-
Pravin Togadia
लो! अब खाओ आलू गेहू अमरिका के, लहसून चीन का, टोमेटो यूरोप के, कुकर की १० सीटियाँ करके भी न गलने वाली कड़क प्लास्टिक जैसी दाल कोरिया की, चावल प्याज पाकिस्तान का, शिमला मिर्च इटाली की और पता नहीं क्या क्या कहाँ कहाँ का! साडी सी पिन तक चीन से आती है, प्लास्टिक की डिब्बी भी चीन कोरिया से आती है, रीबोक वाले शूज की लेस भी इंडोनेशिया में बनवा लेते हैं, प्रोक्टर एंड गेम्बल वाले सेनिटरी नेप्किंस, विक्स तक इ
म्पोर्ट कर यहाँ बेचते हैं, केलोग्स कोर्न फ्लेक्स वाले मकई के दाने बाहर से लाते हैं. इन सभी की घाटा सहने की शक्ति भारत के छोटे दुकानदारों और उत्पादकों से अधिक है. केलोग्स वाले भारत में आये तब उन्होंने प्रेस में कहा था - हम १३ वर्ष घाटा सह सकते हैं, लेकिन भारतीयों की सुबह के नाश्ते की आदतें बदलकर ही रहेंगे. आज शहरों के कई लोग इडली, पोहा, पराठा, पूरी -कचोडी जलेबी समोसा छोड़ कोर्न फ्लेक्स खाकर शाला. ऑफिस जाते हैं. जिस देश में भूखमरी से मरनेवालों का प्रमाण २८% हो, छोटे किसानों का प्रमाण ७०% हो (जिनसे विदेशी खुर्दा बझार वाले कुछ नहीं खरीदते) उस देश में देश की परंपरागत यशदायी अर्थनीति त्याग कर देश को देखते हैं कहाँ ले जा रहे हैं. कोई जापान से ट्रेनें लाने जा रहे हैं, कारें लाने जा रहे हैं तो कोई खुर्दा बझार में विदेशी पूंजी! प्रगति अच्छी होती हैं जो सभी गरीबों को भी को साथ ले. अब विदेशी कब भारत के आम आदमी को साथ लेकर चले हैं, यह नहीं जानते हम. सेवा नहीं, व्यवसाय कर मुनाफा करने आ रहे हैं. भारत के किसान को बहुत रुपये मिलेंगे कहती है सरकार. देखते हैं कितना सच कहती है - या बाकी सभी वादों जैसा यह भी खोखला वादा. सुषमाजी ने बहुत अनुसंधान कर अच्छी तरह से इस विषय पर पक्ष रखा था. राजनीति और देश का कल्याण दोनों साथ साथ चलते तो आज सुषमा जी ने लाया हुआ प्रस्ताव नहीं गिरता. अब बेहतर यही है की बड़े बड़े विदेशी दुकानों की चमक दमक से बहक कर वहाँ खरीदारी न करे और अपने पास वाले हमेशा के किराना 'अंकल' से ही वस्तुएँ खरीदें. चाहे तो वालमार्ट, कोसको, केरिफोर के एयर कंडिशन में घुमने चले जाइए लेकिन खरीदें अपने हमेशा के किराना दूकान से - कीमत तो वे भी आप के लिए कम करते हैं, महीनो महीनो बिल न दो तो रुकते हैं. सोचियेगा! सबसे बेहतर है की अब हिंदू राष्ट्र की ओर ही चलियेगा!
बुधवार, 5 दिसंबर 2012
लो... अब खाओ विदेशी राशन.... डा0 प्रवीण तोगड़िया
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें