तबिश सिद्दीकी अपनी वाल पर लिखते हैं -
जिस दिन से इस्लाम आया है वजूद में यही हो रहा है.. कहते हैं ओसामा मुस्लिम नहीं है, तालिबान मुसलमान नहीं है, ISIS वाले मुसलमान नहीं हैं, बोको हरम मुसलमान नहीं हैं.. ये सब भटके हुवे हैं इनको देख कर इस्लाम धर्म को परिभाषित नहीं किया जा सकता है... ठीक है
मगर फिर बताओ पैगम्बर के बाद से जो लोग चले आ रहे हैं उनको क्या बोला जाएगा? जिन लोगों ने खलीफाओं को मारा मुसलमान थे.. जिन लोगों ने पैगम्बर के पूरे खानदान का खात्मा कर दिया मुसलमान थे.. जिन लोगों ने सारे सूफियों को मारा मुसलमान ही तो थे.. और क्या थे वो लोग? उन लोगों को भी मुसलमान न बोला जाए?
और फिर आप बोलते हो की ओसामा और ISIS अब आये हैं दुनिया मे? जा के इस्लामिक इतिहास पढो आँख खुल जायेगी.. चैन से बैठने नहीं दिया इस धर्म ने किसी को.. ऐसा जूनून अल्लाह को एक मनवाने का कि वो पागलपन की हद तक पहुँच गया इस्लाम के शुरुवाती दिनों से ही
एक दिन मैं एक पाकिस्तानी प्रोग्राम को youtube पर देख रहा था जिसमे हसन नासिर कहते हैं की इस्लाम की शिक्षा में मूलभूत गड़बड़ी है.. इसको जब तक समझोगे नहीं कुछ नहीं होगा.. वहां उस प्रोग्राम में लोगों ने उनको चुप करा दिया.. मगर ये बहुत कटु सत्य है
पहले आपका धर्म सबसे सच्चा, फिर इस्लाम शुरू ही होता है “ए इमानवालों” जैसे शब्दों से जो अन्य धर्मो और लोगों को बे-ईमान बना देता है.. फिर भेद आता है काफिर, मुशरिक, मुनकिर, मुर्दत का.. यहाँ से हमारे बच्चों की शिक्षा शुरू होती है और आप बोलोगे की भाईचारा और अमन का सन्देश दे रहे हो?
अमन का सन्देश शुरू होता है इंसान को एक मानने से.. अल्लाह को एक नहीं.. अल्लाह को एक मनवाने के पीछे ही तो ये सारा खून खराबा शुरू हुवा है.. अल्लाह एक है या दस मुद्दा ये नहीं है अब.. मुद्दा ये है की आपकी शिक्षा इंसान को एक मानती है कि नहीं? अगर नहीं मानती है तो आज से ही बंद करो ऐसी शिक्षा को
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