रविवार, 27 जनवरी 2013

कौन सी पार्टी लागू करेगी जनता के ये ४ एजेंडे ?

Ram Samudre Drf

कौन सी पार्टी लागू करेगी जनता के ये ४ एजेंडे ?
एजेंडा नं. १ – आर्थिक आधार पर वर्गीकरण करो और उसके अनुसार जीवानावाश्यक चीजों के दाम तथा टैक्स स्लैब बनाकर लागू करो !!
लोकतंत्र-प्रेमी दोस्तो ! सरकार के द्वारा आम जनता और सरकार के बीच हमेशा से ही भेद किया जा रहा है. ज़रा देखिये – एक तरफ तो सरकार मानती है कि जीने के लिए कम से कम जितना पैसा चाहिये उतना सरकार में निम्न-स्तर के कर्मचारियों को वेतन दिया जा रहा है जिसके नीचे गरीबी का स्तर माना जाना चाहिये. सरकार में सबसे निचले स्तर पर अशिक्षित या कम-शिक्षित लोगों को चपरासी के पद दिए गए हैं और इन्हें १५,०००/- मासिक वेतन के अलावा घर-किराया भत्ता दिया जाता है ताकि वे कम से कम एक कमरा-रसोई-बाथरूम का मकान लेकर रह सकें जो कि जीने की कम से कम जरूरत है. साथ ही उन्हें हर ६ महीने में मँहगाई भत्ता बढ़ाकर दिया जाता है ताकि उन्हें मँहगाई से राहत मिल सके. यह रोज के हिसाब से देखें तो न्यूनतम लगभग ६०० रुपये है. सरकारी अमले की संख्या देश की जनसँख्या का मात्र ४-५ % है जबकि उन पर देश की कुल आय का लगभग ४८% धन खर्च किया जा रहा है. बाकी लगभग ५२% धन जनता के कार्यों के नाम पर या विकास के कामों के नाम पर दिया जा रहा है ओर उसमे से ८५% राजनीतिज्ञों, ठेकेदारों, दलालों ओर सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा कमीशन के तौर पर भ्रष्टाचार के माध्यम से लूट लिया जा रहा है.
जबकि दूसरी ओर गाँवों में २८ रुपये ओर शहरों में ३२ रुपये रोज कमाने वाले को सरकार गरीब नहीं माना गया है. इन गैर-सरकारी लोगों को भी उसी महंगे दामों पर खाने-पीने-रहने की सुविधाएँ जुटाना होता है जो कि स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि असंभव है अर्थात गई-सरकारी लोगों को सिर्फ लूटने ओर घुट-घुटकर मरने छोड़ दिया गया है. क्या यही है आजादी ओर लोकतंत्र? सरकारी नीतियाँ इस तरह बनाई जा रही हैं जो सिर्फ अमीरों को ओर अमीर बना रही है ओर जनता को लूटा जा रहा है. माध्यम वर्ग कर्ज लेकर बच्चों को पढाने, कर्ज लेकर मकान बनवाने को मजबूर है ओर उनकी गाढ़ी कमाई ब्याज के रूप में लूटा जा रहा है. कई प्रकार टैक्स लगाकर जीवनावश्यक वस्तुएँ महँगी कर दी गईं हैं.
हमारी माँग है कि सरकार द्वारा सरकारी अमले और आम जनता के बीच का यह भेद मिटाया जाए और जनता का बजट बनाया जाए. लोकतंत्र का अर्थ ही है “रॉबिनहुड-तंत्र” अर्थात जो जमाखोरों के वसूली करके वंचितों को सहायता करे, इसे ही लोकतान्त्रिक भाषा में “वंचितों को सब्सिडी” कहते हैं. पर सरकार सब्सिडी को खत्म करती जा रही है ताकि बड़ी कम्पनियाँ चलाने वाले अमीर और अमीर हो सकें और राजनीतिक पार्टियों को ज्यादा से ज्यादा चुनावी चंदा दे सकें सुर राजनीतिक पार्टियाँ इस देश की जनसँख्या के सबसे बड़े हिस्से यानि गरीबों के वोट धन खर्च करके उन्हें भरमाकर खरीद सकें.
हमारी माँग है कि सरकारी क्षेत्र के लिए सेट किए गए स्तरों के अनुसार आम जनता में भी “आर्थिक स्तर” माने जाएँ. अर्थात;
१. ग्रुप “डी” के सरकारी कर्मचारियों के वेतन से कम कमाने वाले आम लोगों को “गरीब” की श्रेणी में रखा जाए.
२. जिस तरह ग्रुप “डी” के कर्मचारियों को निम्न-स्तर माना जाता है, उनकी आय के बराबर कमाने वाले आम आदमी को भी “निम्न-स्तर वर्ग” की श्रेणी में रखा जाए.
३. ग्रुप “सी” के कमचारियों की आय के बराबर कमाने वाले आम लोगों को “निम्न-माध्यम वर्ग” की श्रेणी में रखा जाए.
४. ग्रुप “बी” के अधिकारियों की आय के बराबर कमाने वाले आम लोगों को “माध्यम वर्ग” की श्रेणी में रखा जाए.
५. ग्रुप “ए” के अधिकारियों की आय के बराबर कमाने वाले आम लोगों को “उच्च-माध्यम वर्ग” की श्रेणी में रखा जाए.
६. ग्रुप “ए” के अधिकारियों की आय से अधिक कमाने वाले लोगों को “उच्च वर्ग” की श्रेणी में रखा जाए.
तथा, जीवनावश्यक चीजों का दाम जैसे खाना-पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा को इन्हीं स्तरों के अनुसार स्लैब बनाकर फिक्स किए जाएँ. उदाहरण के लिए - श्रेणी-एक में आने वाले लोगों को १ रुपये में, श्रेणी-दो के लोगों को २ रुपये में, श्रेणी-तीन के लोगों को ३ रुपये में, श्रेणी-चार के लोगों को चार रुपये में, श्रेणी-पाँच के लोगों को ५ रुपये में और श्रेणी-छह के लोगों को इनसे दूने अर्थात १० रुपये में.
इसी तरह टैक्स के लिए स्लैब बनाए जाएँ. उदाहरण के लिए - श्रेणी-एक और श्रेणी-दो में आने वाले लोगों पर टैक्स लगाने का कोई आधार ही नहीं है क्योंकि उन्हें उनके अधिकार ही नहीं दिए जा रहे, श्रेणी-तीन के लोगों को १ रुपये में, श्रेणी-चार के लोगों को २ रुपये में, श्रेणी-पाँच के लोगों को ५ रुपये में और श्रेणी-छह के लोगों को इनसे दूने अर्थात १० रुपये.
लोकतंत्र प्रेमी दोस्तो ! हम बचपन से सुनते आये हैं कि हमारा देश एक जनतांत्रिक देश है और हमें बताया गया है कि जनतंत्र का अर्थ है “जनता का शासन – जनता के द्वारा – जनता के लिए”. हम सभी अपने-अपने तौर पर सोचते-विचारते रहते हैं और तुलना करते रहते हैं कि क्या वास्तव में जो व्यवस्था (System) चल रही है वो किस तरह कहा जा सकता है कि यह व्यवस्था “जनता का शासन – जनता के द्वारा – जनता के लिए” वाली ही है? भाषणों में बताया जाता है कि संविधान ने हम सभी नागरिकों को सरकार बनाने में और सरकार चलाने में एकसमान अधिकार दिए हैं. परन्तु क्या वास्तव में ऐसा ही है? क्या नागरिक ही सरकार बनाते हैं? क्या नागरिक ही सरकार चलाते हैं? और क्या नागरिकों की मर्जी से ही संसद और विधान सभाओं में नीतियाँ बनाई जाती हैं? आज तक जो भी क़ानून जो भी नीतियाँ संसद और विधान सभाओं में पारित किए गए हैं वो जनता की मर्जी से ही बनाए गए हैं? तो क्या जनता ने ही यह तय किया है कि हमें मँहगाई बढ़ाने वाली नीतियाँ चाहिये? क्या जनता ने ही यह तय किया है कि हम अमीरों को और अमीर बनायेंगे और गरीबों को लूट-लूटकर और गरीब बनायेंगे? क्या जनता ने ही यह तय किया है कि हमें ऐसी पुलिस चाहिये जो सिर्फ राजनीतिज्ञों की सुरक्षा में लगी हो और सामान्य लोगों के साथ जब तक कोई दुर्घटना ना घट जाए चोरियाँ-लूटपाट-हत्या-बलात्कार ना हो जाये तब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहो और अपने सीनियरों को सैल्यूट मारते रहो और रिश्वत उगाहते रहो? क्या यह नागरिकों ने ही तय किया है कि सरकारी नौकर साल में ५२ रविवार, ५२ शनिवार, १८ अन्य छुट्टियों, एक महीने की पूर्ण-वेतन छुट्टियाँ, ३० दिन की अर्धवेतन और ट्रेन बंद है या छूट गई या बसों की हड़ताल या टैक्सियों की हड़ताल के कारण कार्यालय न पहुँच पाने के कारण विशेष छुट्टियाँ लेंगे, कार्यालय में ही सत्यनारायण की पूजा, १० दिन तक गणेशोत्सव, १० दिन नवरात्रोत्सव, एक हफ्ते दशहरा-दीवाली के नाम पर काम बंद करके मस्ती करेंगे अर्थात साल में लगभग १७० दिन छुट्टियाँ लेंगे और मात्र २०० दिन केवल ६-७ घंटे के लिए कार्यालय आयेंगे वो भी अपनी मर्जी से कभी भी लेट और कभी भी कार्यालय से चले जायेंगे, आधे घंटे के लंच टाइम में आधे घंटे पहले से आधे घंटे बाद तक काम बंद रखेंगे, ४ बार आधे-आधे घंटे तक बाथरूम जायेंगे और ४ बात आधे-आधे घंटे तक चाय पीने जायेंगे? अर्थात दिन में केवल ३-४ घंटे काम करेंगे और साल में केवल २०० दिन. लेकिन नागरिकों के धन से तनख्वाह पूरी लेंगे और जब भी नागरिक इनके पास किसी काम से जायेंगे तो रिश्वत लिए बिना काम नहीं करेंगे क्योंकि इन पर किसी का नियंत्रण नहीं है कोई इन्हें इनकी लापरवाही, कामचोरी, अनियमितताओं के लिए सजा नहीं देने वाला क्योंकि नीचे से ऊपर तक ये सब एकजुट हैं, यूनियनें बनाए हैं सो इनके खिलाफ कोई कार्यवाही की गई सो काम बंद हड़ताल कर देंगे और पूरे सिस्टम को अड़ा देंगे. एक मंझोले कर्मचारी को वेतन और अन्य भत्ते देने में नागरिकों के धन से लगभग ४० हजार रुपये खर्च किए जाते हैं अर्थात साल में लगभग ४ लाख ८० हजार रुपये. इसी तरह एक मंझोले अधिकारी पर यह खर्च महीने में लगभग ६० हजार और साल में लगभग ७ लाख ७२ हजार रुपये. इस खर्च को साल के ३६५ दिन से भाग करके देखिये, मंझोले कर्मचारी पर रोजाना १३१६ रुपये और मंझोले अधिकारी पर रोजाना २११६ रुपये खर्च किए जाते हैं. इन सरकारी नौकरों की संख्या देश में जनसँख्या का मात्र ४% है. परन्तु इन पर देश के बजट का अर्थात नागरिकों का लगभग ४८ % धन खर्च किया जाता है, बाकी बचे धन से फिर जनता के कामों और विकास के कामों पर जो धन खर्च किया जाता है उसमे से भी ८५% राजनीतीबाजों, दलालों और सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा लूट लिया जाता है. क्या यही सब किया जाता है “जनता का शासन – जनता के द्वारा – जनता के लिए”? यदि यह सारा षड़यंत्र नागरिकों के द्वारा नही किया जा रहा तो कौन हैं ये लोग जो सरकार में घुसकर यह लूटपाट कर रहे हैं? कैसे पहुँच जाते हैं ये संसद में विधानसभाओं में और सरकारी नौकरी में? किस तरह से यह पूरी व्यवस्था “सरकार का शासन – सरकार के द्वारा – सरकारी लोगों के लिए” होकर रह गया है? क्या यह जन-तंत्र है? क्या यह “सरकारी-तानाशाही-तंत्र” नहीं है? तो क्या फायदा हुआ अंग्रेजों से आज़ादी का? क्या जनता अभी भी सरकारी तानाशाही की गुलाम नहीं है?
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एजेंडा नं. २ – भ्रष्टाचार के द्वारा जनता का लूटा जा रहे ८५% धन की रिकवरी करो. इसके लिए हर सरकारी अधिकारी-कर्मचारी, और सार्वजानिक पदों पर बैठे लोगों जैसे विधायकों, सांसदों, मंत्रियों की संपत्ति की हर छह महीने में जाँच करने “स्वतंत्र जाँच आयोग” बनाओ जो हर सरकारी अधिकारी-कर्मचारी, और सार्वजानिक पदों पर बैठे लोगों जैसे विधायकों, सांसदों, मंत्रियों की संपत्ति की हर छह महीने में जाँच कर रिपोर्ट दे तथा जिनकी कमाई से अधिक संपत्ति पाई जाए उनकी संपत्ति कुर्क करके जनता के खजाने में जमा की जाए !!
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एजेंडा नं ३ - पुलिस का अंगरेजी क़ानून रद्द करके "लोकतान्त्रिक पुलिस आयोग" बनाओ जो कि "चुनाव आयोग" की तरह एक संवैधानिक संसथान हो और सरकार के नियंत्रण से मुक्त हो !!
दोस्तो ! पुलिस का १८६१ का अंग्रेजी क़ानून रद्द करने और नया लोकतान्त्रिक पुलिस क़ानून बनाने के लिए अपना सक्रिय योगदान दें ताकि जनता को सरकार के तानाशाही दमन से मुक्ति मिलकर कानून का शासन लागू हो सके और वास्तविक आज़ादी तथा लोकतंत्र की बहाली हो सके.
दोस्तो ! पुलिस दमनकारी क्यों है? अंग्रेजों के बनाए पुलिस तंत्र को लोकतान्त्रिक अधिकार नहीं मिल पाये हैं कि पुलिस स्वतंत्र रूप से संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर काम करे बल्कि उसी अंग्रेजी पुलिस अधिनियम को बनाए रखा गया है जिसमें पुलिस सिर्फ अपने सरकारी मालिकों के आदेशों के अधीन काम करती थी. अतः उस अंग्रेजी पुलिस अधिनियम को पूर्णतः निरस्त करके लोकतान्त्रिक पुलिस क़ानून जब तक नहीं बनाया जायेगा तब तक पुलिस सत्ता में बैठे लोगों की गुलाम बनी रहेगी और सत्ता में बैठे लोग जनता का दमन कराते रहेंगे.
संविधान के अनुच्छेद १९ (१) (अ) और (ब) में नागरिकों को अधिकार दिया है कि नागरिकों को बोलने और अपनी भावनाएं दर्शाने का अधिकार है और नागरिक बोलने और अपनी भावनाएं प्रदर्शित करने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित हो सकते हैं. पर कहाँ? जहाँ भी नागरिक एकत्रित होना चाहते हैं वहाँ धारा १४४ घोषित कर दी जाती है और फिर छोड़ दी जाती है पुलिस नागरिकों का दमन करने.
सरकार में बैठे लोग लूट मचाएं, भ्रष्टाचार करें तो नागरिकों का भडकना स्वाभाविक है. सत्ता के नशे में चूर सत्ताधारी पार्टी के अनुचित कार्यों के विरुद्ध आवाज उठाना नागरिकों का संवैधानिक मूल-अधिकार है. लेकिन हमारे भारतीय समाज की विडम्बना है कि हम धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, वर्ग, वर्ण, लिंग इत्यादि के मानवता के लिए घातक भेद-भावों में बंटकर अपने अपने स्वार्थ में उलझे रहते हैं. बस हमें सब कुछ मिल जाये दूसरा चाहे मरता रहे सो मर जाये. सो उभर आये इन संकीर्ण मुद्दों पर भावनाएं भडकाने वाले नेता और जिनकी जैसी मानसिकता रही वे लोग देने लगे अपना कीमती वोट इन नेताओं को. ये नेता भी समझ गए कि स्वार्थी लोगों को चुनाव के वक्त भाषण पिला दो और सब्जबाग दिखा दो और जीतने लायक वोटों की जुगाड़ करो बस ले दे के यही राजनीति हो रही है. दोस्तो ! इतने वर्षों का अनुभव है चुनावों की राजनीति का हमारे सामने. ज़रा सोचो कि क्या भला किया इन नेताओं ने जिन्हें आपने धर्म के आधार पर, जाति के आधार पर, क्षेत्र के आधार पर, भाषा के आधार पर वर्ण-वर्ग के आधार पर अपना समझकर वोट दिया? क्या भला किया इन्होंने अपने धर्म के लोगों का? क्या भला किया इन्होंने अपनी जाति के लोगों का? क्या भला किया इन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों का? क्या भला किया इन्होंने अपनी भाषा के लोगों का? बस आपके वोट लेकर ५ साल तक सिर्फ यही जुगाड़ लगाते रहे कि अगली बार फिर चुनाव जीतना है, और अगली बार यदि चुनाव नहीं जीते तो अपनी सात पुश्तों के लिए तो? सो येन-केन-प्रकारेन धन इकठ्ठा करने में जुट जाते हैं. कौन परवाह करता हैं फिर उन लोगों की जिन्होंने इन्हें वोट दिए थे??? हाँ, ये एक काम जरूर करते हैं और वो ये कि ये जो भी काले काम करें उस पर जनता यदि भड़क जाये तो जनता को कुचलने के लिए इन्हें जरुरत होती है ऐसी पुलिस की जो सिर्फ इनके आदेशों का पालन करे सिर झुकाकर. इन्हें गुलाम पुलिस चाहिये.
दोस्तो ! आततायी सरकार के खिलाफ पहला संघर्ष किया था जनता ने सन १८५७ में. तब हिल गई थी आततायी सरकार. तब सरकार ने सोचा कि एक ऐसी पुलिस चाहिये जो सिर झुकाकर बिना अपना विवेक इस्तेमाल किए उनके आदेशों को माने और जनता को कुचल डाले. तो उस वक्त की अंग्रेजी सरकार ने १८६० में एक कमेटी बनाई और उस कमेटी ने जो सुझाव दिए उसके आधार पर बनाया गया “१८६१ पुलिस अधिनियम”. तब की सरकार क्योंकि विदेशी सरकार थी सो उन्हें कोई भावनात्मक लगाव नहीं था पुलिस वालों से और वो पुलिस वालों को भी भारतीय होने के कारण गुलाम ही बनाए रखना चाहते थे जो सिर झुकाकर उनके जायज-नाजायज आदेश माने. सरकार के विरुद्ध आवाज उठाने वाली जनता और पुलिस के टकराओ में चाहे जनता मरे या पोलिस इससे उन्हें कोई लेना देना नहीं था. दोस्तो ! यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि देश से अंग्रेज तो चले गए पर यह सिर्फ सत्ता का हस्तातान्तरण हुआ है. विदेशियों की जगह देसी सरकार आ गई. परन्तु शासन व्यवस्था नहीं बदली. उसी तरह दमनकारी शासन-व्यवस्था काम कर रही है और पुलिस उसी तरह सरकार की गुलाम बनाकर रखी गई है ताकि जो लोग सत्ता में बैठकर जायज-नाजायज काम करें उन्हें सुरक्षा मिलती रहे. उससे भी बड़ी विडम्बना यह है दोस्तो कि सरकार और पुलिस हमारे पैसे से हम पर ही शासन करते हैं. लोकतंत्र के नाम पर जनता को सिर्फ दिया गया है वोट का अधिकार सो वोट देकर ५ साल तक सरकार के जूतों के नीचे दबी रहती हैं जनता.
दिल्ली पुलिस कांस्टेबल सुभाष चंद्र तोमर की असामयिक और दर्दनाक मौत से उठे मानवीय यक्ष-प्रश्न !!
१. क्या पुलिस कांस्टेबल सबसे पहले हमारी तरह इन्सान हैं या नहीं? क्या उनके कोई मानव-अधिकार हैं या नहीं? क्या इन्हें भूख-प्यास नहीं लगती? क्या इन्हें घर-परिवार का सुख नहीं चाहिये? क्या इन्हें काम के साथ-साथ यथोचित आराम नहीं चाहिये? क्या इन्हें थकान नहीं होती? क्या इन्हें बीमारी नहीं होती? क्या इन्हें दर्द नहीं होता? क्या इनके शरीर में हमारी तरह कोई “मन” या “मानवीय इच्छाएं” नहीं होतीं? क्या ये लोहे के बने रोबोट हैं या रबर के गुड्डे हैं कि इनके तथाकथित सीनीयर आफिसर जब चाहें जैसे चाहें इनका इस्तेमाल करें? पुलिस कांस्टेबलों के दाहिने हाथ और कंधे की जाँच कराई जाये तो उनके जोड़ों में खांचे बने नज़र आयेंगे जो सिर्फ अपने सो काल्ड सीनियरों को सैल्यूट मारते मारते बन जाते होंगे? ये “सैल्यूट” कौन सी “जनसेवा” है जिसके नीचे ये बेचारे निरीह बना दिए गए हैं और बस रिकार्डेड खिलौनों की तरह “जी साहब – जी साहब” करने पर मजबूर कर दिए गए हैं??? क्या यह सब अमानवीय और अलोकतांत्रिक नहीं है???
२. क्या पुलिस कांस्टेबल हमारी तरह भारतीय नागरिक हैं या नहीं? क्या इनके भी कोई “लोकतान्त्रिक नागरिक अधिकार हैं या नहीं? किसी छुटभैये नेता का पैर झूठी अकड़ दिखाने के चक्कर में आसमान की तरफ मुँह उठाये चलने के कारण सड़क के छोटे से गड्ढे में पड़ जाये तो निकालने लगते हैं मोर्चा सरकार के खिलाफ और शुरू कर देते हैं तोड़-फोड़, जाम करने लगते हैं सड़कें, गुंजा डालते हैं आसमान नारों से “ये सरकार निकम्मी है – तानाशाही नहीं चलेगी”... इस सब पर लिखूं तो बड़े बड़े ग्रन्थ भर जायेंगे सो समझने के लिए इतना काफी है. अब ज़रा देखिये कांस्टेबलों के “लोकतान्त्रिक नागरिक अधिकारों” की स्थिति. इन्हें दिन के २४ घंटे, सप्ताह के सातों दिन महीने के तीसों दिन और साल के ३६५ दिन उँगलियों के इशारों पर नचाया जाता है..
पुलिस वाले ७२ - ७२ घंटे ड्यूटी करते है उस वक़्त कौन आकर देखता है कि उनके बीवी बच्चे उनसे मिलने को तरस रहे है और जनता अपने घरो में बैठी सुरक्षित होली दिवाली मना रही है पुलिस वालो की कुर्बानियों का क्या सिला मिलता है उन्हें.
1. The police officer is denounced by the public
2. Criticised by the Preacher
3. Rediculed by the movies
4. Berated by newspaper
5. Unsupported by the prosecution & judges
6. He is shunned by the respectable
7.he is expose to countless temptation & dangers
8.he is condemned while he enforces the law & dismissed when does not
9. He is suppose to possess the quality of a doctor, soldier, lawyer, diplomat with the remuneration less than that of a daily labourer.
दोस्तो ! पुलिस रिफार्म्स के लिए आवाज़ को अपनी ताकत दें
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एजेंडा नं. ४ - न्याय-व्यवस्था तय समय-सीमा में न्याय दे इसके लिए हर स्तर पर आबादी का अनुपात में न्यायालयों कि संख्या बढाओ !!
देशवासी चाहते हैं कि कोर्ट्स, न्यायाधीशों और पुलिस की संख्या बढती जनसँख्या और होने वाले अपराधों के तुलनात्मक आधार पर बधाई जाये और आपराधिक मामलों में समयबद्ध तरीके से पुलिस और कोर्ट केसेस का निपटारा करें. अपराधी पुलिस को रिश्वत देकर और वकीलों की सहायता से डेट पर डेट लेते रहते हैं और गवाहों को तोड़ते रहते हैं. वर्षों तक केस चलते रहते हैं और गवाह हतोत्साहित होकर रह जाते हैं और केस कमजोर पड़ जाता है. इस तरह सिर्फ ७% मामलों में ही गुनाहगारों को सजा हो पाती है वो भी वर्षों बाद.
सोनिया गाँधी से मिलने गए नागरिकों से उन्होंने कहा कि हम सिर्फ दामिनी के केस में आपको आश्वासन दे सकते हैं कि यह केस फास्ट ट्रेक अदालत में चलाया जायेगा पर हर केस को समयबद्ध रूप से निपटारा करने के लिए हमारे पास इतने कोर्ट बनाने के लिए संसाधन नहीं हैं. दोस्तो ! इन्हीं सोनिया गाँधी के दिवंगत पति ने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि जनता के ८५% धन की लूट हो रही है सरकारी अमले के द्वारा. यह लूट इसलिए जारी रखी जा रही है ताकि राजनीतिकों के पास चुनाव में खर्च करने के लिए पैसा जमा किया जाता रहे. इन्हें सिर्फ यही फ़िक्र रहती है कि चुनाव के लिए खूब धन जुटाया जाये और सत्ता हासिल की जाये.
न्यायालयों की संख्या जानबूझकर कम रखी जाती है ताकि भ्रष्ट प्रशासन तंत्र को जनता को लूटने का खेल चलता रहे और इनके खिलाफ जनता केस ना करने लगे और जनता हमेशा हतोत्साहित रहे.
कानून की किन किन धाराओं में मौत की सजा का प्रावधान है फिर भी वो अपराध रुके नहीं और अपराधियों में सिर्फ ७% को ही शासन-प्रशासन सजा दिला पाते हैं. मैं पूछना चाहता हूँ कि शासन-प्रशासन क़ानून लागू करने में ९३% असफल क्यों है? किन कामों में व्यस्त रहते हैं ये शासन-प्रशासन में घुसकर हरामखोरी कर रहे जनता के नौकर जो हर महीने गारंटीड मोटी तनख्वाह पा रहे हैं और जनता चाहे मँहगाई से मरती रहे ये बढ़ा लेते हैं खुद की तनख्वाह हर छह महीने में मँहगाई भत्ते का नाम पर. ना जाने किन किन नामों के भत्तों की शक्ल में जनता की मेहनत की कमाई हड़प कर रहे हैं ये हरामखोर. झूठे मेडिकल बिल्स, झूठे यात्रा भत्ते, झूठे कामों की झूठी डायरियां भरते रहते हैं. यदि मैं गलत कह रहा हूँ तो ये बताएं कि कहाँ जाता है ८५% जनता का पैसा जो राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते बता दिया था? क्यों नहीं दे पा रहे ९३% मामलों में जनता को न्याय? और किस काम के लिए बनाई गई है यह सब सरकारी व्यवस्था???
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कौन सी पार्टी लागू करेगी जनता के ये ४ एजेंडे ?
आइये लोकतंत्र प्रेमी दोस्तो ! हम सब अपने संविधान में दिए अधिकारों का इस्तेमाल करें और इस सरकारी तानाशाही से आजादी पाने और इस “सरकारी-तानाशाही-तंत्र” को अपने लोकतान्त्रिक संविधान के अनुरूप “लोकतंत्र” में बदलें और संविधान के अनुरूप “जनता का शासन – जनता के द्वारा – जनता के लिए” वाली व्यवस्था बनाने के लिए कदम उठायें. याद रखिये कि हमें खुद ही कर्म करना होगा क्योंकि कहीं कोई अवतार हमारे लिए आसमान से नहीं उतरने वाला या सरकारी पदों पर कब्ज़ा किए एयर-कंडीशंड कार्यालयों-बंगलों-कारों की सुविधा भोगने वाला कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कलेक्टर, कमिश्नर हमारे लिए यह कार्य नहीं करने वाला क्योंकि यह सारी व्यवस्था उनके ऐशो-आराम के लिए बड़ी होधियारी से लोकतंत्र के नाम पर बदल दी गई है. सो वे नहीं चाहते कि इसे जनता के हाथों में दे दिया जाए.
दोस्तो ! आज २६ जनवरी है अर्थात “गणतंत्र दिवस”. जनता के पैसों से सरकारी समारोह माने जा रहे हैं. परन्तु इस देश के लगभग ४० करोड़ गरीबी की इस २८-३२ रुपये की सीमा से नीचे जीने वाले नागरिकों को इस गणतंत्र दिवस का पता भी नहीं. वे तो आज भी सुबह भूखे पेट ही सोकर उठे हैं और २ रोटियाँ पाने के संघर्ष में लग गए हैं. करोड़ों बच्चे भूखे हैं बीमार हैं उनके पास दवाएं तो दूर खाना भी नहीं है. सिर पर छत नहीं है. करोड़ों महिलायें अपने बच्चों को सडकों के किनारे खुले आसमान के नीचे छोड़कर सिर पर पत्थर ढो रही हैं. करोड़ों बच्चे बचपन भूलकर मजूरी में करने पर मजबूर हैं. सरकारी योजनाओं में सड़ा गेहूं इन्हें आधा-अधूरा बांटा जा रहा है वो भी मात्र कुछ लोगों को. सरकारी स्कूल भ्रष्टाचार के कारण बंद हो रहे हैं और शिक्षा को बाजार बना दिया गया है. इसी तरह सरकारी अस्पताल ना के बराबर हैं और जो हैं उनमें दवाओं-सुविधाओं का पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है सो जनता प्राइवेट अस्पतालों में जाने को मजबूर कर दी गई है और इलाज का व्यापारीकरण कर दिया गया है.
किन्होने किया यह सब कुकृत्य? किन्होने उड़ाई है संविधान की ऐसी खिल्ली? कौन हैं ये जो सरकार बनाए बैठे हैं?
आगे बढ़ो लोकतंत्र प्रेमियों ! आजादी प्रेमियों !! आज २६ जनवरी “गणतंत्र दिवस” पर शपथ लो कि हम अपने संविधानिक अधिकार हासिल करेंगे और अपने संविधान के अनुरूप इस देश की शासन व्यवस्था “जनता का शासन – जनता के द्वारा – जनता के लिए” बनायेंगे. ये कैसे होगा? इस सवाल पर लोकतान्त्रिक अधिकार फोरम / Democratic Rights Forum (DRF) ने संविधान के अनुसार एक सम्पूर्ण सुविचारित योजना बनाई है जिसकी जानकारी सभी नागरिकों को देने के लिए एक वेब-साईट बनाने का काम किया जा रहा है जो कि जल्दी ही लांच कर दी जायेगी. सभी लोकतंत्र-प्रेमियों से अनुरोध है कि अपने सुझाव drf.india@gmail.com पर अवश्य दें और हम सब मिलकर यह कार्य करने में अपना योगदान दें. डी.आर.एफ. के विचारों को जानने के लिए फेसबुक पर https://www.facebook.com/groups/jantakashasan/ पर लाग-इन करें.
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खाला जी का घर ?

बिहार औए बंगाल के सीमावर्ती इलाका , खासकर किशनगंज, अररिया, ठाकुरगंज, बहादुरगंज ,पुरनिया और बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा, दालकोला रायगंज, कालियागंज वगैरह जिले मेंबांग्लादेशी मुस्लिमो की दिन रात घुसपैठ से माहौल बहुत ही खराब हो गया है !
ये गाँव के गाँव आकर बस गए है ..दिन में मजदूरी करते है ये बधिया मिया ( बांग्लादेशी को इसी नाम से पुकारा जाता है उस इलाके में ) और रात में डकैती करते है , यही इनका पेशा है !
बाग्लादेश बनने के बाद तो वहां से करीब पांच करोड़ लोग भारत में घुस आए थे। उन्हें फिर से बांग्लादेश भेजने के सर्वोच्च न्यायालय तक के आदेश का पालन भारत सरकार नहीं कर पा रही है। घुसपैठियों के कारण असम और बिहार के कई सीमावर्ती जिलों में आबादी का संतुलन बिगड़ गया है !
इन बधिया मिया को बसाने में इलाके की सांसद और विधयक का बहुत बड़ा हाथ होता है !
भारत बंगलादेश जो बोर्डर है वो खुला है ..बी.डी.आर. ( bangladesh raifal ) इनको प्रतिदिन रात में झुण्ड के झुण्ड भारत में घुसा देती है !
भारत में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या लगभग 15 करोड़ है । जनगणना में प्रति व्यक्ति 18.33 रूपये खर्च होंगे । यानी बंगलादेशियों पर ही लगभग साढ़े 273 करोड़ रूपये फूँके जायेंगे । भारतीयों की गाढ़ी कमाई से इतने रूपये फूँकने के बाद भारत को क्या मिलेगा ? टका-सा जवाब है कुछ नहीं । उल्टे भारत की जनसंख्या में ये चार करोड़ बंगलादेशी वैधनिक रूप से शामिल हो जायेंगे । जब ये यहाँ के नागरिक हो जायेंगे तो उन्हें भी वही अधिकार प्राप्त हो जायेगा जो एक भारतीय नागरिक को प्राप्त है। घुसपैठिये वोट डालेंगे, चुनाव लड़ेंगे, नौकरी करेंगे, मंत्री भी बनेंगे !
घुसपैठियों के कारण असम के कुल 27 जिलों में से 12 जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं । धुबरी, ग्वालपाड़ा, नलवाड़ी, बारपेटा, हेलाकाण्डी आदि जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं ।
कोकराझार में सामाजिक संगठन से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि कुछ ही साल बाद असम मुस्लिम राज्य हो जायेगा । उन्होंने यह भी बताया कि असम में हिन्दू भय के माहौल में रह रहे हैं । उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित नहीं लग रहा है गुवाहाटी की पूर्व सांसद श्रीमती बिजोया चक्रवर्ती भी असम की स्थिति से बहुत चिन्तित है । उन्होंने बताया कि असम विधानसभा की कुल 126 सीटों में से 46 सीटों पर बंगलादेशी घुसपैठियों की वजह से मुस्लिमों का दबदबा हो चुका है । श्रीमती चक्रवर्ती ने यह भी बताया कि पूरे भारत में मतदाताओं की संख्या 1 प्रतिशत बढ़ती है तो असम में 7 प्रतिशत । इससे भी जाहिर होता है कि असम में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए बड़ी संख्या में बस रहे हैं । इस कारण असम में हिन्दू दिनोंदिन अल्पसंख्यक हो रहे हैं ।

बुधवार, 23 जनवरी 2013

क्या भारत में सभी सरकारी विद्यालय (स्कूल) बन्द कर देना चाहिए

युधवीर सिंह लाम्बा भारतीय

क्या भारत में सभी सरकारी विद्यालय (स्कूल) बन्द कर देना चाहिए?आजकल सभी सरकारी शिक्षक(96%) अपने बच्चों को तो निजी विद्यालय (प्राइवेट स्कूल) में पड़ना चाहते है लेकिन नोकरी सरकारी स्कूल (विद्यालय)में करना चाहते है क्यूँ ?
आज भारत में जितने भी बड़े नेता/अधिकारी/सभी सरकारी शिक्षक हैं उन सभी के बच्चे या तो विदेशों में पड़ रहे हैं या प्राइवेट स्कूलों में ।
भारत के सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन औसत से नीचे और हद से ज्यादा दयनीय है। भारतीय जनता राष्ट्रीय सम्पत्ति राजकोष की इस लूट को बर्दाश्त नहीं करेगी।
आज सरकारी स्कूलों की जो हालत बद से बदतर होती जा रही हैं। किसी प्रेरणा या जवाबदेही के अभाव में सरकारी स्कूलों में शिक्षण इतना दयनीय हो गया है कि शहरी झुग्गी बस्तियों के कई गरीब मां-बाप भी अपने बच्चो को मुफ्त में सरकारी स्कूलों में पढाने की जगह फीस देकर निजी स्कूलो में पढाना बेहतर समझ रहे है।
सरकारी स्कूलों (विद्यालय) में निशुल्क पुस्तकों से लेकर, ड्रेस, मध्याह्न भोजन, साइकिल सहित अन्य प्रकार की सुविधा प्रदान कर रही है। लेकिन बच्चे हैं कि लोभ-दबाव में यदि नाम लिखा भी लिया तो शीघ्र ही उनका आना बंद होने लगा। आखिर क्यों? सब प्राइवेट स्कूलों में चले गए और जाए भी क्यों नहीं साब सरकारी स्कूल का तो भटटा बैठ गया है बच्चों की पढ़ाई सही ढंग से नहीं हो पा रही है।
क्या निजी स्कूल (विद्यालय)सरकारी स्कूलों से बेहतर हैं ? देश के विभिन्न भागों के शोधकर्ताओं ने यह साबित कर दिया है कि प्रति छात्र पर होने वाला खर्च सरकारी स्कूल की तुलना में कहीं कम है। एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि निजी और गैर -वित्तीय सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों का वेतन सरकारी स्कूलों की तुलना में 5-7 गुना कम है।निजी स्कूल बजट के हिसाब से भी सस्ते हैं।
सरकारी मतलब घोटाला, ग़ैर ज़िम्मेदारी, कोई जवाबदेही नहीं । कोई भी माँ- बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कुल (विद्यालय)में नहीं भेजता, सब प्राइवेट स्कूलों (विद्यालय) कि तरफ भाग रहें है ।
अब सरकारी स्कूल में किसी अफ़सर, नेता, व्यापारी, उद्योगपति, डॉक्टर और ऐसे ही किसी ऐसे व्यक्ति के बच्चे नहीं पढ़ते जो उच्च या मध्यवर्ग में आते हैं। जो महंगे निजी स्कूल में नहीं जा सकते वो किसी सस्ते निजी स्कूल में जाते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल में नहीं जाते । भारत में सरकारी स्कूलों की हालत हद से ज्यादा दयनीय है।भारत में सभी सरकारी स्कूल (विद्यालय) बन्द कर देना चाहिए
! जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

क्या भारत में सभी सरकारी विद्यालय (स्कूल) बन्द कर देना चाहिए?आजकल सभी सरकारी शिक्षक(96%) अपने बच्चों को तो निजी विद्यालय (प्राइवेट स्कूल) में पड़ना चाहते है लेकिन नोकरी सरकारी स्कूल (विद्यालय)में करना चाहते है क्यूँ ? 

 आज भारत में जितने भी बड़े नेता/अधिकारी/सभी सरकारी शिक्षक हैं उन सभी के बच्चे या तो विदेशों में पड़ रहे हैं या प्राइवेट स्कूलों में ।

भारत के सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन औसत से नीचे और हद से ज्यादा दयनीय है। भारतीय जनता राष्ट्रीय सम्पत्ति राजकोष की इस लूट को बर्दाश्त नहीं करेगी।

आज सरकारी स्कूलों की जो हालत बद से बदतर होती जा रही हैं। किसी प्रेरणा या जवाबदेही के अभाव में सरकारी स्कूलों में शिक्षण इतना दयनीय हो गया है कि शहरी झुग्गी बस्तियों के कई गरीब मां-बाप भी अपने बच्चो को मुफ्त में सरकारी स्कूलों में पढाने की जगह फीस देकर निजी स्कूलो में पढाना बेहतर समझ रहे है।

सरकारी स्कूलों (विद्यालय) में निशुल्क पुस्तकों से लेकर, ड्रेस, मध्याह्न भोजन, साइकिल सहित अन्य प्रकार की सुविधा प्रदान कर रही है। लेकिन बच्चे हैं कि लोभ-दबाव में यदि नाम लिखा भी लिया तो शीघ्र ही उनका आना बंद होने लगा। आखिर क्यों? सब प्राइवेट स्कूलों में चले गए और जाए भी क्यों नहीं साब सरकारी स्कूल का तो भटटा बैठ गया है बच्चों की पढ़ाई सही ढंग से नहीं हो पा रही है। 

क्या निजी स्कूल (विद्यालय)सरकारी स्कूलों से बेहतर हैं ? देश के विभिन्न भागों के शोधकर्ताओं ने यह साबित कर दिया है कि प्रति छात्र पर होने वाला खर्च सरकारी स्कूल की तुलना में कहीं कम है। एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि निजी और गैर -वित्तीय सहायता प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों का वेतन सरकारी स्कूलों की तुलना में 5-7 गुना कम है।निजी स्कूल बजट के हिसाब से भी सस्ते हैं। 

सरकारी मतलब घोटाला, ग़ैर ज़िम्मेदारी, कोई जवाबदेही नहीं । कोई भी माँ- बाप अपने बच्चों को सरकारी स्कुल (विद्यालय)में नहीं भेजता, सब प्राइवेट स्कूलों (विद्यालय) कि तरफ भाग रहें है ।

अब सरकारी स्कूल में किसी अफ़सर, नेता, व्यापारी, उद्योगपति, डॉक्टर और ऐसे ही किसी ऐसे व्यक्ति के बच्चे नहीं पढ़ते जो उच्च या मध्यवर्ग में आते हैं। जो महंगे निजी स्कूल में नहीं जा सकते वो किसी सस्ते निजी स्कूल में जाते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल में नहीं जाते । भारत में सरकारी स्कूलों की हालत हद से ज्यादा दयनीय है।भारत में सभी सरकारी स्कूल (विद्यालय) बन्द कर देना चाहिए

! जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य -----

1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा। संदर्भ: - फोर्ब्स पत्रिका 1987.
2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है) संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी.
3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति... स्वस्थ और बीपी, मधुमैह , कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद).
4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी.
नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं. असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं.
दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।
5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है। संदर्भ: - यूएनओ
6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।
7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.
8. संस्कृत भाषा वर्तमान में "उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी" तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज "सरल किर्लियन फोटोग्राफी" भी नहीं है )
9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है ).
10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है.

गुरुवार, 17 जनवरी 2013

"खान" यह नाम अमुस्लिम (Non Muslim) है!

Naveen Verma
‎आप में से अधिकांश लोगों चौक जाएँगे ये सुनकर की ‘खान’ यह नाम अमुस्लिम (Non Muslim) है! ‘खान’ यह तुर्क-मंगोल नाम इस्लाम पूर्व से ही प्रचलित है . आज भी मंगोलिया (भारत में उसे ‘मुघलिया’ के भ्रष्ट नाम से जानते है) एक बुद्ध धर्म को मानाने वाला राष्ट्र है . यहा पर कोई भी मुस्लिम नही है . आज भी चीन, जापान, कोरिया और मंगोलिया में खान नाम पाया जाता है . चीन का एक मंगोल राजा, जिसका नाम कुबलाई खान था, वो जो बुद्ध और वेदिक धर्म का अनुयायी था . कुबलाई खान के एक शिला लेख में ‘ओम नमो भगवते’ घोष के अक्षर पाए गए है . चेंगिज खान भी एक ऐसा वीर योयोद्धा था, जिसने इस्लाम को लग भग समाप्त कर दिया था .
चेंगिज खान और उसकी मंगोल सेना (मुघल सेना) ऐसे अमुस्लिम थे, जिन्होंने पहली बार मुस्लिम भूमि में घुस कर, मुस्लिम खलीफा अल मुस्तासिम बगदाद में घुसकर मारा था . इतिहास बताता है की अरब और फारसी मुस्लिमो ने लगातार २५० वर्ष (१०५० से १२५८) मध्य एशिया पर जिहादी आक्रमण करके तुर्क और मंगोल समूहों को छल-बल से मुस्लिम बनाने के लिए उन पर घोर अत्याचार किये (ठीक वैसे ही जैसे मुस्लिम बनाये जाने पर इन मुघल और तुर्को ने भारत और हिन्दुओ पर किये उन्हें मुस्लिम बनाने के लिए) . इस बात से कुपित होकर मुस्लिम के विरोध में, मंगोलों ने चेंगिज खान के नेतृत्व में एक महाभयंकर, प्रति-आक्रमण मुस्लिम जगत पर किया . जिस में मंगोल सेना ने लगभग ५,०००,०००० मुस्लिमो की कत्तल किया और बगदाद की मस्जिदों को मंगोलों (मुघलो) ने ध्वस्त करके कुरान को घोड़े की टाप के नीचे मसल दिया था .
चंगेज खान का पोता "हलाकू खान" एक कट्टर बौद्ध था . हलाकु ख़ान की पत्नी दोक़ुज़ ख़ातून एक नेस्टोरियाई ईसाई थी . हलाकु ने आगे चलकर एक बड़ा साम्राज्य स्थापित किया था , हलाकू के इलख़ानी साम्राज्य में बौद्ध धर्म और ईसाई धर्म को बढ़ावा दिया जाता था . नवम्बर १२५७ में हलाकु की मंगोल फ़ौज ने बग़दाद की तरफ़ कूच किया जहाँ से ख़लीफ़ा अपना इस्लामी राज चलता था . चंगेज खान और हलाकू खान ने मध्य एशिया के इस्लामी देशो को बर्बरता से कुचला लेकिन उसने भारत पर कभी बुरी नजर नहीं डाली . भारत की सनातन पद्धतियों को भी मंगोलों ने अपने जन जीवन में शामिल किया था . चंगेज खान की समाधि पर लगा हुआ त्रिशूल, भगवान् शिव को समर्पित है .

सोमवार, 14 जनवरी 2013

जन्मना जायते शूद्रः

ब्राह्मण निर्धारण - जन्म या कर्म से == ब्राह्मण का निर्धारण माता-पिता की जाती के आधार पे ही होने लगा है | वैदिक शास्त्रों मैं साफ़ - साफ़ बताया है
जन्मना जायते शूद्रः
संस्कारात् भवेत् द्विजः |
वेद-पाठात् भवेत् विप्रः
ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः |
जन्म से मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज (ब्रह्मण), वेद के पठान-पाठन से विप्र और जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है |
ब्राह्मण का स्वभाव
शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च |
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास | वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है । यहाँ ब्राह्मण को क्रियासे बताया है । ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है । केवल ब्राहमण के वहा पैदा होने से ब्राह्मण नहीं होता ।
-----------------------------------------------------------
यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म ( अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान ) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर ज्ञाता" |
किन्तु हिन्दू समाज में एतिहासिक स्थिति यह रही है कि पारंपरिक पुजारी तथा पंडित ही ब्राह्मण होते हैं ।
किन्तु आजकल बहुत सारे ब्राह्मण धर्म-निरपेक्ष व्यवसाय करते हैं और उनकी धार्मिक परंपराएं उनके जीवन से लुप्त होती जा रही हैं |

 

गौरी राय की पोस्ट से साभार

शनिवार, 12 जनवरी 2013

उसे बच्चा कहते हो

रॉड घुसाकर बोला था, ‘साली मर,’ ...उसे बच्चा कहते हो'
दिल्ली गैंग रेप विक्टिम की मां बलिया में अपने घर के छोटे से कमरे में गुमसुम हैं। बेटी से हैवानियत के सदमे से वह अभी भी नहीं निकल पाई हैं। उनके पति और बेटे तेरहवीं में लगे हुए हैं। हॉस्पिटल में पुलिस को जब अपना बयान दे रही थीं, तो वह उसके पास ही मौजूद थीं। बेटी की बातें उनके दिमाग में अभी भी घूम रही हैं। अपनी बेटी के गैंग रेप के एक आरोपी को नाबालिग बताने पर उनका गुस्सा फूट पड़ता है।
वह कहती हैं, 'जिस लड़के ने मेरी बेटी को लोहे की रॉड से पीटा, उसे हर कोई नाबालिग कह रहा है। जब मेरी बेटी ने विरोध किया था तो उसने 'साली मर!' चीखते हुए उसके शरीर में रॉड घुसा दी थी और रॉड के साथ आंतें भी बाहर निकाल ली थीं। इस पर भी कानून उसे नाबालिग कह रहा है।'
इस मामले में लड़की की मां ने पहली बार खुलकर कुछ कहा है। वह चाहती हैं कि पूरी दुनिया इस भयानक वारदात के बारे में जाने। उनकी बेटी की यही ख्वाहिश थी। अपनी बेटी की बातें उनके कानों में गूंजती रहती हैं।
वह बताती हैं, 'नर्सरी से ही वह बहुत तेज थी। वह हमेशा अपनी क्लॉस में टॉप करती थी। हमने उसके लिए बड़े-बड़े सपने देखे थे। कुछ लाख रुपए मेरी बेटी की भरपाई नहीं कर सकते। उन लोगों ने उसे मार डाला। अब केवल उनकी सजा से ही हमें शांति मिलेगी। उन्होंने मेरी बेटी के साथ जो किया, उसके लिए उन्हें मौत की सजा मिलनी चाहिए।'
शनिवार सुबह जब तेरहवीं से संबंधित रस्में शुरू हुईं और लड़की के कपड़ों से भरा बैग खोला गया, तो परिवार एक बार फिर बिलख पड़ा। छोटे भाई ने लड़की के बालों का एक गुच्छा संभाल कर रखा है। बड़े भाई को फिर याद आ गया कि वेंटिलेटर पर भी उनकी बहन ने पूछा था कि वह अपनी कोचिंग क्लास ठीक से कर रहे हैं या नहीं। लड़की के कज़न ने बताया कि उस वक्त उन्होंने झूठ बोलते हुए बताया था कि उन्होंने केवल एक क्लास छोड़ी है, जबकि वह लड़की के साथ हर रोज हॉस्पिटल में ही थे।
लड़की के छोटे भाई ने बताया, 'हमने देखा कि उन्होंने क्या किया। दीदी ने ममी को बताया था कि नाबालिग कहे जाने वाले लड़के ने क्या-क्या किया। हम चाहते हैं कि आप यह सब जानें और लिखें क्योंकि उस क्रूरता की कल्पना भी नहीं की जा सकती।'

रॉड घुसाकर बोला था, ‘साली मर,’ ...उसे बच्चा कहते हो'

दिल्ली गैंग रेप विक्टिम की मां बलिया में अपने घर के छोटे से कमरे में गुमसुम हैं। बेटी से हैवानियत के सदमे से वह अभी भी नहीं निकल पाई हैं। उनके पति और बेटे तेरहवीं में लगे हुए हैं। हॉस्पिटल में पुलिस को जब अपना बयान दे रही थीं, तो वह उसके पास ही मौजूद थीं। बेटी की बातें उनके दिमाग में अभी भी घूम रही हैं। अपनी बेटी के गैंग रेप के एक आरोपी को नाबालिग बताने पर उनका गुस्सा फूट पड़ता है।

वह कहती हैं, 'जिस लड़के ने मेरी बेटी को लोहे की रॉड से पीटा, उसे हर कोई नाबालिग कह रहा है। जब मेरी बेटी ने विरोध किया था तो उसने 'साली मर!' चीखते हुए उसके शरीर में रॉड घुसा दी थी और रॉड के साथ आंतें भी बाहर निकाल ली थीं। इस पर भी कानून उसे नाबालिग कह रहा है।'

इस मामले में लड़की की मां ने पहली बार खुलकर कुछ कहा है। वह चाहती हैं कि पूरी दुनिया इस भयानक वारदात के बारे में जाने। उनकी बेटी की यही ख्वाहिश थी। अपनी बेटी की बातें उनके कानों में गूंजती रहती हैं।
वह बताती हैं, 'नर्सरी से ही वह बहुत तेज थी। वह हमेशा अपनी क्लॉस में टॉप करती थी। हमने उसके लिए बड़े-बड़े सपने देखे थे। कुछ लाख रुपए मेरी बेटी की भरपाई नहीं कर सकते। उन लोगों ने उसे मार डाला। अब केवल उनकी सजा से ही हमें शांति मिलेगी। उन्होंने मेरी बेटी के साथ जो किया, उसके लिए उन्हें मौत की सजा मिलनी चाहिए।'

शनिवार सुबह जब तेरहवीं से संबंधित रस्में शुरू हुईं और लड़की के कपड़ों से भरा बैग खोला गया, तो परिवार एक बार फिर बिलख पड़ा। छोटे भाई ने लड़की के बालों का एक गुच्छा संभाल कर रखा है। बड़े भाई को फिर याद आ गया कि वेंटिलेटर पर भी उनकी बहन ने पूछा था कि वह अपनी कोचिंग क्लास ठीक से कर रहे हैं या नहीं। लड़की के कज़न ने बताया कि उस वक्त उन्होंने झूठ बोलते हुए बताया था कि उन्होंने केवल एक क्लास छोड़ी है, जबकि वह लड़की के साथ हर रोज हॉस्पिटल में ही थे।

लड़की के छोटे भाई ने बताया, 'हमने देखा कि उन्होंने क्या किया। दीदी ने ममी को बताया था कि नाबालिग कहे जाने वाले लड़के ने क्या-क्या किया। हम चाहते हैं कि आप यह सब जानें और लिखें क्योंकि उस क्रूरता की कल्पना भी नहीं की जा सकती।'

  • शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

    ये कैसा खेल है ?

    भारत का 43% तेल खुद भारत में निकलता है तो डीजल के दामो में 10/- रुपये की बढोत्तरी का प्रस्ताव क्यों?
    आज 11 जनवरी को एक डालर की कीमत 54 रुपये 74 पैसे है और कच्चा तेल 93.15 डालर प्रति बैरल है इसका मतलब कच्चा तेल (54.74 x 93.15)/159 = 32.06 रुपये प्रतिलीटर है.
    डीजल पेट्रोल का रिफाइनिंग खर्चा भारत में 5.80 प्रति लीटर है, तेल की ढुलाई
    का कुल खर्चा 3.00 रुपये लीटर है. पेट्रोल टंकी मालिक का कमीशन करीब 2.00
    रुपये पेट्रोल पर और 1.60 डीजल पर है यानी डीजल का कुल खर्चा ही 32.06 + 5.80+3.00 + 1.60 = 42.46 रुपये लीटर है.
    डीजल पहले ही 51.56 प्रतिलीटर बिक रहा है और इसमे 10.00 बढ़ाने की जरुरत क्यों है, यह पैसा किसकी जेब में जा रहा है. हर चीज का दाम बढाकर कांग्रेस जनता को क्या सन्देश देना चाहती है. यह न भूलिए की भारत अपने आवश्यकता का ४०% से भी ज्यादा तेल खुद अपने कुओ से निकलता है जो खरीदना नहीं पडता है, जमीन में फ्री मिलता है.
    मुझे आज तक इस इन लुटेरे कांग्रेसियों की गणित समझ नहीं आयी, कांग्रेस सरकार झूठ और मिडिया के दुष्प्रचार व् गलत सूचना के सहारे चल रही है जिसमे मुर्ख सेकुलरों का भी योगदान है.
    हर तरह से फेल इस कांग्रेस का २०१४ में विनाश निश्चित है.

     

    फेसबुक से साभार !!

    मंगलवार, 8 जनवरी 2013

    Tax…. Tax….. Tax…

    1) Qus. : What are you doing?
    Ans. : Business.
    Tax : PAY PROFESSIONAL TAX!
    2) Qus. : What are you doing in Business?
    Ans. : Selling the Goods.
    Tax : PAY SALES TAX!!
    3) Qus. : From where are you getting Goods?
    Ans. : From other State/Abroad
    Tax : PAY CENTRAL SALES TAX, CUSTOM DUTY & OCTROI!
    4) Qus. : What are you gettingin Selling Goods?
    Ans. : Profit.
    Tax : PAY INCOME TAX!
    5) Qus. : How do you distribute profit ?
    Ans : By way of dividend
    Tax : Pay dividend distribution Tax
    6) Qus. : Where you Manufacturing the Goods?
    Ans. : Factory.
    Tax : PAY EXCISE DUTY!
    7) Qus. : Do you have Office / Warehouse/ Factory?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY MUNICIPAL & FIRE TAX!
    Qus. : Do you have Staff?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY STAFF PROFESSIONAL TAX!
    9) Qus. : Doing business in Millions?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY TURNOVER TAX!
    Ans : No
    Tax : Then pay Minimum Alternate Tax
    10) Qus. : Are you taking out over 25,000 Cash from Bank?
    Ans. : Yes, for Salary.
    Tax : PAY CASH HANDLING TAX!
    11) Qus.: Where are you taking your client for Lunch & Dinner?
    Ans. : Hotel
    Tax : PAY FOOD & ENTERTAINMENT TAX!
    12) Qus.: Are you going Out ofStation for Business?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY FRINGE BENEFIT TAX!
    13) Qus.: Have you taken or given any Service/s?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY SERVICE TAX!
    14) Qus.: How come you got such a Big Amount?
    Ans. : Gift on birthday.
    Tax : PAY GIFT TAX!
    15) Qus.: Do you have any Wealth?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY WEALTH TAX!
    16) Qus.: To reduce Tension, for entertainment, where are you going?
    Ans. : Cinema or Resort.
    Tax : PAY ENTERTAINMENT TAX!
    17) Qus.: Have you purchasedHouse?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY STAMP DUTY & REGISTRATION FEE !
    18) Qus.: How you Travel?
    Ans. : Bus
    Tax : PAY SURCHARGE!
    19) Qus.: Any Additional Tax?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY EDUCATIONAL, ADDITIONAL EDUCATIONAL & SURCHARGE ON ALL THE CENTRAL GOVT.'s TAX !!!
    20) Qus.: Delayed any time Paying Any Tax?
    Ans. : Yes
    Tax : PAY INTEREST & PENALTY!
    21) INDIAN :: can i die now??
    Ans :: wait we are about to launch the funeral tax!!

    शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

    दिल वालों की दिल्ली है...

    दामिनी इस दुनिया मे नहीं रही .... लेकिन उसके साथ हुई दुर्घटना के बाद पुलिस और आम लोगों का जैसा रवैया रहा है उसकी गवाही उस लड़की के मित्र के मुंह से सुन कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, दिल वालों की दिल्ली कहाने का दंभ भरने वाले लोगों और पुलिस की संवेदनहीनता वास्तव मे अफसोसनाक है ....