Rajiv Chaturvedi shared Gunjan Mishra's photo.
"मत भूलिए कि दामिनी के प्रसंगवश चल रही बहस दिल्ली के पुलिस कोंस्टेबिल सुभाष तोमर की मौत की बजह से दागदार हो चुकी है . सुभाष तोमर भी भारत का ही नागरिक था . समाज को सम्यकता में देखिये और देखिये गरीब नहीं ...मध्यम वर्ग बल्कि अभिजात्य वर्ग की औरतें नंगई पर आमादा हैं .समाज में कामुकता कौन परोस रहा है ?...कामोद्दीपन कौन कर रहा है ? हर बलात्कारी ...गली मोहल्ले के लुच्चे कामुक लफंगे से तो निपटा ही जाए पर समाज में पूनम पांडे और राखी सामंतों ,मल्लिका शेहरावतों से भी लगे हाथों निपटा जाए . चूंकि पुरुष "बहिरंग" होता है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी बहिरंग होती हैं और स्त्री स्वभाव से " अन्तरंग" होती है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी अन्तरंग होती हैं . हम जैसा समाज तैयार करते हैं वैसा ही भोगते हैं ...अभी हाल ही की दिल्ली की घटना नहीं घटनाओं पर गौर करें ...वह जो कामुक पुरुष कुत्तों जैसे सड़क पर गली चौराहों पर लार टपकाते महिलाओं को हवसी निगाहों से ताकते हैं ....वह कुत्तों जैसे पुरुष किन कुतियों के बेटे हैं ?...किन कुतियों के प्रेमी हैं ?...और उन लडकीयों /महिलाओं पर भी गौर करें जो कल नारे लगा रही थीं --"देखने वाले तेरी नज़रों में ही पाप है / मेरी स्कर्ट से ऊंची मेरी आवाज़ है " क्या कहना चाहती हैं वह ? ...यही न कि "जैसे -जैसे उनकी आवाज़ ऊपर उठेगी उनकी स्कर्ट भी और ऊपर उठ जायेगी " ...कहा तो यह जाना चाहिए था --"देखने वाले तेरी नज़रों में "भी" पाप है / मेरी स्कर्ट से ऊंची मेरी आवाज़ है" पर इसमें तो दोष की साझेदारी हो जाती . ...बलात्कार हो जाने के बाद पुलिस /सरकार की भूमिका होती है पर बलात्कार की घटनाएं न हों इसमें सरकार की नहीं समाज की भूमिका होती है ...क्या हमारा समाज यह भूमिका निभा रहा है ? क्या आवारा कुकुरनुमा लड़कों से उनके माता -पिता पूछते हैं उनकी आवारगी के रहस्य ...क्या उनकी अदाओं पर परिवार सेंसर बोर्ड की तरह काम करता है ? ...क्या माता -बहने उनको संस्कार देती हैं ? ...क्या कंजूस कपड़ों के वाबजूद उनमें खिड़की -रोशनदान बनवाये लडकी जब कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए जब पढ़ने जाती है तो माँ पूछती है कि पढने जा रही हो या कैबरे करने ? जब घर-परिवार अपने आंतरिक दायित्व में असफल हो जाता है तो समाज सेंसरबोर्ड की तरह सलीके से रहने की आचार संहिता लागू करता है ...तब चिल्ल-पों होती हैं सोसल पुलिसिंग/खाप गलत है ...कुत्तेनुमा आवारा पुरुषों की बातें तो होगई पर ताली तो दोनों हाथ से बजती है .... कुतियानुमा स्त्रीयों की भी बात तो हों नहीं तो बात एक पक्षीय ही रह जायेगी . कहा जारहा है कि समाज के 50% पुरुष चरित्रहीन हैं ...हो भी सकते हैं ...मान लिए हैं ...अब समझ लें --एक चरित्रहीन पुरुष के कम से कम दो स्त्रीयों से सम्बन्ध होना जरूरी है ...अब बताएं अगर 50% पुरुष चरित्रहीन है तो शत प्रतिशत स्त्रीयां भी तो चरित्रहीन हुईं ---इसलिए ऐसे वीभत्स तर्क न दें ...लडकियां "हौट" और "सेक्सी" अपनी प्रसंशा मानती हैं ...तो कितनी हौट और कितनी सेक्सी की पैमाइश कैसे होगी ? "...Guy with an attitude" लड़कियों में प्रचलित जुमला है ...किस बात का attitude ? प्रख्यात दार्शनिक राखी सामंत कहती हैं -"Rape is sex in surprise" एक अन्य विदुषी रीना जैन कहती हैं --"Virginity is just lack of opportunity. " --- इस समाज पर श्यापा नहीं कीजिये इसे सुधारिए ...यह हमारा आपका समाज है इसे हमने गंदा किया है ... इसे हम ही साफ़ करेंगे ." ---- राजीव चतुर्वेदी
प्रदर्शन का यह तरीका ठीक नहीं है ।कृपया बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन करे न की अंग प्रदर्शन । इस तरह के प्रदर्शन से भारतीय संस्कृति शर्मसार हो रही है । यह तरीका विरोध जताने का नहीं बल्कि अश्लीलता परोसने का है । इसलिए आप लोगो से मेरा विनम्र अनुरोध है की प्रदर्शन के लिए दुसरे तरीको को अपनाएं
राजीव दीक्षित की पोस्ट से साभार ....
आपकी कुछेक बातों को छोड़ के सभी बातों से सहमत हूँ ,लेकिन सम्पूर्ण दोष स्त्री को देना
जवाब देंहटाएंकतई उचित नहीं है ,..कोई भी माँ अपने बेटे को कभी भी बलात्कार करने को नहीं कहेगी
दस साल ,आठ साल ,छ: साल , दो- तीन साल, छ:महीने की बच्चियां भी क्या बुरखा
या साडी पहने ?...यदि हाँ तो क्या वे मासूम बच्चियां उन कामी दरिंदों को अपने ऊपर
दरिंदगी करने से रोक लेतीं।..क्या बुरखा व साडी पहनने वाली स्त्री किसी विकृत
मानसिकता वाले नर की विकृति बलात्कार का शिकार नहीं बनती ?सच तो ये है कि मनुष्य को छोड़ के कोई भी नर प्राणी अपने मादा, शिशु ,बच्चा पे बलात्कार नहीं करता।,