सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

भगवान शंकर या पैगंबर ??

भगवान ‪#‎शंकर‬ को मुसलमानों का पहला ‪#‎पैगंबर‬ बताने वाले 'जमीयत उलेमा' के मुफ्ती 'मोहम्मद इलियास' ने हम हिंदुओं के साथ वही पुराना कुटिल चाल का सहारा लिया, जो वे यहूदी, बौद्ध और इसाइयों के साथ कर चुके हैं ।
भगवान शिव कोई पैगंबर नहीं साक्षात परमपिता परमेश्वर हैं, हर धर्म मे उनही को सर्वोच्च ईश्वर का स्थान दिया गया है । कुछ तथ्य देखिये और जानिये इस्लाम मे जिस ‪#‎अल्लाह‬की पुजा की जाती है, वो कोई और नहीं "भगवान शिव" ही हैं। जिसे मानने से इस्लाम आजतक इंकार करता रहा है ।
पहले बात करते हैं :- अरब की प्राचीन ‪#‎वैदिक‬ संस्कृति की :-
लगभग 1400 साल पहले अरब में ‪#‎इस्लाम‬ का प्रादुर्भाव हुआ, इससे पहले अरब के निवासी अपने पिछले 4000 साल के इतिहास को भूल चुके हैं, और इस्लाम में इस काल को "जिहालिया" कहा गया है । जिसका अर्थ है, 'अन्धकार का युग' । परन्तु ये जिहालिया का युग ‪#‎मुहम्मद‬ के अनुयाइयो द्वारा फैलाया झूठ है, इस्लाम से पहले वहां पर वैदिक‪#‎सनातन‬ संस्कृति थी, हमारे विभाग ने इस पर एक नहीं हजारो प्रमाण इकट्ठे कर लिए है । अरब के "वैदिक संस्कृति" को नष्ट करने के लिए मुहम्मद के कहने पर वहां के सभी पुस्तकालय, देवालय, विद्यालय जला दिए गए थे, पर कई सबूत आज भी यथावत है ।
* "काबा" साक्षात भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग :-
632 ईo के बाद यहाँ पर पैगम्बर मुहम्मद के रूप में इस्लाम की स्थापना हुई, इस्लाम की स्थापना के बाद अरब में व्यापक स्तर पर हिन्दुओ का नरसंहार हुआ । काबा में स्थित सभी मूर्तियों को मुहम्मद द्वारा तोड़ दिया गया, परन्तु इसके उपरान्त भी मुहम्मद ने काबा में "हजरे-असवद" नाम के एक काले पत्थर को वहां पर रहने दिया और आज हर‪#‎मुसलमान‬ हज के समय उसके दर्शन अवश्य करता है । असल में हजरे अस्वाद का हजरे "हजर" शब्द से बना है, जो की हर का अपभ्रंश है, हर का अर्थ संस्कृत में ‪#‎शिव‬ होता है और अस्वाद "अश्वेत" का ही अपभ्रंश है ।
* इस्लाम मे पुजा जाने वाला दूसरा ‪#‎ShivLing‬ :-
जिस जमजम के कुएं की ये बात करते है, एक शिवलिंग उसमे भी है । जिसकी पूजा खजूर के पत्तो से होती है । इस प्रकार मक्का में एक नहीं, दो शिवलिंग है । फोटो पोस्ट के साथ अटेचैड है ।
* हज के दौरान वैदिक पुजा पद्धति:-
मक्का में काबा में ‪#‎मुस्लिम‬ दाढ़ी साफ कर, बिना सिले २ कपडे लेते है । एक पहन कर और दूसरा कंधे पर डाल कर काबा की घडी की उलटी दिशा में 7 परिक्रमा करते है, जो की पूर्णतः ‪#‎हिन्दू‬ धर्म से लिया गया संस्कार है । अब चूँकि मुहम्मद ने भविष्यपुराण के अनुसार पैशाचिक धर्म की स्थापना की थी, इसलिए नकारात्मक ऊर्जा को मुसलमानों में निरंतर भरे रखने के लिए वहां पर उलटी परिक्रमा का रिवाज रखा गया । फोटो पोस्ट के साथ अटेचैड है ।
* भगवान भोले #शंकर के अर्धचंद्र :-
ठीक इसी प्रकार इस्लाम का अर्धचन्द्र सनातन संस्कृति से लिया गया है, भगवान् शंकर की पूजा करने वाले अरब वासियों ने भगवान् शिव के मस्तक पर स्थित अर्धचन्द्र को इस्लाम में स्थान दिया, चुकी देखने वाले बात ये है की इस्लामिक शहादा के झंडे में और मुहम्मद के मक्का फतह के समय वाले झंडे में ऐसा कुछ नहीं है, ये केवल अन्य गैर अरबी देशो में है जो बाद में इस्लामिक देश बन गये ।
* इस्लाम का "एकीश्वर का सिद्धांत" भी सनातन धर्म से लिया गया है :-
‪#‎Sanatan‬ धर्म मे जहाँ पर देवी ‪#‎देवता‬ और अवतार बहुत है पर इश्वर एक ही है, ॐ शिव, क्यूंकि शिव ही अजन्मा है, ठीक उसी प्रकार इस्लाम मे उसे ‪#‎Allah‬ का नाम दिया गया और उस ज्योति स्वरूप परमात्मा के प्रतिरूप ‪#‎शिवलिंग‬ की ही पुजा की जाती है ।
* काबा का अष्टकोणीय वास्तु :-
जब मुहम्मद ने काबा और मक्का के पास स्थिति सभी सनातनी प्रमाणों को नष्ट कर दिया तब उसके बाद उसका पश्चाताप करने के लिए मुहम्मद ने विधिवत सनातन विधि से काबा में मंदिर की स्थापना की, इसका एक प्रमाण है काबा का अष्टकोणीय वास्तु, इसमें एक चतुर्भुज के ऊपर दूसरा चतुर्भुज टेढ़ा करके मंदिर स्थापना होती है और प्रत्येक सनातन मंदिर में यही विधान है । फोटो पोस्ट के साथ अटेचैड है ।
इन तथ्यों के अलावा कई और सबूत देखिये :-
1) अरब में मिला एक पुराना दीपक - http://bit.ly/1Le1fQV
2) अरब में मिली सरस्वती माता की प्रतिमा :- http://bit.ly/1DuxD2H
3) भविष्य-पुराण मे ‪#‎Muhammad‬ का बर्णन :- http://bit.ly/19BeEqF
http://en.wikipedia.org/wiki/Bhavishya_Purana
4) मुस्लिम रिसर्चर का विडियो लेक्चर :- http://bit.ly/17h8lqM
5) हिन्दू धर्म गुरु के बयान :- http://bit.ly/1JravFV
अत: इस्लाम के #अल्लाह कोई और नहीं अपने भोले भंडारी देवाधिदेव ‪#‎महादेव‬ ही हैं ।
सभी ‪#‎Hindu‬ और ‪#‎Muslim‬ ज़ोर से जयकारा लगाएँ ....
हर हर महादेव

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

जवाब आपके पास है.... ??


ढाई इंच की चमड़े की लचीली ज़ुबान से ब्राह्मणो ठाकुरो वैश्यों और वर्णव्यवस्था को गाली देने में कत्तई मेहनत नहीं लगती, कोई भी दे सकता है। लेकिन मेहनत लगती है 2500 वर्षो के इतिहास का सही अवलोकन करने में जो कोई करना नहीं चाहता।मैं भली भाँति जनता हूँ की 25-30 से ज्यादा लोग इस लेख को पूरा पढ़ेंगे भी नहीं ,न ही मेरे इस लेख से कोई वैचारिक क्रांति ही आएगी, न ही हिन्दू लड़ना छोड़ेंगे और न ही एक भी "जय भीम"कहने वाला अपनी सोच बदल लेगा। लेकिन जो लोग जानकारी के आभाव में जब कट्टर वर्णव्यवस्था के कारण अपराधबोध से ग्रस्त अपने आपको तर्कहीन महसूस करते हैं, वे इसे अंत तक जरूर पढ़ें। इस लेख को मेरे ब्राह्मण होने से ब्राह्मणों की वकालत न समझ कर,सिर्फ हिन्दुओं की गलतफहमी और आपसी मतभेद दूर करने के नज़रिये से बिना किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर पढ़ें तथा मनन करें की एक पक्षीय और अधूरे इतिहास को पढ़ाने का ही नतीजा है आज हिन्दू समाज में फैली हुई वैमनस्यता तथा मतान्तर।लेख बहुत लम्बा और बोरिंग न हो जाये इसलिए बहुत संक्षेप में लिखने का प्रयत्न करूँगा ,तथा इतिहास की कुछ पुस्तकों एवं लिंक के नाम भी लेख के बीच में दे रहा हूं , जिन्हे कोई शक शुबा हो वे उन पुस्तकों एवं लिंक का अध्ययन करके अपना मत निर्धारित कर सकते हैं।पिछले चार दिनों में एक साथ निम्न चार वाक्यों ने मुझे आज लिखने के लिए मजबूर कर दिया ----------जय भीम -जय मीम , इस नारे के साथ 100 यू पी की सीटों पर चुनाव लड़ेंगे ओवैसी। ( टाइम्स ऑफ़ इंडिया -3 फरवरी)चलो हिन्दू धर्म और धर्म ग्रंथो को छोड़ कर नास्तिक हो जाएँ। (फेसबुक पर एक पोस्ट)कल फेसबुक पर मेरे एक कमेंट के जवाब में यह प्रतिउत्तर आना ---"क्या कमाल है वीदेशी लोग बता रहे है ' जय भारत ' पहले आना चाहीये" ।या जब कभी मैं जाति प्रथा की कट्टरता के लिए मात्र दो पक्षों को कटघरे में खड़ा पता हूँ और फिर हिन्दुओं को आपस में फेसबुक या ज़मीन पर लड़ता हुआ पता हूँ तो मन कराह उठता है ,कि हम लोगों ने 1500 वर्षों की शारीरिक गुलामी ही नहीं की बल्कि इतने कट्टर मानसिक गुलाम हो गए की जहाँ वो अकबर तो महान हो गया जिसके राज में 500000 लोगों को गुलाम बना मुसलमान बना दिया , लेकिन उसकी सत्ता न मनाने वाले चित्तौड़गढ़ के 38000 राजपूतों को कटवा दिया था , उस का महिमामंडन करने के लिए एकतरफा चलचित्र भी बने ,ग्रन्थ भी लिखे गए और सीरियल भी बने लेकिन महाराणा प्रताप,गुरु गोबिंद सिंह जी ,गुरु तेग बहादुर , रानी लक्ष्मी बाई को दो पन्नो में समेट दिया गया और पन्ना धाय को बिलकुल ही विस्मृत कर दिया गया। इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण है, कुछ माह पहले रिलीज हुई फिल्म "हैदर" - - 25 साल के सैन्य बलों के कश्मीर में बलिदान को ढ़ाई घंटे की फिल्म में धो कर रख दिया, और कहीं यह नहीं बताया कि सिर्फ 50 सालों में कश्मीर घाटी के 10 लाख हिंदू 3000 के अंदर कैसे सिमट गये, उर्दू राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के मुख्य सम्पादक "अजीज बर्नी" ने कसाब को फांसी होने के बाद एक पुस्तक लिखी "RSS का षड्यंत्र" , जिसका विमोचन कांग्रेस के उपाध्यक्ष "दिग्विजय सिंह" ने किया था, उस पुस्तक के अनुसार 26/11 का मुम्बई हमला RSS ने करवाया था। अगर इसी पुस्तक को राज संरक्षण प्राप्त हो जाये और स्कूलों में पढ़ाई जाने लगे तो 50 साल बाद RSS को सफाई देनी मुश्किल पड़ जायेगी।बात शुरू करता हूँ , उन अतिज्ञानियों के ज्ञान से जिन्होंने शायद ही कभी "मनु समृति"का अध्ययन किया होगा लेकिन जयपुर हाई कोर्ट परिसर में महर्षि मनु की 28 जून 1989 को मूर्ती लगने पर विरोध प्रगट किया और 28 जुलाई 1989 को हाई कोर्ट की फुल बेंच ने अपने पूरे ज्ञान का परिचय देते हुए 48 घंटे में मूर्ती हटाने का आदेश पारित कर दिया।लेकिन दूसरी तरफ से भी अपना पक्ष रखा गया और तीन दिन के लगातार बहस के दौरान मनु के आलोचक पक्ष के वकील मनु को गलत साबित नहीं कर पाये और एक अंतरिम आदेश के साथ अपना पूर्व में मूर्ती हटाने का आदेशहाई कोर्ट को स्थगित करना पड़ा । मूर्ती आज भी वहीँ है।अब इससे पीछे चलते हैं वर्तमान के दलित मसीहा, रामविलास पासवान पर --- क्या उन्होंने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे कर उन पर अत्याचार नहीं किया??? या यहाँ पर भी नीना शर्मा (एक पंजाबी ब्राह्मण),उनकी दूसरी पत्नी जिसने एक दलित से शादी की ने ब्राह्मणत्व की धारणा को तोड़ कर एक दलित से शादी नहीं की।इससे और पीछे चलते हैं, भीम राव अम्बेडकर पर -- "जय भीम" तो बहुत बोला जाता है ,क्या डा. सविता , आंबेडकर जी की पत्नी जो की पुणे के कट्टर ब्राह्मण परिवार से थीं ,उन्होंने क्या जाती पाती के बंधनों की परवाह की थी। और अम्बेडकरवादियों ने बहुत कुशलता से आंबेडकर द्वारा रचित The Buddha And His Dharma जो की उनकी मृत्यु के पश्चात प्रकाशित हुई की मूल प्रस्तावना जो की उन्होंने 15 मार्च 1956 लिखी थी ,को छुपा दिया जिसमे उन्होंने अपनी ब्राह्मण पत्नी और उन ब्राह्मण अध्यापकों ( महादेव आंबेडकर, पेंडसे, कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर ,बापूराव जोशी ) की हृदयस्पर्शी चर्चा की थी। बहुत आसान है महादेव आंबेडकर का भीमराव को अपने घर में खाना खिलाना भूलना ,बहुत आसान है ब्राह्मण सविता देवी का जीवन भुलाना और बहुत आसान है कृष्णा जी अर्जुन कुलेसकर नामक उस ब्राह्मण को भुलाना जिसने भीमराव को "महात्मा बुद्ध " पर पढ़ने को पुस्तक दी और भीमराव बौधि हो गए।उपरोक्त उदाहरणों से मैं यह सिद्ध करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ ,की इस समय में वर्णव्यवस्था का कट्टरपन अपने चरमोत्कर्ष पर नहीं था। बहुत विद्रूप थी इस समय और इससे पहले वर्णव्यवस्था। लेकिन वर्णव्यवस्था में विद्रूपता और कट्टरपन क्यों कब और कैसे आया ,क्या कभी किसी ने वामपंथियों द्वारा रचित इतिहास के इतर कुछ पढ़ने की कोशिश की ???? जो और जितना पढ़ाया गया उसी को समग्र मान कर चल पढ़े भेड़चाल और लगे धर्मग्रंथों और उच्च जातियों को गलियां देने।मनु स्मृति और अन्य धर्मशास्त्रों में वर्णव्यवस्था "कर्म आधारित" थी और कर्म के आधार पर कोई भी अपना वर्ण बदलने के लिए स्वतंत्र था। आज का समाज जाती बंधन तो छोड़िये किसी भी बंधन को न स्वीकारने के दसियों तर्क कुतर्क दे सकता है। लेकिन वर्णव्यस्था पर उंगली उठाने वालों के लिए " vedictruth: वेद और शूद्र " vedictruth.blogspot.com में एक सारगर्भित लेख है।इसके बाद भी कोई अगर कुतर्क दे तो उसे मानव मन का अति कल्पनाशील होना ही मानूंगा।इतिहास में बहुत पीछे न जाते हुए, चन्द्रगुप्त मौर्य (340 BC -298 BC) से शरुआत करते हुए बताना चाहूंगा, कि चन्द्रगुप्त के प्रारंभिक जीवन के बारे में तो इतिहासकारों को बहुत कुछ नहीं मालूम है परन्तु ,"मुद्राराक्षस" में उसे कुलविहीन बताया गया है। जो की बाद में चल कर यदि उस समय वर्णव्यवस्था थी तो उसे तोड़ते हुए अपने समय का एक शक्तिशाली राजा बना। इसी समय "सेल्यूकस" के दूत "मैगस्थनीज़" के यात्रा वृतांत के अनुसार उस समय इसी चतुर्वर्ण में ही कई जातियाँ 1) दार्शनिक 2) कृषि 3)सैनिक 4) निरीक्षक /पर्यवेक्षक 5) पार्षद 6) कर निर्धारक 7) चरवाहे 8) सफाई कर्मचारी और 9 ) कारीगर हुआ करते थे। लेकिन चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र एवं नीतिसार अनुसार, किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार की कठोर सज़ा थी। यहाँ तक की वैसे तो उस समय दास प्रथा नहीं थी लेकिन चाणक्य के अनुसार यदि किसी को मजबूरी में खुद दास बनना पड़े तो भी उससे कोई नीच अथवा अधर्म का कार्य नहीं करवाया जा सकता था।ऐसा करने की स्थिति में दास दासता के बन्धन से स्वमुक्त हो जाता था।सब अपना व्यवसाय चयन करने के लिए स्वतंत्र थे तथा उनसे यह अपेक्षा की जाती थी वे धर्मानुसार उनका निष्पादन करेंगे । मौर्य वंश के इतिहास में कहीं भी शूद्रों के साथ अमानवीय या भेदभावपूर्ण व्यवहार का लेखन पढ़ने में नहीं आया। जब दासों के प्रति इतनी न्यायोचित व्यवस्था थी , तो आम जन तो नीतिशास्त्रों से शासित किये ही जाते थे। एक बात का और उल्लेख यहाँ करना चाहूंगा,इस समय तक वैदिक भागवत धर्म का अधिकांश लोग पालन करते थे लेकिन बौद्ध तथा जैन धर्मों में अपने प्रवर्तकों की सुन्दर सुन्दर मूर्तियों की पूजा की देखा देखि इसी समय पर वैदिक धर्म में मूर्ती पूजा का पर्दुभाव हुआ। इसी समय पर भगवानों के सुन्दर सुन्दर रूपों की कल्पना कर के उन्हें मंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाने लगा।चन्द्रगुप्त मौर्य के लगभग 800 वर्ष पश्चात चीनी तीर्थयात्री "फा हियान" चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय भारत आया उसके अनुसार वर्णव्यवस्था बहुत कठोर नहीं थी,ब्राह्मण व्यापर ,वास्तुकला तथा अन्य प्रकार की सेवाएं दिया करते थे ,क्षत्रिय वणिजियक एवं औद्योगिक कार्य किया करते थे ,वैश्य राजा ही थे ,शूद्र तथा वैश्य व्यापर तथा खेती बड़ी करते थे। कसाई, शिकारी ,मच्छली पकड़ने वाले,माँसाहार करने वाले अछूत समझे जाते थे तथा "वे" नगर के बाहर रहते थे। गंभीर अपराध न के बराबर थे ,अधिकांश लोग शाकाहारी थे। इसीलिए इसे भारतवर्ष का स्वर्ण काल भी कहा जाता है।यही बातें "हुएंन- त्सांग "ने वर्ष 631-644 AD तक अपने भारत भ्रमण के दौरान लिखीं।उस समय विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध नहीं था, सती प्रथा नहीं थी, पर्दा प्रथा नहीं थी , दास प्रथा नहीं थी , हिजड़े नहीं बनाये जाते थे , जौहर प्रथा नहीं थी ,ठगी गिरोह नहीं हुआ करते थे, क़त्ल नहीं हुआ करते थे ,बलात्कार नहीं हुआ करते थे, सभी वर्ण आपस में बहुत सौहाद्रपूर्ण तरीके से रहते थे और ..........…… वर्ण व्यवस्था इतनी कट्टर नहीं हुआ करती थी।यह भारत का स्वर्णकाल कहलाता है। फिर ये सारी कुरीतियां वैदिक धर्म में कहाँ से आ गयीं।इसी स्वर्णकाल के समय लगभग वर्ष 500 AD में जो तीन विशेष कारण जिनकी वजह से वैदिक धर्म का लचीलापन खत्म होना शुरू हुआ, मेरी समझ से वे थे, मध्य एशिया से जाहिल हूणों के आक्रमण तथा उनका भारतीय समाज में घुलना मिलना, बौद्ध धर्म में "वज्रायन" सम्प्रदाय जिसके भिक्षु एवं भिक्षुणियों ने अश्लीलता की सीमाएं तोड़ दी थी, तथा बौद्धों द्वारा वेद शिक्षा बिल्कुल नकार दी गई थी एवं "चर्वाक" सिद्धांत पंच मकार - - मांस,मछली, मद्य, मुद्रा और मैथुन ही जीवन का सार थे का जनसाधारण में लोकप्रिय होना।इस सन्दर्भ में नेहरू और वामपंथियों पर भारतीय मूल के ब्रिटेन में रहने वाले प्रख्यात लेखक --V.S Naipaul ने कटाक्ष करते हुए "The Pioneer" समाचार पत्र में एक लेख लिखा ---- " आप अपने इतिहास को नज़रअंदाज़ कैसे कर सकते हैं ?? लेकिन स्वराज और आज़ादी की लड़ाई ने इसे नज़रअंदाज़ किया है। आप जवाहर लाल नेहरू की Glimpses of World History पढ़ें , ये भारतीय पौराणिक कथाओं के बारे में बताते बताते आक्रान्ताओं के आक्रमण पर पहुँच जाता है। फिर चीन से आये हुए तीर्थयात्री बिहार नालंदा और अनेकों जगह पहुँच जाते हैं। पर आप यह नहीं बताते की फिर क्या हुआ ,क्यों आज अनेकों जगह, जहाँ का गौरवपूर्ण इतिहास था खंडहर क्यों हैं ??? आप यह नहीं बताते की भुबनेश्वर, काशी और मथुरा को कैसे अपवित्र किया गया। "वर्णव्यवस्था के लचीलेपन के ख़त्म होने के एक से बढ़ कर एक कारण हैं, जो मेरी नज़र में सबसे अहम कारण है उसे सबसे अंत में लिखूंगा।लेकिन जो इतिहास हमें पढ़ाया गया है ,उसमे सोमनाथ के मंदिर को लूटना तो बताया गया है परन्तु महमूद ग़ज़नवी ने कंधार के रास्ते आते और जाते हुए मृत्यु का क्या तांडव खेला कभी नहीं बताया जाता। उसमे 1206 के मोहम्मद गौरी से लेकर 1857 तक के बहादुर शाह ज़फर अधूरा चित्रण ही आपके सामने किया गया है, पूरा सच शायद बताने से मुस्लिम वर्ग नाराज़ हो जाता। और वैसे भी जैसा की वीर सावरकर ने 1946 लिख दिया था, कि लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने के लिए ततकालीन कांग्रेस के नेताओं ने यही रणनीति बनायीं थी की ,हिन्दुओं में फूट डाली जाये और मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया जाये। इसी का आज यह दुष्परिणाम है की न तो मुस्लिम आक्रान्ताओं का पूरा इतिहास ही पढ़ाया गया और आज हिन्दू पूरी जानकारी के आभाव में वर्णव्यवस्था के नाम पर चाहे सड़क हो चाहे फेसबुक कहीं पर भी भिड़ जाते हैं।जी हाँ हमारा इतिहास यह नहीं बताता की वर्ष 1000 AD की भारत की जनसँख्या 15 करोड़ से घट कर वर्ष 1500 AD में 10 करोड़ क्यों रह गयी थी ??? नीचे जो लिख रहा हूँ उसमे जबरन धर्म परिवर्तन, बलात्कार ,कत्ले आम, कम उम्र के लड़कों का हिजड़ा बनाया जाना आप खुद जोड़ते जाईयेगा।( नीचे दिए हुए तथ्य ,1)Islam's India slave Part-1,by M.A Khan, 2)"The Legacy of Jihad: Islamic Holy war and the fate of non non -Muslims By A.G Bostom.and 3)Slave trading During Mulim rule, by K.S Lal से लिए गए हैं )http://islammonitor.org/index.php…-उपरोक्त पुस्तक जो की कई अन्य पुस्तकों का निचोड़ हैं , का सारांश नीचे लिख रहा हूँ ---------1 )महमूद ग़ज़नवी ---वर्ष 997 से 1030 तक 2000000 , बीस लाख सिर्फ बीस लाख लोगों को महमूद ग़ज़नवी ने तो क़त्ल किया था और 750000 सात लाख पचास हज़ार लोगों को गुलाम बना कर भारत से ले गया था 17 बार के आक्रमण के दौरान (997 -1030). ---- जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया , वे शूद्र बना कर इस्लाम में शामिल कर लिए गए। इनमे ब्राह्मण भी थे क्षत्रिय भी वैश्य भी और शूद्र तो थे ही।2 ) दिल्ली सल्तनत --1206 से 1210 ---- कुतुबुद्दीन ऐबक --- सिर्फ 20000 गुलाम राजा भीम से लिए थे और 50000 गुलाम कालिंजर के राजा से लिए थे। जो नहीं माना उनकी बस्तियों की बस्तियां उजाड़ दीं। गुलामों की उस समय यह हालत हो गयी कि गरीब से गरीब मुसलमान के पास भी सैंकड़ों हिन्दू गुलाम हुआ करते थे ।3) इल्ल्तुत्मिश ---1236-- जो भी मिलता उसे गुलाम बना कर, उस पर इस्लाम थोप देता था।4) बलबन ----1250-60 --- ने एक राजाज्ञा निकल दी थी , 8 वर्ष से ऊपर का कोई भी आदमी मिले उसे मौत के घाट उत्तर दो। महिलाओं और लड़कियों वो गुलाम बना लिया करता था। उसने भी शहर के शहर खाली कर दिए।5) अलाउद्दीन ख़िलजी ---- 1296 -1316 -- अपने सोमनाथ की लूट के दौरान उसने कम उम्र की 20000 हज़ार लड़कियों को दासी बनाया, और अपने शासन में इतने लड़के और लड़कियों को गुलाम बनाया कि गिनती कलम से लिखी नहीं जा सकती। उसने हज़ारों क़त्ल करे थे और उसके गुलमखाने में 50000 लड़के थे और 70000 गुलाम लगातार उसके लिए इमारतें बनाने का काम करते थे। इस समय का ज़िक्र आमिर खुसरो के लफ़्ज़ों में इस प्रकार है " तुर्क जहाँ चाहे से हिंदुओं को उठा लेते थे और जहाँ चाहे बेच देते थे।6) मोहम्मद तुगलक ---1325 -1351 ---इसके समय पर इतने कैदी हो गए थे की हज़ारों की संख्या में रोज़ कौड़ियों के दाम पर बेचे जाते थे।7) फ़िरोज़ शाह तुगलक -- 1351 -1388 -- इसके पास 180000 गुलाम थे जिसमे से 40000 इसके महल की सुरक्षा में लगे हुए थे। इसी समय "इब्न बतूता " लिखते हैं की क़त्ल करने और गुलाम बनाने की वज़ह से गांव के गांव खाली हो गए थे। गुलाम खरीदने और बेचने के लिए खुरासान ,गज़नी,कंधार,काबुल और समरकंद मुख्य मंडियां हुआ करती थीं। वहां पर इस्तांबुल,इराक और चीन से से भी गुलाम ल कर बेचे जाते थे।8) तैमूर लंग --1398/99 --- इसने दिल्ली पर हमले के दौरान 100000 गुलामों को मौत के घाट उतरने के पश्चात ,2 से ढ़ाई लाख कारीगर गुलाम बना कर समरकंद और मध्य एशिया ले गया।9) सैय्यद वंश --1400-1451 -- हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं बदला, इसने कटिहार ,मालवा और अलवर को लूटा और जो पकड़ में आया उसे या तो मार दिया या गुलाम बना लिया।10) लोधी वंश-1451--1525 ---- इसके सुल्तान बहलूल ने नीमसार से हिन्दुओं का पूरी तरह से वंशनाश कर दिया और उसके बेटे सिकंदर लोधी ने यही हाल रीवां और ग्वालियर का किया।11 ) मुग़ल राज्य --1525 -1707 --- बाबर -- इतिहास में ,क़ुरान की कंठस्थ आयतों ,कत्लेआम और गुलाम बनाने के लिए ही जाना जाता है।12 ) अकबर ---1556 -1605 ---- बहुत महान थे यह अकबर महाशय , चित्तोड़ ने जब इनकी सत्ता मानाने से इंकार कर दिया तो इन्होने 30000 काश्तकारों और 8000 राजपूतों को या तो मार दिया या गुलाम बना लिया और, एक दिन भरी दोपहर में 2000 कैदियों का सर कलम किया था। कहते हैं की इन्होने गुलाम प्रथा रोकने की बहुत कोशिश की फिर भी इसके हरम में 5000 महिलाएं थीं। इनके समय में ज्यादातर लड़कों को खासतौर पर बंगाल की तरफ अपहरण किया जाता था और उन्हें हिजड़ा बना दिया जाता था। इनके मुख्य सेनापति अब्दुल्लाह खान उज़्बेग, की अगर मानी जाये तो उसने 500000 पुरुष और गुलाम बना कर मुसलमान बनाया था और उसके हिसाब से क़यामत के दिन तक वह लोग एक करोड़ हो जायेंगे।13 ) जहांगीर 1605 --1627 --- इन साहब के हिसाब से इनके और इनके बाप के शासन काल में 5 से 600000 मूर्तिपूजकों का कत्ल किया गया था औरसिर्फ 1619-20 में ही इसने 200000 हिन्दू गुलामों को ईरान में बेचा था।14) शाहजहाँ 1628 --1658 ----इसके राज में इस्लाम बस ही कानून था, या तो मुसलमान बन जाओ या मौत के घाट उत्तर जाओ। आगरा में एक दिन इसने 4000 हिन्दुओं को मौत के घाट उतरा था। जवान लड़कियां इसके हरम भेज दी जाती थीं। इसके हरम में सिर्फ 8000 औरतें थी।15) औरंगज़ेब--1658-1707 -- इसके बारे में तो बस इतना ही कहा जा सकता है की ,जब तक सवा मन जनेऊ नहीं तुलवा लेता था पानी नहीं पीता था। बाकि काशी मथुरा और अयोध्या इसी की देन हैं। मथुरा के मंदिर 200 सालों में बने थे इसने अपने 50 साल के शासन में मिट्टी में मिला दिए। गोलकुंडा में 1659 सिर्फ 22000 लड़कों को हिजड़ा बनाया था।16)फर्रुख्सियार -- 1713 -1719 ,यही शख्स है जो नेहरू परिवार को कश्मीर से दिल्ली ले कर आया था, और गुरदासपुर में हजारों सिखों को मार और गुलाम बनाया था।17) नादिर शाह --1738 भारत आया सिर्फ 200000 लोगों को मौत के घाट उत्तर कर हज़ारों सुन्दर लड़कियों को और बेशुमार दौलत ले कर चला गया।18) अहमद शाह अब्दाली --- 1757-1760 -1761 ----पानीपत की लड़ाई में मराठों युद्ध के दौरान हज़ारों लोग मरे ,और एक बार में यह 22000 लोगों को गुलाम बना कर ले गया था।19) टीपू सुल्तान ---1750 - 1799 ----त्रावणकोर के युद्ध में इसने 10000 हिन्दू और ईसाईयों को मारा था एक मुस्लिम किताब के हिसाब से कुर्ग में रहने वाले 70000 हिन्दुओं को इसने मुसलमान बनाया था।ऐसा नहीं कि हिंदुओं ने डटकर मुकाबला नहीं किया था, बहुत किया था, उसके बाद ही इस संख्या का निर्धारण इतिहासकारों ने किया जो कि उपरोक्त दी गई पुस्तकों एवं लिंक में दिया गया है ।गुलाम हिन्दू चाहे मुसलमान बने या नहीं ,उन्हें नीचा दिखाने के लिए इनसे अस्तबलों का , हाथियों को रखने का, सिपाहियों के सेवक होने का और बेइज़्ज़त करने के लिए साफ सफाई करने के काम दिए जाते थे। जो गुलाम नहीं भी बने उच्च वर्ण के लोग वैसे ही सब कुछ लूटा कर, अपना धर्म न छोड़ने के फेर में जजिया और तमाम तरीके के कर चुकाते चुकाते समाज में वैसे ही नीचे की पायदान शूद्रता पर पहुँच गए। जो आतताइयों से जान बचा कर जंगलों में भाग गए जिन्दा रहने के उन्होंने मांसाहार खाना शुरू कर दिया और जैसी की प्रथा थी ,और अछूत घोषित हो गए।Now come to the valid reason for Rigidity in Indian Caste System--------वर्ष 497 AD से 1197 AD तक भारत में एक से बढ़ कर एक विश्व विद्यालय हुआ करते थे, जैसे तक्षिला, नालंदा, जगदाला, ओदन्तपुर। नालंदा विश्वविद्यालय में ही 10000 छात्र ,2000 शिक्षक तथा नौ मंज़िल का पुस्तकालय हुआ करता था, जहाँ विश्व के विभिन्न भागों से पड़ने के लिए विद्यार्थी आते थे। ये सारे के सारे मुग़ल आक्रमण कारियों ने ध्वस्त करके जला दिए। न सिर्फ इन विद्या और ज्ञान के मंदिरों को जलाया गया बल्कि पूजा पाठ पर सार्वजानिक और निजी रूप से भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इतना तो सबने पढ़ा है ,लेकिन उसके बाद यह नहीं सोचा कि अपने धर्म को ज़िंदा रखने के लिए ज्ञान, धर्मशास्त्रों और संस्कारों को मुंह जुबानी पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया गया । सबसे पहला खतरा जो धर्म पर मंडराया था ,वो था मलेच्छों का हिन्दू धर्म में अतिक्रमण / प्रवेश रोकना। और जिसका जैसा वर्ण था वो उसी को बचाने लग गया। लड़कियां मुगलों के हरम में न जाएँ ,इसलिए लड़की का जन्म अभिशाप लगा ,छोटी उम्र में उनकी शादी इसलिए कर दी जाती थी की अब इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी इसका पति संभाले, मुसलमानों की गन्दी निगाह से बचने के लिए पर्दा प्रथा शुरू हो गयी। विवाहित महिलाएं पति के युद्ध में जाते ही दुशमनों के हाथों अपमानित होने से बचने के लिए जौहर करने लगीं ,विधवा स्त्रियों को मालूम था की पति के मरने के बाद उनकी इज़्ज़त बचाने कोई नहीं आएगा इसलिए सती होने लगीं, जिन हिन्दुओं को घर से बेघर कर दिया गया उन्हें भी पेट पालने के लिए ठगी लूटमार का पेशा अख्तिया करना पड़ा। कौन सी विकृति है जो मुसलमानों के अतिक्रमण से पहले इस देश में थी और उनके आने के बाद किसी देश में नहीं है। हिन्दू धर्म में शूद्र कृत्यों वाले बहरूपिये आवरण ओढ़ कर इसे कुरूप न कर दें इसीलिए वर्णव्यवस्था कट्टर हुई , इसलिए कोई अतिशियोक्ति नहीं कि इस पूरी प्रक्रिया में धर्म रूढ़िवादी हो गया या वर्तमान परिभाषा के हिसाब से उसमे विकृतियाँ आ गयी। मजबूरी थी वर्णों का कछुए की तरह खोल में सिकुड़ना।यहीं से वर्ण व्यवस्था का लचीलापन जो की धर्मसम्मत था ख़त्म हो गया। इसके लिए आज अपने को शूद्र कहने वाले ब्राह्मणो या क्षत्रियों को दोष देकर अपने नए मित्रों को ज़िम्मेदार कभी नहीं ठहराते हैं । वैसे जब आप लोग डा. सविता माई(आंबेडकर जी की ब्राह्मण पत्नी) के संस्कारों को ज़बरदस्ती छुपा सकते हैं,जब आप लोग अपने पूर्वजो के बलिदान को याद नहीं रख सकते हैं जिनकी वजह से आप आज भी हिन्दू हैं तो आप आज उन्मुक्त कण्ठ से ब्राह्मणो और क्षत्रिओं को गाली भी दे सकते हैं,जिनके पूर्वजों ने न जाने इस धर्म को ज़िंदा रखने के लिए क्या क्या कष्ट सहे वर्ना आज आप भी अफगानिस्तान , सीरिया और इराक जैसे दिन भोग रहे होते।और आज जिस वर्णव्यवस्था में हम विभाजित हैं उसका श्रेय 1881 एवं 1902 की अंग्रेजों द्वारा कराई गयी जनगणना है जिसमें उन्होंने demographic segmentation को सरल बनाने के लिए हिंदु समाज को इन चार वर्णों में चिपका दिया। वैसे भील, गोंड, सन्थाल और सभी आदिवासियों के पिछड़ेपन के लिए क्या वर्णव्यवस्था जिम्मेदार है?????कौन ज़िम्मेदार है इस पूरे प्रकरण के लिए अनजाने या भूलवश धर्म में विकृतियाँ लाने वाले पंडित ??? या उन्हें मजबूर करने वाले मुसलमान आक्रांता ??? या आपसे सच्चाई छुपाने वाले इतिहास के लेखक ???? कोई भी ज़िम्मेदार हो पर हिन्दू भाइयो अब तो आपस में लड़ना छोड़ कर भविष्य की तरफ एक सकारात्मक कदम उठाओ। अगर पिछड़ी जाति के मोदी देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं, तो उतने ही पथ तुम्हारे लिए भी खुले हैं ,मान लिया कल तक तुम पर समाज के बहुत बंधन थे पर आज तो नहीं हैं ।अगर आज हिन्दू एक होते तो आज कश्मीर घाटी में गिनती के 2984 हिन्दू न बचते और 4.50 लाख कश्मीरी हिंदू 25 साल से अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह न रह रहे होते और 16 दिसंबर के निर्भया काण्ड ,मेरठ काण्ड ,हापुड़ काण्ड …………गिनती बेशुमार है, इस देश में न होते।वैसे सबसे मजे की बात यह है कि जिनके पूर्वजों ने ये सब अत्याचार किए, 800 साल तक राज किया, वो तो पाक साफ हो कर अल्पसंख्यकों के नाम पर आरक्षण भी पा गये और कटघरे में खड़े हैं, कौन????? जवाब आपके पास है


मंगलवार, 13 जनवरी 2015

"गाँव की हवेली"

"गाँव की हवेली"
गाँव में एक बहुत बड़ी हवेली थी , या यूं कहें हवेली बसी उसके बाद ही पूरा गाँव बसा , हवेली के दूरदृष्टा पूर्वजों ने पूरे गाँव में महान परम्पराएँ बसाई , भाषाएँ विकसित की , इंसानों जैसा जीना सिखाया , वैज्ञानिक सोच दी , पर जैसे हर गाँव में होता है , दो चार घर काले धंधे कर बढे हो गए , मंजिलें चढ़ गयीं , मोटर साइकल आई , ट्रेक्टर आया , फ़ोन आ गया , पर पैसे से कभी अकल आते देखि है ? वो वहीँ की वहीँ रही , सोच वही दकियानूसी कबीलाई , हवेली अब इन "नवधनाढ्यों" को आँखों में चुभने लगी , "जब तक ये हवेली रहेगी तब तक गाँव हमारा इतिहास याद रखेगा " , ऐसी भावना घर करने लगी , गाँव में वर्चस्व स्थापित करने का एक ही रास्ता है , हवेली को ख़त्म करो , बर्बाद करो !!
अब साजिशें शुरू हुईं , बच्चों के खेलने के नाम पर पहले हवेली की बाउंड्री वाल तोड़ी गयी , खिड़कियों के शीशे तोड़े गए , हवेली में थोड़ी बहस हुई तो बड़ों ने कहा "हम इतने दकियानूस हो गए हैं की बच्चों को खेलने की जगह भी ना दे सकें ?" जब बाउंड्री वॉल टूट गयी तो आहिस्ता से मनचलों ने हवेली का पिछला चबूतरा जुआ खेलने का अड्डा बना लिया , बहस हुई तो निष्कर्ष ये निकला की " हमारे बच्चों के संस्कार क्या इतने कमज़ोर हैं की जुए खेलते देख बिगड़ जाएँ , बाहर जो करता है करने दो , अपना ध्यान खुद रखो " , हवेली का एक कमरा जो बरसों पहले परदादा ने एक असहाय की मदद के लिए किराये से दिया था उसपर उसके एहसान फरामोश बच्चों ने कब्ज़ा कर लिया, घर में खूब कलह हुई तो बाबूजी ने शांति और अहिंसा का सन्देश देकर चुप करा दिया , कहा "एक कमरे के जाने से हवेली बर्बाद नहीं हो जाएगी" !!
हवेली के बुजुर्गों में एक अजीब सा नशा था हवेली के रुद्बे को लेकर , उसके इतिहास को लेकर , अपने पुरखों की जंग लगी बन्दूक रोज़ देखते पर अपने बच्चों को कभी उसे छूने ना देते , हम बहुत महान थे पर क्यों थे और आगे कैसे बने रह सकते हैं ये कभी नहीं बताते , शायद उन्हें ही ना पता हो , इधर चौराहे पर हवेली की हंसी उड़ती , चुटकुले सुनाये जाते , इन्ही बुजुर्गों की खिल्ली उड़ाई जाती !! यही क्रम चलता रहा और हवेली चारों और से बर्बाद होती रही !!
हालत ये है की हवेली की चारों दीवारों पर आजकल पूरा गाँव पेशाब करता है , दीवार गाँव की पेशाब से सिलसिलकर "ऐतिहासिक" हो गयी है , अमोनिया की "सहिष्णुता" से भरी खुशबु पूरी हवेली को सुगन्धित कर रही हैं पर घर के बड़े बूढ़े मानने को तैयार नहीं है , बार बार किसी मानसिक विक्षिप्त की तरह "सनातन हवेली" "सनातन हवेली" जैसा शब्द रटते रहते हैं , कहते हैं कुछ नहीं बिगड़ेगा , कहते हैं ये तो हवेली की महान परम्परा है की हमने कभी किसी को अंदर घुसने से नहीं रोका , अजीबोगरीब बहाने ढूंढ लियें हैं अपनी कायरता को छुपाने के , कह रहे हैं अमोनिया की खुशबु सूंघने से बाल काले रहेंगे , ये तो हमारे भले के लिए ही है !! कल वहीँ असलम मियां अपनी कलात्मकता का प्रदर्शन करते हुए जलेबिनुमा पेशाब कर रहे थे तो हवेली के बच्चे ने पत्थर फेंक दिया , असलम मियां ने बाबूजी से शिकायत की और उस बच्चे के कट्टरपंथी हो जाने का खतरा बताया , तब से बाबूजी ने बड़े भैया को दीवार के पास ही तैनात कर दिया है ताकि कोई पेशाब करे तो उसे कोई रोके टोके ना , बेइज्जती ना हो , उसके लोकतान्त्रिक अधिकारों का हनन ना हो !!
किसी को पान की पीक करते , किसी को पेशाब करते , किसी को मैदान में तम्बू गाड़ते , किसी को पीछे की शीशम की खिड़की उखाड़ते बच्चे रोज़ देखते हैं , हवेली रोज़ बिक रही है , खुद रही हैं , नेस्तनाबूत हो रही है , आँखों से खून आता है , मुट्टीयाँ भींच कर चुप रहना पड़ता है , सहिष्णु बाबूजी हैं , कायर भाई हैं , सेक्युलर भाभियाँ हैं , हवेली महान है , हवेली सनातन है !!
भाई Gaurav Sharma जी की कलम से ।

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

Improving State of Media in India – Key Solutions:

Improving State of Media in India – Key Solutions: 

1. A Ethics Code of Conduct be written for Media and all media/PR company CEOs/Owners must be made signatories to it. Violation should mean defined and serious consequences. 
2. I& B Ministry may consider having a department to monitor the media and take action if required 
3. A regulatory body should be established which over sees the working of media houses and also defines the ‘Operating & Broadcasting Guidelines for them 
4. It should be Mandatory for media to disclose the source of Paid News 
5. Sources of income of media houses should be audited and any undefined source should be made answerable 
6. All journalists should be made to declare gifts above Rs 100 to their company 
7. Accepting direct/indirect favours by journalists should be made a criminal offence 
8. The amount of advertisements in a newspaper or on a news channel per day, should have a cap on it
9. Misleading advertisement should be banned 
10. Online debates should be avoided if the channel is not able to maintain decency 
11. Reporting of speculations and the slamming between political parties should be reduced 
12. Content of positive and informative news needs to increase to about 70% of the broadcast 
13. Necessary steps should be taken against media houses owned by Foreigners, who tend to show India in poor light 
14. Media should not be allowed to make a HERO of a Criminal by reporting on him every day 
15. Media should restrain itself from trying a person before courts do so 
16. There should be a limit to the number of news channels operating 
17. DD/Prasar Bharati should be made autonomous like BBC in Britain. If DD provides unbiased and high quality content, then others will be forced to follow suit 

State of Media in India – Root Causes 

1. Media has a lot of authority vested in them 
2. There is no objectivity in news coverage 
3. Media houses are getting more and more profit centred 
4. News which will generate better TRPs are given preference 
5. Government watch over the content produced in newspapers and magazines is weak 
6. Corruption and paid news is prevalent 
7. No strict laws on journalists accepting favours from companies/individuals 
8. More the advertisements in the newspapers, more the profits 
9. A nexus has developed between the media and the corporate world with PR companies in the centre of it 
10. Media houses need Ad money to survive and it becomes hard to unmask(prosecute) the same person/institution who is a key revenue source 
11. Some of the smaller news channels do not have the resources to cover international news 
12. Many media houses are owned by politicians and corporate honchos 
13. Some reporters are not educated/trained enough to understand the sensitivity of some events 
14. Too many media channels create unhealthy competition, unsavoury practices and blatant commercialization 
15. Media industry lacks good journalist with in depth knowledge 
16. Media is drifting away from its social responsibility 
17. Sensitivity of the news with maximum social impact is not a priority today 
18. Too many institutions/universities teach journalism today, but don't teach the primary responsibility of a journalist 

State of Media in India - Key Issues 

1. The power of media is misused 
2. Media houses are moving away from their primary responsibility, which is to report good and genuine news 
3. Absence of well researched presentations in both print and electronic media 
4. Only negative news is covered mostly; positive news is ignored 
5. News channels sensationalize sensitive issues 
6. Obscene content is published in newspaper and magazines 
7. Media overhypes social problems in India 
8. Defamation of individuals by media 
9. Journalists accept favours from individuals to publish their news 
10. Many PR (Public Relations) companies give gifts/cash to journalists for publishing their customer's news/providing coverage 
11. Newspapers publish news about companies who are giving them ads on a preference basis (sometimes on the same day) 
12. Newspapers are mostly advertisements with minimal news 
13. A lot of news articles don’t have credible sources 
14. Too many mediums; the real news gets lost 
15. Many political parties and industrialists influence the media to fulfil their need 
16. News papers and channels at times ask for pay offs to hold back certain news against businesses/politicians/celebrities 
17. Some news papers even promise the exact page /column/article size for paid news (non advertorial) 
18. Sensitivity of information is many a times ignored or taken too softly, leading to communal clashes 
19. Majority of the channels do not cover any international news 
20. Debates on television seem to be a fighting ground than serious discussions 
21. There is limited focus on reporting positive/constructive/inspiring news and people

By -  Rajendra Gupta https://www.localcircles.com/a/memberprofile?uid=WKkzuFHSLE2Yx-sSiCfAgPJ2svQiewpEan-h1buNDAI&comid=Hsg1UWHf1zU-zcw2wCBInFu2A5hv8m5MQte8QulnHMI