर दो खम्भे हैं . एक सुगंधी जलाने चौकी है . छत पर कंदील लटका है लेकिन बिजली नहीं है . कोई खिड़की नहीं है . बह एक ही दरवाजा है .देखिये विडियो Inside Kaaba Video
http://www.youtube.com/watch?NR=1&feature=fvwp&v=17XG-kxUskY
इन सभी प्रमाणों से निम्न बातें स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है कि 1.मुसलमानों का अल्लाह ईश्वर नहीं हो सकता क्योंकि वह सर्वव्यापी नहीं है .यदि वह सर्वव्यापी है तो किसी और देश में काबा क्यों नहीं बन सकता .2 - मुहम्मद को यरूशलेम के इतिहास का कोई ज्ञान नहीं था , इस लिए उसे अल्लाह का रसूल मानना मुर्खता है 3 .मुहम्मद का एकेश्वरवाद सिर्फ पाखंड था . वह उसके बहाने दुसरे धर्म स्थानों को लूटना चाहता था . वर्ना उसने उन कबाओं को क्यों तोडा जहाँ मूर्ति पूजा नहीं होती थी .4.अगर अल्लाह सचमुच जिन्दा है तो वह आज किसी मुल्ले मौलवी से बात क्यों नहीं करता , क्या सभी मुसलमान पापी हैं ?5 . मुहमद ने अपने कुनबे के लोगों का हमेशा के लिए पेट भरने का इंतजाम कर दिया था .लेकिन वास्तविकता तो यही है कि अल्लाह चाहे कैसा भी रहा होगा वह आज तक एक ऐसी अँधेरी और बंद कालकोठरी में कैद है , जिसमे हवा भी नहीं जा सकती .अल्लाह काबा में कैद है . और कैदी की उपासना बेकार है !http://www.bible.ca/islam/islam-kaba-history.htm1--अल्लाह का निवास "जो एक महान सिंहासन का स्वामी है .सूरा -नम्ल 27 :26 वह एक बड़े सिंहासन पर विराजमान है .सूरा -अत तौबा 9 :29 वह ऊंचाई पर स्थित तख़्त का स्वामी है. सूरा -अल मोमनीन 40 :15 अरबी भाषा में" काबा كعبه"का अर्थ "टखने Ankle " होता है .लेकिन इसका तात्पर्य " उच्च स्थान a high place .इज्जत वाला respected भी होता है .इसे " बैतुल अतीक بيت العتيق" यानि पुराना घर और " मस्जिदुल हरामمسجد الحرام "यानि वर्जित मस्जिद भी कहा जाता है .2-अरब में कई काबा थे इस्लाम से पूर्व अरब में छोटे बड़े मिलाकर लगभग 20 काबा मौजूद थे . और सभी में उपासना होती थी .जिनने कुछ प्रसिद्ध कबाओं के बारे में हदीसों में भी उल्लेख है .यह इस प्रकार हैं .इस्लाम से पहले के एक कवि " जोहैर इब्न अबी सलमा " ने अपनी किताब"अल मुआल्ल्का " में अरब के कुछ प्रसिद्ध काबा के नाम दिए हैं . 1 . नजरान काबा ,यह मक्का से दक्षिण में था 2 .सिंदाद काबा यह कूफा में था 3 .जुल खलश काबा यह मक्का के पूर्व में था .शद्दाद काबा 4 .गफ्तान काबा इसे सन 624 में तुड़वा दिया गया 5 . मक्का का काबा जो कुरैश लोगों ने बनाया था .इनमे कुछ ऐसे भी थे जिनमे मूर्ति पूजा नहीं होती थी . फिर भी मुहम्मद ने उन्हें तुड़वा दिया . यह हदीसों से साबित है जैसे 1.नजरान काबा नजरान के जब्ल तसल की पहाड़ी पर एक काबा था . जहाँ जादातर ईसाई थे . जो मूर्तिपूजक नहीं थे . कुछ अरब भी वहां इबादत करते थे .मुहम्मद ने सन 631 में वहां हमला किया , और लोगों को इस्लाम कबूल करने को कहा . और जब उन लोगों ने इंकार किया तो मुहम्मद वहां के सभी 2000 लोगों को क़त्ल करा कर उनकी लाशें जलवा दीं." सही मुस्लिम - किताब 4 हदीस 1003 2-गफ्तान काबा अरब के नज्द शहर के पास बनी गफ्तान यहूदी कबीले का एक काबा था .वह लोग मूर्ति पूजक नहीं थे . लेकिन अरब के लोग उस काबा को भेंट चढाते थे . जब मुहम्मद को पता चला तो उसने इस्लामी महीने जमादुल ऊला हिजरी 4 सन 624 को मदीना से आकर वहां हमला किया . और लोगों को क़त्ल करके वह काबा नष्ट करा दिया . बुखारी - किताब 8 हदीस 630 3-यमनी काबा जरीर बिन अब्दुल्लाह ने कहा मैंने रसूल को बताया कि यमन में एक और काबा है . जिसे लोग " जिल खलश ذي هلسا" या " काबा अल यमनिया" और " काबा अश शम्शिया الكعبة الشامية " कहते हैं . वहां "अहमस " कबीले के लोग रहते है . यह सुनते ही रसूल ने कहा तुम तुरंत फ़ौज लेकर वहां जाओ . और उस काबा को तोड़ दो . और वहां मौजूद सभी लोगों को क़त्ल कर दो .क्योंकि दुनिया में एक ही काबा रह सकता है .बुखारी -जिल्द 5 किताब 58 हदीस 160 जबीर ने कहा कि इस काबा के उत्तर में यमन में अहमस कबीले का एक और काबा था . जिसे " जुल खलश" काबा कहते थे . रसूल के कहने से हम 350 घुड सवारों की फ़ौज लेकर गए और वहां के सभी लोगों को क़त्ल करके और उस काबा को नष्ट करके वापस आ गए .सही मुस्लिम किताब 31 हदीस 6052 मुहम्मद के आदेश से अप्रेल सन 632 यानि हिजरी 10 मुसलमानों ने यमन का काबा नष्ट कर दिया . और वहां मौजूद सभी लोगों को क़त्ल कर दिया .बुखारी -जिल्द 5 किताब 59 हदीस 641 3-कुरान का झूठा दावा और काबा मुसलमान समझते हैं कि काबा का निर्माण इब्राहीम ने अपने हाथों से किया था . जैसा कुरान कि कुरान में लिखा है ,"याद रखो जब हमने काबा को केंद्र बनाया और इब्राहीम को आदेश दिया कि इस जगह को इबादत की जगह बनाओ ,और इस काम की इब्राहीम और इस्माइल को जिम्मेदारी सौंप दी " सूरा - बकरा 2 :125 "और जब इब्राहीम और इस्माइल काबा की नींव रख रहे थे ,तो उन्होंने दुआ की थी ,कि हमारी तरफ इस घर को स्वीकार कर लो " सूरा - 2 :127 4-बाइबिल से प्रमाण कुरान का यह दावा कि काबा इब्राहीम ने बनाया था . सरासर झूठ है . क्योंकि बाइबिल अनुसार इब्राहीम और इस्माइल अरब या मक्का कभी नहीं गए .चूँकि बाइबिल कुरान से काफी पुरानी है . इसलिए उसकी बात सही है . उसमे लिखा है ."फिर इब्राहीम ऊर से निकल कर बेतेल के पूर्व में एक पहाड़ पर तंबू बनाकर रहने लगा .और वहीं उसने एक वेदी भी बनायीं "उत्पत्ति 12 :8 फिर कुछ सालों के बाद इब्राहीम अपना तम्बू उखाड़ कर ममरे के बांजों में हेब्रोन में जाकर बस गया . और जीवन भर वहीं रहा "उत्पत्ति 13 :18 इब्राहीम कनान देश के ऊर शहर में पैदा हुआ था . और जब बूढ़ा हुआ तो 175 साल की आयु में मर गया . उसके लडके इशक और इस्माइल ने उसे मकपेला की गुफा में दफना दिया .अर्थात जो जमीन उसने हित्तियों से खरीदी थी .बाद में इब्राहीम की पत्नी सारा को भी उसी जमीन में दफना दिया गया "बाईबिल .उत्पत्ति 25 :9 -10 " और जब इस्माइल भी 137 साल का होकर मरा तो उसे भी उसी भूमि में दफना दिया गया ."उत्पति 25 :17 5-मुहम्मद का सफ़ेद झूठ अबू जर ने कहा मैंने रसूल से पूछा कि दुनिया में सबसे पहले अल्लाह का कौन सा घर बना था . रसूल बोले " मस्जिदुल हराम " यानि काबा . फिर मैंने पूछा दूसरा घर कौन सा बना है तो रसूल बोले " मस्जिदुल अक्सा " जो यरूशलेम में है .फिर मैंने पूछा इन दौनों घरों के निर्माण में कितने सालों का अंतर है . तो रसूल बोले चालीस साल ' बुखारी - जिल्द 4 किताब 55 हदीस 636 6-यरूशलेम का मंदिर यरूशलेम स्थित जिस मस्जिद को मुसलमान " बैतुल मुकद्दस " कहते हैं उसे हिब्रू में " बेथ ह मिकदिश בֵּית־הַמִּקְדָּשׁ" कहते है .मुसलमान इसे " मस्जिदुल अक्सा " भी कहते हैं .इसका निर्माण राजा सुलेमान ( Solomon ) ने 957 ई० पू . में किया था . वास्तव में वह मस्जिद नहीं एक यहूदी मंदिर Temple था . जहाँ वेदी पर चढ़ावा चढ़ाता था और स्तुति होती थी 7-किबला का परिवर्तन मुसलमान जिस उपासना स्थल की तरफ नमाज पढ़ते हैं उसे " क़िबला " कहा जाता है .पहले मुसलमान यरूशलेम के मंदिर की तरफ नमाज पढ़ते थे . लेकिन मुहम्मद ने 11 फरवरी सन 624 ( शाबान महीना हिजरी 2 ) अचानक मुसलमानों को काबा की तरफ नमाज पढ़ने का हुक्म दे दिया . यह बात कुरान में भी इस तरह लिखी है "यह मूर्ख लोग कहते हैं कि मुसलमान जिस किबले पर थे उसे किस चीज ने फेर दिया " सूरा- 2 :142 "तो समझ लो हमीं हैं . जो तुम्हें उस किबले से उस किबले की तरफ फेरे देते हैं . जिसे तुम पसंद करोगे . और अब तुम अपना मुंह मस्जिदुल हराम यानि काबा की तरफ फेर दो " सूरा -बकरा 2 :144 8-काबा में चित्र और मूर्तियाँ प्रसिद्ध इतिहासकार , F. E. Peters ने अपनी पुस्तक " The Hajj " के पेज 3 से 41 में काबा के बारे में बताया है ,यह किताब सन 1994 में प्रकाशित हुई है .इसके अनुसार मुहम्मद का एक पूर्वज "अम्र इब्न लुहैय(Amr ibn Luhayy )जब एकबार मेसोपोटामिया गया था तो , वहां से " हुब्ल( Hubl ) नामके देवता की मूर्ति लाया था . और मक्का के काबा में लगा दी थी . लोग हुब्ल को सबसे बड़ा देवता मानते थे , फिर देखादेखी कुरैश लोगों ने काबा में कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ लगा दी .काबा में मरियम . इब्राहीम और इस्माइल के चित्र भी लगे थे . जिन पर लोग धन चढाते थे.जो पुजारियों में बाँट दिया जाता था . काबा के पुजारी को " शेख " कहा जाता था . मुहम्मद के समय मुख्य पुजारी " अबू सुफ़यान " था इब्न अब्बास ने कहा कि जब रसूल काबा के अन्दर जाने लगे तो देखा कि वहां दीवार पर इब्राहीम और इस्माइल की तस्वीर बनी हुई है . जो हाथों में तीर लेकर उनकी संख्या गिन कर शकुन निकाल रहे है . रसूल बोले लानत है कुरैश पर . इब्राहिम और इस्माइल ने कभी ऐसा नहीं किया . तुम इस तस्वीर को मिटा डालो "बुखारी - जिल्द 4 किताब 55 हदीस 571 .देखिये विडियो Islam Exposed: Kaaba is the House of Idols:http://www.youtube.com/watch?v=NgQjzNYklr09-मूर्तियाँ तोड़ने का कारणउस समय काबा के अन्दर और दीवार के पास 360 देवी देवताओं की मूर्तियाँ रखी थी .जिनकी पूजा करने के लिए हर कबीले के कई पुजारी रहते थे . जिन्हें शेख कहा जाता था .चूँकि मक्का यमन से सीरिया जाने वाले मुख्य व्यापारिक में पड़ता था इसलिए काफिले वाले काबा के देवताओं पर जो धन चढाते थे वह सभी पुजारियों में बंट जाता था .और अक्सर बहुत कम चढ़ावा आता था .मुहम्मद से समय मुख्य पुजारी " अबू सुफ़यान " था . मुहम्मद ने रमजान के महीने हिजरी 8 सन 630 को उसे कैद कर लिया और कई पुजारियों को क़त्ल करा दिया .और काबा की सभी मूर्तियों को तोड़ कर काबा अपने रिश्तेदारों के हवाले कर दिया .और कहा "सत्य आ गया और असत्य मिट गया " सूरा -बनी इसराइल 17 :81 हमने तो कुरैश के लोगों से रिश्ता बना लिया . और उन्हीं को अल्लाह के इस घर की इबादत करने के लिए नियुक्त कर दिया . ताकि भूखों मरने के डर से बच सकें . और निश्चिन्त होकर खाएं पियें .सूरा- कुरैश 106 : 1 से 4 तक 10-काबा के अन्दर क्या है ?काबा की लम्बाई 39 .6 इंच है .और कुल क्षेत्रफल 627 फुट है . यानि 13 x 9 वर्ग मीटर है छत की ऊंचाई 2 .2 मीटर और दीवार एक मीटर मोटी है उत्तरी अमेरिका के इस्लामी सोसायटी के अध्यक्ष को 1998 में काबा के अन्दर जाने का अवसर मिला था . उन्होंने जो देखा वह इस प्रकार है ,अन्दर दो खम्भे हैं . एक सुगंधी जलाने चौकी है . छत पर कंदील लटका है लेकिन बिजली नहीं है . कोई खिड़की नहीं है . बह एक ही दरवाजा है .देखिये विडियो Inside Kaaba Videohttp://www.youtube.com/watch?NR=1&feature=fvwp&v=17XG-kxUskYइन सभी प्रमाणों से निम्न बातें स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है कि 1.मुसलमानों का अल्लाह ईश्वर नहीं हो सकता क्योंकि वह सर्वव्यापी नहीं है .यदि वह सर्वव्यापी है तो किसी और देश में काबा क्यों नहीं बन सकता .2 - मुहम्मद को यरूशलेम के इतिहास का कोई ज्ञान नहीं था , इस लिए उसे अल्लाह का रसूल मानना मुर्खता है 3 .मुहम्मद का एकेश्वरवाद सिर्फ पाखंड था . वह उसके बहाने दुसरे धर्म स्थानों को लूटना चाहता था . वर्ना उसने उन कबाओं को क्यों तोडा जहाँ मूर्ति पूजा नहीं होती थी .4.अगर अल्लाह सचमुच जिन्दा है तो वह आज किसी मुल्ले मौलवी से बात क्यों नहीं करता , क्या सभी मुसलमान पापी हैं ?5 . मुहमद ने अपने कुनबे के लोगों का हमेशा के लिए पेट भरने का इंतजाम कर दिया था .लेकिन वास्तविकता तो यही है कि अल्लाह चाहे कैसा भी रहा होगा वह आज तक एक ऐसी अँधेरी और बंद कालकोठरी में कैद है , जिसमे हवा भी नहीं जा सकती .अल्लाह काबा में कैद है . और कैदी की उपासना बेकार है !http://www.bible.ca/islam/islam-kaba-history.htm