सोमवार, 24 दिसंबर 2012

तस्वीर के कई पहलू हैं ...

Rajiv Chaturvedi shared Gunjan Mishra's photo.
‎"मत भूलिए कि दामिनी के प्रसंगवश चल रही बहस दिल्ली के पुलिस कोंस्टेबिल सुभाष तोमर की मौत की बजह से दागदार हो चुकी है . सुभाष तोमर भी भारत का ही नागरिक था . समाज को सम्यकता में देखिये और देखिये गरीब नहीं ...मध्यम वर्ग बल्कि अभिजात्य वर्ग की औरतें नंगई पर आमादा हैं .समाज में कामुकता कौन परोस रहा है ?...कामोद्दीपन कौन कर रहा है ? हर बलात्कारी ...गली मोहल्ले के लुच्चे कामुक लफंगे से तो निपटा ही जाए पर समाज में पूनम पांडे और राखी सामंतों ,मल्लिका शेहरावतों से भी लगे हाथों निपटा जाए . चूंकि पुरुष "बहिरंग" होता है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी बहिरंग होती हैं और स्त्री स्वभाव से " अन्तरंग" होती है अतः उसकी लफंगई की हरकतें भी अन्तरंग होती हैं . हम जैसा समाज तैयार करते हैं वैसा ही भोगते हैं ...अभी हाल ही की दिल्ली की घटना नहीं घटनाओं पर गौर करें ...वह जो कामुक पुरुष कुत्तों जैसे सड़क पर गली चौराहों पर लार टपकाते महिलाओं को हवसी निगाहों से ताकते हैं ....वह कुत्तों जैसे पुरुष किन कुतियों के बेटे हैं ?...किन कुतियों के प्रेमी हैं ?...और उन लडकीयों /महिलाओं पर भी गौर करें जो कल नारे लगा रही थीं --"देखने वाले तेरी नज़रों में ही पाप है / मेरी स्कर्ट से ऊंची मेरी आवाज़ है " क्या कहना चाहती हैं वह ? ...यही न कि "जैसे -जैसे उनकी आवाज़ ऊपर उठेगी उनकी स्कर्ट भी और ऊपर उठ जायेगी " ...कहा तो यह जाना चाहिए था --"देखने वाले तेरी नज़रों में "भी" पाप है / मेरी स्कर्ट से ऊंची मेरी आवाज़ है" पर इसमें तो दोष की साझेदारी हो जाती . ...बलात्कार हो जाने के बाद पुलिस /सरकार की भूमिका होती है पर बलात्कार की घटनाएं न हों इसमें सरकार की नहीं समाज की भूमिका होती है ...क्या हमारा समाज यह भूमिका निभा रहा है ? क्या आवारा कुकुरनुमा लड़कों से उनके माता -पिता पूछते हैं उनकी आवारगी के रहस्य ...क्या उनकी अदाओं पर परिवार सेंसर बोर्ड की तरह काम करता है ? ...क्या माता -बहने उनको संस्कार देती हैं ? ...क्या कंजूस कपड़ों के वाबजूद उनमें खिड़की -रोशनदान बनवाये लडकी जब कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए जब पढ़ने जाती है तो माँ पूछती है कि पढने जा रही हो या कैबरे करने ? जब घर-परिवार अपने आंतरिक दायित्व में असफल हो जाता है तो समाज सेंसरबोर्ड की तरह सलीके से रहने की आचार संहिता लागू करता है ...तब चिल्ल-पों होती हैं सोसल पुलिसिंग/खाप गलत है ...कुत्तेनुमा आवारा पुरुषों की बातें तो होगई पर ताली तो दोनों हाथ से बजती है .... कुतियानुमा स्त्रीयों की भी बात तो हों नहीं तो बात एक पक्षीय ही रह जायेगी . कहा जारहा है कि समाज के 50% पुरुष चरित्रहीन हैं ...हो भी सकते हैं ...मान लिए हैं ...अब समझ लें --एक चरित्रहीन पुरुष के कम से कम दो स्त्रीयों से सम्बन्ध होना जरूरी है ...अब बताएं अगर 50% पुरुष चरित्रहीन है तो शत प्रतिशत स्त्रीयां भी तो चरित्रहीन हुईं ---इसलिए ऐसे वीभत्स तर्क न दें ...लडकियां "हौट" और "सेक्सी" अपनी प्रसंशा मानती हैं ...तो कितनी हौट और कितनी सेक्सी की पैमाइश कैसे होगी ? "...Guy with an attitude" लड़कियों में प्रचलित जुमला है ...किस बात का attitude ? प्रख्यात दार्शनिक राखी सामंत कहती हैं -"Rape is sex in surprise" एक अन्य विदुषी रीना जैन कहती हैं --"Virginity is just lack of opportunity. " --- इस समाज पर श्यापा नहीं कीजिये इसे सुधारिए ...यह हमारा आपका समाज है इसे हमने गंदा किया है ... इसे हम ही साफ़ करेंगे ." ---- राजीव चतुर्वेदी
प्रदर्शन का यह तरीका ठीक नहीं है ।कृपया बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन करे न की अंग प्रदर्शन । इस तरह के प्रदर्शन से भारतीय संस्कृति शर्मसार हो रही है । यह तरीका विरोध जताने का नहीं बल्कि अश्लीलता परोसने का है । इसलिए आप लोगो से मेरा विनम्र अनुरोध है की प्रदर्शन के लिए दुसरे तरीको को अपनाएं ।
प्रदर्शन का यह तरीका ठीक नहीं है ।कृपया बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन करे न की अंग प्रदर्शन । इस तरह के प्रदर्शन से भारतीय संस्कृति शर्मसार हो रही है । यह तरीका विरोध जताने का नहीं बल्कि अश्लीलता परोसने का है । इसलिए आप लोगो से मेरा विनम्र अनुरोध है की प्रदर्शन के लिए दुसरे तरीको को अपनाएं
राजीव दीक्षित की पोस्ट से साभार ....

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

लो... अब खाओ विदेशी राशन.... डा0 प्रवीण तोगड़िया

  • Pravin Togadia
    लो! अब खाओ आलू गेहू अमरिका के, लहसून चीन का, टोमेटो यूरोप के, कुकर की १० सीटियाँ करके भी न गलने वाली कड़क प्लास्टिक जैसी दाल कोरिया की, चावल प्याज पाकिस्तान का, शिमला मिर्च इटाली की और पता नहीं क्या क्या कहाँ कहाँ का! साडी सी पिन तक चीन से आती है, प्लास्टिक की डिब्बी भी चीन कोरिया से आती है, रीबोक वाले शूज की लेस भी इंडोनेशिया में बनवा लेते हैं, प्रोक्टर एंड गेम्बल वाले सेनिटरी नेप्किंस, विक्स तक इ
    म्पोर्ट कर यहाँ बेचते हैं, केलोग्स कोर्न फ्लेक्स वाले मकई के दाने बाहर से लाते हैं. इन सभी की घाटा सहने की शक्ति भारत के छोटे दुकानदारों और उत्पादकों से अधिक है. केलोग्स वाले भारत में आये तब उन्होंने प्रेस में कहा था - हम १३ वर्ष घाटा सह सकते हैं, लेकिन भारतीयों की सुबह के नाश्ते की आदतें बदलकर ही रहेंगे. आज शहरों के कई लोग इडली, पोहा, पराठा, पूरी -कचोडी जलेबी समोसा छोड़ कोर्न फ्लेक्स खाकर शाला. ऑफिस जाते हैं. जिस देश में भूखमरी से मरनेवालों का प्रमाण २८% हो, छोटे किसानों का प्रमाण ७०% हो (जिनसे विदेशी खुर्दा बझार वाले कुछ नहीं खरीदते) उस देश में देश की परंपरागत यशदायी अर्थनीति त्याग कर देश को देखते हैं कहाँ ले जा रहे हैं. कोई जापान से ट्रेनें लाने जा रहे हैं, कारें लाने जा रहे हैं तो कोई खुर्दा बझार में विदेशी पूंजी! प्रगति अच्छी होती हैं जो सभी गरीबों को भी को साथ ले. अब विदेशी कब भारत के आम आदमी को साथ लेकर चले हैं, यह नहीं जानते हम. सेवा नहीं, व्यवसाय कर मुनाफा करने आ रहे हैं. भारत के किसान को बहुत रुपये मिलेंगे कहती है सरकार. देखते हैं कितना सच कहती है - या बाकी सभी वादों जैसा यह भी खोखला वादा. सुषमाजी ने बहुत अनुसंधान कर अच्छी तरह से इस विषय पर पक्ष रखा था. राजनीति और देश का कल्याण दोनों साथ साथ चलते तो आज सुषमा जी ने लाया हुआ प्रस्ताव नहीं गिरता. अब बेहतर यही है की बड़े बड़े विदेशी दुकानों की चमक दमक से बहक कर वहाँ खरीदारी न करे और अपने पास वाले हमेशा के किराना 'अंकल' से ही वस्तुएँ खरीदें. चाहे तो वालमार्ट, कोसको, केरिफोर के एयर कंडिशन में घुमने चले जाइए लेकिन खरीदें अपने हमेशा के किराना दूकान से - कीमत तो वे भी आप के लिए कम करते हैं, महीनो महीनो बिल न दो तो रुकते हैं. सोचियेगा! सबसे बेहतर है की अब हिंदू राष्ट्र की ओर ही चलियेगा!

    शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

    ये कहाँ आ गए हम... युद्धवीर सिंह लांबा

    • युधवीर सिंह लाम्बा भारतीय
      जागो भारत जागो -:- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज (अमेरिका , इंग्लैंड) की तरह ओल्ड एज होम ????????
      भारत में बुजुर्गों के लिए नित नये आश्रम बन रहे हैं। उनके लिए घर में जगह नहीं है। अंग्रेजी शिक्षित परिवारों, सुसज्जित आधुनिक घरों और स्वार्थी लोगों में चुके हुए पुराने जमाने के मां-बाप फिट नहीं बैठते। उनकी धन-सम्पलि और जमीन-जायदाद काम की होती है। बुजुर्गों
      के प्रति ऐसा रवैया मानसिक रूप से बीमार समाज का परिचायक है। यह स्थिति सचमुच दुःखद, दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है।
      जिस जिगर के टुकड़े को पालने में मां-बाप ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, मां खुद गीले में सोई और अपने लाल को सूखे में सुलाया, लेकिन मां-बाप को जब बुढ़ापा आया तो इन जिगर के टुकड़ों को मां-बाप अखरने लगे। उनकी अनदेखी होने लगी। ऐसे मामले में भी लगातार सामने आ रहे हैं जब ये लाड़ले ही अपने मां-बाप को घर से निकाल कर ओल्ड एज होम में छोड़ आए। कई ऐसे मामले भी हैं जब इन्हीं बच्चों ने मां-बाप को घर में कैद कर लिया या फिर खुले आसमान के नीचे उन्हें अपने हाल पर आंसू बहाने के लिए छोड़ दिया।
      हमें ओल्ड एज होम की कतई भी आवश्यकता नहीं है यदि ये बढ़ रहे है तो यह हमारे मानव समाज के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है । जो माता पिता हमें ऊँगली पकर कर चलना सिखाते है उनके बुढ़ापे में हम उन्हें सम्मान के साथ रख नहीं सकते धिक्कार है हमें! मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज की तरह बुजुर्ग पीढ़ी में अकेलेपन की भावना तेजी से बढ़ रही है।
      ये वही भारत देश है जहाँ राम ने अपने वृद्ध पिता का आदेश मान कर 14 बरस वन का वास किया था, ये वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कांवर में बैठा कर तीर्थ यात्रा के लिए ले जाता है ।
      हमारी संस्कृति में सदा ही बड़े बुजुर्गों को पूजनीय माना गया है। गोस्वामी तुलसी दास ने भी रामचरित मानस में प्रात काल उठि के रघुनाथा, मात-पिता गुरु नावहिं माथा चौपाई से बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से परिवार फलता-फूलता है। हमारे वृद्धजन ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हुए समाज के हित में काम करने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए हमें अपने बड़े-बुजुर्गों का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए। इससे ही हमारी वसुधैव कुटुम्बुकम की नींव को बल मिलेगा।
      जो युवा अपने माता पिता को वृद्धाश्रमों में भेजते हैं, जो उन्हें बोझ समझते हैं कि वह कभी भी सुख नहीं पा सकते है | 'जिस माँ ने नौ महीने अपने गर्भ में पाला है आज वो दर -दर की ठोकरे खा रही है ..
      वेदों में कहा गया है की -|पिता धर्म है ,पिता स्वर्ग है तथा पिता ही तप है ,आज भारतीय युवाओं के पास अपने बुजुर्गों के लिए समय नहीं है जबकि भारतीय समाज में माता-पिता की सेवा को समस्त धर्मों का सार है |
      जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!
      जागो भारत जागो -:- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज (अमेरिका , इंग्लैंड) की तरह ओल्ड एज होम ????????

भारत में बुजुर्गों के लिए नित नये आश्रम बन रहे हैं। उनके लिए घर में जगह नहीं है। अंग्रेजी शिक्षित परिवारों, सुसज्जित आधुनिक घरों और स्वार्थी लोगों में चुके हुए पुराने जमाने के मां-बाप फिट नहीं बैठते। उनकी धन-सम्पलि और जमीन-जायदाद काम की होती है। बुजुर्गों
के प्रति ऐसा रवैया मानसिक रूप से बीमार समाज का परिचायक है। यह स्थिति सचमुच दुःखद, दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है।

जिस जिगर के टुकड़े को पालने में मां-बाप ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, मां खुद गीले में सोई और अपने लाल को सूखे में सुलाया, लेकिन मां-बाप को जब बुढ़ापा आया तो इन जिगर के टुकड़ों को मां-बाप अखरने लगे। उनकी अनदेखी होने लगी। ऐसे मामले में भी लगातार सामने आ रहे हैं जब ये लाड़ले ही अपने मां-बाप को घर से निकाल कर ओल्ड एज होम में छोड़ आए। कई ऐसे मामले भी हैं जब इन्हीं बच्चों ने मां-बाप को घर में कैद कर लिया या फिर खुले आसमान के नीचे उन्हें अपने हाल पर आंसू बहाने के लिए छोड़ दिया।

हमें ओल्ड एज होम की कतई भी आवश्यकता नहीं है यदि ये बढ़ रहे है तो यह हमारे मानव समाज के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है । जो माता पिता हमें ऊँगली पकर कर चलना सिखाते है उनके बुढ़ापे में हम उन्हें सम्मान के साथ रख नहीं सकते धिक्कार है हमें! मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की संस्कृति वाले देश भारत में भी अब पश्चिमी समाज की तरह बुजुर्ग पीढ़ी में अकेलेपन की भावना तेजी से बढ़ रही है।

ये वही भारत देश है जहाँ राम ने अपने वृद्ध पिता का आदेश मान कर 14 बरस वन का वास किया था, ये वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कांवर में बैठा कर तीर्थ यात्रा के लिए ले जाता है ।

हमारी संस्कृति में सदा ही बड़े बुजुर्गों को पूजनीय माना गया है। गोस्वामी तुलसी दास ने भी रामचरित मानस में प्रात काल उठि के रघुनाथा, मात-पिता गुरु नावहिं माथा चौपाई से बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से परिवार फलता-फूलता है। हमारे वृद्धजन ही हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हुए समाज के हित में काम करने की प्रेरणा देते हैं। इसलिए हमें अपने बड़े-बुजुर्गों का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए। इससे ही हमारी वसुधैव कुटुम्बुकम की नींव को बल मिलेगा।

जो युवा अपने माता पिता को वृद्धाश्रमों में भेजते हैं, जो उन्हें बोझ समझते हैं कि वह कभी भी सुख नहीं पा सकते है | 'जिस माँ ने नौ महीने अपने गर्भ में पाला है आज वो दर -दर की ठोकरे खा रही है ..

वेदों में कहा गया है की -|पिता धर्म है ,पिता स्वर्ग है तथा पिता ही तप है ,आज भारतीय युवाओं के पास अपने बुजुर्गों के लिए समय नहीं है जबकि भारतीय समाज में माता-पिता की सेवा को समस्त धर्मों का सार है |

जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

      मंगलवार, 27 नवंबर 2012

      चम्पादक और पुलिस संवाद.... डा अनिल पाण्डेय


      डा. अनिल पांडेय

      चम्पादक - जी, आप कैसे गिरफ्तार कर सकते हैं एक चम्पादक को...वो भी दफ्तर से...
      पुलिस अधिकारी - आपके खिलाफ़ वारंट है...
      चम्पादक - वारंट से क्या होता है...हम चम्पादक हैं...कानून वानून नहीं मानते...
      पुलिस अधिकारी - डंडा तो मानते हो कि नहीं...
      चम्पादक - देखिए ये महंगा पड़ सकता है...
      पुलिस अधिकारी -100 करोड़ हैं ही नहीं हमारे पास...2-3 लाख में आपका पेट नहीं भरेगा...क्या करोगे...चलो अब...
      चम्पादक - मेरी पहुंच बेहद ऊपर तक है...
      पुलिस अधिकारी - मेरे भी बॉस वही हैं...
      चम्पादक - सस्पैंड करवा दूंगा...
      पुलिस अधिकारी - बहुत करवा लिया...आज तो बदले का दिन है...
      चम्पादक - थाने चलो, वहीं देखते हैं...वर्दी का घमंड है...
      पुलिस अधिकारी - चलो...वर्दी उतार कर ही बात करेंगे आज रात...
      चम्पादक - अच्छा..अरे...ओह..बुरा मान गए क्या...देखो अपन तो भाई भाई हैं...
      पुलिस अधिकारी - मैं तो कभी गिरफ्तार नहीं हुआ...कैसे भाई...
      चम्पादक मालिक को फोन लगाते हैं....
      फोन पर - डायल किया गया नम्बर फिलहाल स्विच ऑफ़ है...
      चम्पादक - मरवा दिया @#$%^& ने...बोले धंधा लाओ...वाट ही लगवा दी...कहा था टिंगल टेढ़ा आदमी है...पावरप्राश के दो स्लॉट और ले आते...बाकी पांटी से बात करवा देते...कुछ ज़मीनें दिलवा देते...
      पुलिस अधिकारी - बेटा, तुमको भी तो बड़ी पड़ी थी, जल्दी चैनल हेड बनने की...जब रिपोर्टर थे...थाने आते थे...तभी से लक्षण दिखते थे...लेकिन 10-20 हज़ार की दलाली से इतनी जल्दी उड़ने की इच्छा से ये ही होना था...खिचड़ी गर्म हो तो किनारे से खाना शुरु करो...बीच से खाओगे तो मुंह जलाओगे...
      चम्पादक - अब ज्ञान न दो...मालिकवा भी फोन नहीं उठा रहा...
      पुलिस अधिकारी - चलो...क्या करना है...
      चम्पादक - रुको एक फोन और कर लें...
      (चम्पादक न्यूज़रूम में फ़ोन लगाता है...)
      चम्पादक - सुनो...हम दोनों को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है...ब्रेकिंग चलवाओ...और अगला बुलेटिन चलाओ...फोनो लो...लाइव लो...मेन एंकर को लगा दो...लोकतंत्र पर हमला...सम्पादकों की गिरफ्तारी...सरकार का मीडिया पर हमला...आज़ादी छीनने की कोशिश...मीडिया पर दबाव बनाने की कोशिश...लोकतंत्र के चौथे खंभे की नींव में पानी भरने की सरकारी साज़िश...जो जो याद आए, सारे जुमले ठेल दो...और हां एंकर लिंक लिख कर पढ़वाना...नहीं बहुत अक्खड़ एंकर है...मन से बोला तो ऐसी तैसी करवा देगा...सम्पादक की गिरफ्तारी कैसे कर सकते हैं...भले ही राष्ट्रपति की कर लें...हां याद रखना...लोगों को इमरजेंसी की याद भी दिला देना...समझे...
      पुलिस अधिकारी - बहुत हो गया...चलो रास्ते से बीयर भी लेनी है, दिल्ली में दुकान दस बजे बंद हो जाती है...बाकी बात वकील से करना...
      चम्पादक - अच्छा...वो बीयर लेना तो एक ओल्ड मॉंक का अद्धा भी ले लेना...बाकी तो लोकतंत्र की हत्या हो ही गई...ग़म ही ग़लत कर लें...
      पुलिस वाला मुस्कुराता है...
      *****************************************
      (इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है...हो तो वो खुद ज़िम्मेदार है...)

      शनिवार, 24 नवंबर 2012

      आप लोगो की इन सभी मुद्दों पर क्या राय है?--- अनिल गुप्ता


      अनिल गुप्ता
      १. POTA : यह कानून काफी सख्त कानून था आतंकवाद के खिलाफ .. यह कानून कांग्रेस ने सत्ता में आते ही हटा दिया था. आप लोगो की क्या राय है?
      २. Fertility Control act: यह कानून का असली मकसद देश की जनसँख्या को नियंत्रित करना होगा .. इस कानून के तहत एक परिवार के सिर्फ और सिर्फ २ बच्चे हो सकते है . अगर किसी भी परिवार में दो से ज्यादा बच्चे होते है तोह उसको किसी भी त
      रह की सरकारी मदद नहीं मिलेगी , न कोई सरकारी नौकरी | यह कानून इसीलिए जरुरी है क्यूंकि आज देश में संसाधन बहुत तेजी से इस्तेमाल हो रहे है और बदती जनसँख्या के कारण महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी भी बड रही है ..
      ३. Border Security: इस कानून के तहत भारत की पूरी सीमा ८ मीटर ऊँची और १ मीटर मोटी दीवार से सील कर दी जाएगी .. पूरी सीमा पर भारत के जवान होंगे , अगर कोई भी घुसपैठिया भारत की सीमा में घुसता दिखाई दे तोह सीधा गोली मारने का अधिकार होगा भारत के सैनिको के पास. यह कानून इसीलिए जरुरी है क्यूंकि आज भारत की सीमा पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है इसी कारण पडोसी देशो जैसे की बांग्लादेश और नेपाल के रस्ते पाकिस्तानी हमारे देश में घुस जाते है और आतंकवाद मचाते है .. वहीँ दूसरी ओर भारत के संसाधनों का उपयोग करके भारत को ही बर्बाद करते है , भारत का आम नागरिक संसाधनों की कमी से भी झुजता है ..
      ४. Universal Civil Code: इस कानून के तहत भारत का हर व्यक्ति समान होगा .. सबके लिए कानून एक होगा .. ना कोई हिन्दू होगा और ना ही कोई मुस्लिम होगा .. आज भारत में ऐसा कोई भी कानून नहीं है ! ..
      --------------------------------------------------------
      कृपया करके अपनी राय और अपनी टिपण्णी जरुर दे .. और अपने मित्रो के साथ भी इस लेख को शेयर करें ताकी वो भी अपनी राय रख सके |
      भारत माता की जय
      जय श्री राम.

      शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

      सरकार की दोगली नीति ... विकास पुंडीर

      विकास पुंडीर हिन्दू राष्ट्रवादी'

      ज्यादा से ज्यादा "Share" करे,ताकि हर हिन्दुस्तानी जान सके .
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सोनिया गाँधी के "निजी मनोरंजन क्लब" यानी नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-

1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को "महसूस" होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…

(इसका मोटा अर्थ यह है कि यदि 100-200 कांग्रेसी अथवा 100-50 जेहादी तत्व किसी राज्य में दंगा फ़ैला दें तो राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी)…

2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा "बहुसंख्यकों" द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि "अल्पसंख्यक" हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…

3) यदि दंगों के दौरान किसी "अल्पसंख्यक" महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि "बहुसंख्यक" वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…

4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ "घृणा अभियान" चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…

5) "अल्पसंख्यक समुदाय" के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ "बहुसंख्यक समुदाय" ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा कर रहा है)…

इस विधेयक के तमाम बिन्दुओं का ड्राफ़्ट तैयार किया है, सोनिया गाँधी की "किचन कैबिनेट" के सुपर-सेकुलर सदस्यों एवं अण्णा को कठपुतली बनाकर नचाने वाले IAS व NGO गैंग के टट्टुओं ने… इस बिल की ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्यों के नाम पढ़कर ही आप समझ जाएंगे कि यह बिल "क्यों", "किसलिये" और "किसको लक्ष्य बनाकर" तैयार किया गया है…। "माननीय"(?) सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं - हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, तीस्ता सीतलवाड, राम पुनियानी, जॉन दयाल, शबनम हाशमी, सैयद शहाबुद्दीन… यानी सब के सब एक नम्बर के "छँटे हुए" सेकुलर… । "वे" तो सिद्ध कर ही देंगे कि "बहुसंख्यक समुदाय" ही हमलावर होता है और बलात्कारी भी…

अब यह विधेयक संसद में रखा जाएगा, फ़िर स्थायी समिति के पास जाएगा, तथा अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसे पास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सके तथा भाजपा की राज्य सरकारों पर बर्खास्तगी की तलवार टांगी जा सके…। यह बिल लोकसभा में पास हो ही जाएगा, क्योंकि भाजपा के अलावा कोई और पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी…। जो बन पड़े उखाड़ लो..

और दीजिये वोट कांग्रेस को..

जागो हिन्दुओ जागो.
आखिर कब तक सोओगे??
आखिर कब तक??
      सोनिया गाँधी के "निजी मनोरंजन क्लब" यानी नेशनल एडवायज़री

      काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-
      1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को "महसूस" होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…
      (इसका मोटा अर्थ यह है कि यदि 100-200 कांग्रेसी अथवा 100-50 जेहादी तत्व किसी राज्य में दंगा फ़ैला दें तो राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी)…
      2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा "बहुसंख्यकों" द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि "अल्पसंख्यक" हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…
      3) यदि दंगों के दौरान किसी "अल्पसंख्यक" महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि "बहुसंख्यक" वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…
      4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ "घृणा अभियान" चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…
      5) "अल्पसंख्यक समुदाय" के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ "बहुसंख्यक समुदाय" ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा कर रहा है)…
      इस विधेयक के तमाम बिन्दुओं का ड्राफ़्ट तैयार किया है, सोनिया गाँधी की "किचन कैबिनेट" के सुपर-सेकुलर सदस्यों एवं अण्णा को कठपुतली बनाकर नचाने वाले IAS व NGO गैंग के टट्टुओं ने… इस बिल की ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्यों के नाम पढ़कर ही आप समझ जाएंगे कि यह बिल "क्यों", "किसलिये" और "किसको लक्ष्य बनाकर" तैयार किया गया है…। "माननीय"(?) सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं - हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, तीस्ता सीतलवाड, राम पुनियानी, जॉन दयाल, शबनम हाशमी, सैयद शहाबुद्दीन… यानी सब के सब एक नम्बर के "छँटे हुए" सेकुलर… । "वे" तो सिद्ध कर ही देंगे कि "बहुसंख्यक समुदाय" ही हमलावर होता है और बलात्कारी भी…
      अब यह विधेयक संसद में रखा जाएगा, फ़िर स्थायी समिति के पास जाएगा, तथा अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसे पास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सके तथा भाजपा की राज्य सरकारों पर बर्खास्तगी की तलवार टांगी जा सके…। यह बिल लोकसभा में पास हो ही जाएगा, क्योंकि भाजपा के अलावा कोई और पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी…। जो बन पड़े उखाड़ लो..
      और दीजिये वोट कांग्रेस को..
      जागो हिन्दुओ जागो.
      आखिर कब तक सोओगे??
      आखिर कब तक??

      गुरुवार, 22 नवंबर 2012

      डूब मरें ऐसी औलादें.... समीर सिंह

      Sameer Singh

      इसे एक बार ज़रूर पढ़े ......।।।।
      =========================================
      बात दुर्ग के रेलवे स्टेशन की है .., कल रात .,मैं ट्रेन के इंतज़ार में रेल्वे - प्लेटफार्म पर टहल रहा था .,
      एक वृद्ध महिला , जिनकी उम्र लगभग 60 - 65 वर्ष के लगभग रही होगी ., वो मेरे पास आयी और मुझसे खाने के लिए पैसे माँगने लगी ....
      उनके कपडे फटे ., पूरे तार - तार थे ., उनकी दयनीय हालत देख कर ऐसा लग रहा था की पिछले कई द

      िनों से भोजन भी ना किया हो ..
      मुझे उनकी दशा पर बहुत तरस आया तो मैंने अपना पर्स टटोला ., कुछ तीस रुपये के आसपास छुट्टे पैसे और एक हरा " गांधी " मेरे पर्स में था .,
      मैंने वो पूरे छुट्टे उन्हें दे दिए...
      मैंने पैसे उन्हें दिए ही थे ., की इतने में एक महिला ., एक छोटे से रोते - बिलखते., दूधमुहे बच्चे के साथ टपक पड़ी ., और छोटे दूधमुहे बच्चे का वास्ता देकर वो भी मुझसे पैसे माँगने लगी ... मैं उस दूसरी महिला को कोई ज़वाब दे पाता की उन वृद्ध माताजी ने वो सारे पैसे उस दूसरी महिला को दे दिए ., जो मैंने उन्हें दिए थे .... पैसे लेकर वो महिला तो चलती बनी... लेकिन मैं सोच में पड़ गया ... मैंने उनसे पूछा की-" आपने वो पैसे उस महिला को दे दिए ..??? "
      उनका ज़वाब आया -" उस महिला के साथ उसका छोटा सा दूधमुहा बच्चा भी तो था ., मैं भूखे रह लूंगी लेकिन वो छोटा बच्चा बगैर दूध के कैसे रह पायेगा ... ??? भूख के मारे रो भी रहा था ..."
      उनका ज़वाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गया .... सच ... भूखे पेट भी कितनी बड़ी मानवता की बात उनके ज़ेहन में बसी थी ....
      उनकी सोच से मैं प्रभावित हुआ ., तो उनसे यूं ही पूछ लिया की यूं दर -बदर की ठोकरे खाने के पीछे आखिर कारण क्या है ...???
      उनका ज़वाब आया की उनके दोनों बेटो ने शादी के बाद उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया ., पति भी चल बसे .., आखिर में कोई चारा न बसा ...
      बेटो ने तो दुत्कार दिया ., लेकिन वो भी हर बच्चे में अपने दोनों बेटो को ही देखती है ., इतना कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ...
      मैं भी भावुक हो गया .,मैंने पास की एक कैंटीन से उन्हें खाने का सामान ला दिया ... मैं भी वहा से फिर साईड हट गया ...
      लेकिन बार-बार ज़ेहन में यही बात आ रही थी ., की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है ., जो अपनी जन्म देने वाली माँ तक को सहारा नहीं दे सकती ...??? लानत है ऐसी संतान पर .... और दूसरी तरफ वो " माँ " ., जिसे हर बच्चे में अपने " बेटे " दिखाई देते है ....
      धन्य है " मातृत्व-प्रेम ".......

      इसे एक बार ज़रूर पढ़े ......।।।।
=========================================
बात दुर्ग के रेलवे स्टेशन की है .., कल रात .,मैं  ट्रेन के इंतज़ार में  रेल्वे - प्लेटफार्म  पर टहल रहा था ., 
एक वृद्ध महिला , जिनकी उम्र लगभग 60 - 65 वर्ष के लगभग रही होगी ., वो  मेरे पास  आयी और मुझसे खाने के लिए पैसे माँगने लगी ....  
उनके कपडे फटे ., पूरे तार - तार थे ., उनकी दयनीय हालत देख  कर ऐसा लग रहा था की पिछले कई दिनों  से  भोजन भी  ना किया हो ..
मुझे उनकी दशा पर बहुत तरस आया तो मैंने अपना पर्स टटोला ., कुछ तीस रुपये के आसपास छुट्टे पैसे और एक हरा " गांधी " मेरे पर्स में था .,
मैंने वो पूरे छुट्टे उन्हें दे दिए...

मैंने पैसे उन्हें दिए ही थे ., की इतने में एक महिला ., एक छोटे से रोते - बिलखते., दूधमुहे बच्चे के साथ टपक पड़ी ., और छोटे दूधमुहे बच्चे का वास्ता देकर  वो भी मुझसे पैसे माँगने लगी ... मैं उस दूसरी महिला को कोई ज़वाब दे पाता  की उन वृद्ध माताजी ने वो  सारे पैसे उस दूसरी महिला को दे दिए ., जो मैंने उन्हें दिए थे .... पैसे लेकर वो महिला तो चलती  बनी... लेकिन मैं सोच में पड़  गया ... मैंने   उनसे पूछा की-" आपने वो पैसे उस महिला को  दे दिए ..??? "
उनका ज़वाब आया -" उस महिला के साथ उसका छोटा सा   दूधमुहा बच्चा भी तो था ., मैं भूखे रह लूंगी लेकिन वो छोटा बच्चा बगैर दूध के कैसे रह पायेगा ... ???  भूख के मारे रो भी रहा था ..."
उनका ज़वाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गया .... सच ... भूखे पेट भी कितनी बड़ी मानवता की बात उनके ज़ेहन में बसी थी ....

उनकी सोच से मैं प्रभावित हुआ ., तो उनसे यूं  ही पूछ लिया की यूं दर -बदर की ठोकरे खाने के पीछे आखिर कारण क्या है ...???
उनका ज़वाब आया की उनके दोनों बेटो ने शादी के बाद उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया ., पति भी चल बसे .., आखिर में कोई चारा न बसा ...
बेटो ने तो दुत्कार दिया ., लेकिन वो  भी हर बच्चे में अपने दोनों बेटो को ही देखती है ., इतना कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ...

मैं भी भावुक हो गया .,मैंने  पास की एक कैंटीन से उन्हें खाने का सामान ला दिया ... मैं भी वहा  से फिर साईड  हट गया ...
लेकिन बार-बार ज़ेहन में यही बात आ रही थी ., की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है ., जो अपनी जन्म देने वाली माँ तक को सहारा  नहीं दे सकती ...??? लानत  है  ऐसी संतान   पर .... और दूसरी तरफ वो " माँ " ., जिसे हर बच्चे में अपने " बेटे " दिखाई देते है ....
धन्य है " मातृत्व-प्रेम ".........

      मंगलवार, 20 नवंबर 2012

      बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी .... संजय कुमार त्रिपाठी

      Sanjay Kumar Tripathi

      सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी। चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी

      ***खूब लड़ी मर्दानी वो तो झासी वाली रानी थी ******महारानी रानी लक्ष्मीबाई (१९ नवंबर १८२८ – १७ जून १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और१८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। इनका जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। **** सन १८४२ में इनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन १८५३ में राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु २१ नवंबर १८५३ में हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।****** बिरला मंदिर, दिल्ली में लक्ष्मीबाई का भित्ति चित्रडलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थे, को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया, तथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया। इसके साथ ही रानी को झाँसी के किले को छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हर कीमत पर झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था।झाँसी का युद्ध*****१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट, जिसमें लक्ष्मीबाई का चित्र है।*****झाँसी १८५७ के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया।*****१८५७ के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। १८५८ के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया. 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लढ़ते-लढ़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई. लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और "विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक" थीं।

      जय महाकाल......जय श्री राम........

      सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।   चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी

***खूब लड़ी मर्दानी वो तो झासी वाली रानी थी ******महारानी रानी लक्ष्मीबाई (१९ नवंबर १८२८ – १७ जून १८५८) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और१८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना थीं। इनका जन्म वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था। इनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था। इनकी माता का नाम भागीरथी बाई तथा पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान एवं धार्मिक महिला थीं। मनु जब चार वर्ष की थीं तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। चूँकि घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए जहाँ चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका मन मोह लिया। लोग उसे प्यार से "छबीली" बुलाने लगे। मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली। **** सन १८४२ में इनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ, और ये झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन १८५३ में राजा गंगाधर राव का बहुत अधिक स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की मृत्यु २१ नवंबर १८५३ में हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।****** बिरला मंदिर, दिल्ली में लक्ष्मीबाई का भित्ति चित्रडलहौजी की राज्य हड़प नीति के अन्तर्गत ब्रितानी राज्य ने दामोदर राव जो उस समय बालक ही थे, को झाँसी राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया, तथा झाँसी राज्य को ब्रितानी राज्य में मिलाने का निश्चय कर लिया। तब रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रितानी वकील जान लैंग की सलाह ली और लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया। यद्यपि मुकदमे में बहुत बहस हुई परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का खजाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना खर्च में से काट लिया गया। इसके साथ ही रानी को झाँसी के किले को छोड़ कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हर कीमत पर झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय कर लिया था।झाँसी का युद्ध*****१८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाकटिकट, जिसमें लक्ष्मीबाई का चित्र है।*****झाँसी १८५७ के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती भी की गयी और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया।*****१८५७ के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया। १८५८ के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लडाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर कब्जा कर लिया। परन्तु रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुंची और तात्या टोपे से मिली।तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया. 17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में ब्रिटिश सेना से लढ़ते-लढ़ते रानी लक्ष्मीबाई की मौत हो गई. लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और "विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक" थीं।
जय महाकाल......जय श्री राम........

      तक्षशिला विश्वविद्यालय --- भारत गौरव गाथा

      Sanjay Kumar Tripathi

      ‎'तक्षशिला विश्वविद्यालय'वर्तमान पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था। आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी। शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे। परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी। चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छ: माह का शोध कार्य करना पड़ता था। इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री मिलती थी।
      * यह विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी।
      * तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे।
      * यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था।
      * 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के'चिकित्सा शास्त्र'का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था।
      आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र
      500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला'आयुर्वेद विज्ञान'का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतड़ियों तक का ऑपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था। शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे। इनकी संख्या प्राय: सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी। अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था। छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था।
      शुल्क और परीक्षा
      शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उससमय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी। धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की। इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे। चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे। विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफ़ी क्षति पहुंचाई। अंतत: छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया।
      पाठ्यक्रम
      * उस समय विश्वविद्यालय कई विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध करता था, जैसे - भाषाएं , व्याकरण, दर्शन शास्त्र , चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, कृषि , भूविज्ञान, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान, समाज-शास्त्र, धर्म , तंत्र शास्त्र, मनोविज्ञान तथा योगविद्या आदि।
      * विभिन्न विषयों पर शोध का भी प्रावधान था।
      * शिक्षा की अवधि 8 वर्ष तक की होती थी।
      * विशेष अध्ययन के अतिरिक्त वेद , तीरंदाजी, घुड़सवारी, हाथी का संधान व एक दर्जन से अधिक कलाओं की शिक्षा दी जाती थी।
      * तक्षशिला के स्नातकों का हर स्थान पर बड़ा आदर होता था।
      * यहां छात्र 15-16 वर्ष की अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
      स्वाभाविक रूप से चाणक्य को उच्च शिक्षा की चाह तक्षशिला ले आई। यहां चाणक्य ने पढ़ाई में विशेष योग्यता प्राप्त की
      जय महाकाल !!
      जय जय श्री राम !!
      जय सनातन सेना......................

      'तक्षशिला विश्वविद्यालय'वर्तमान पाकिस्तान की राजधानी रावलपिण्डी से 18 मील उत्तर की ओर स्थित था। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय था उसके बारे में कहा जाता है कि श्री राम के भाई भरत के पुत्र तक्ष ने उस नगर की स्थापना की थी। यह विश्व का प्रथम विश्विद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे। यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था। 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के चिकित्सा शास्त्र का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था। तक्षशिला विश्वविद्यालय का विकास विभिन्न रूपों में हुआ था। इसका कोई एक केन्द्रीय स्थान नहीं था, अपितु यह विस्तृत भू भाग में फैला हुआ था। विविध विद्याओं के विद्वान आचार्यो ने यहां अपने विद्यालय तथा आश्रम बना रखे थे। छात्र रुचिनुसार अध्ययन हेतु विभिन्न आचार्यों के पास जाते थे। महत्वपूर्ण पाठयक्रमों में यहां वेद-वेदान्त, अष्टादश विद्याएं, दर्शन, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्धविद्या, शस्त्र-संचालन, ज्योतिष, आयुर्वेद, ललित कला, हस्त विद्या, अश्व-विद्या, मन्त्र-विद्या, विविद्य भाषाएं, शिल्प आदि की शिक्षा विद्यार्थी प्राप्त करते थे। प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार पाणिनी, कौटिल्य, चन्द्रगुप्त, जीवक, कौशलराज, प्रसेनजित आदि महापुरुषों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। तक्षशिला विश्वविद्यालय में वेतनभोगी शिक्षक नहीं थे और न ही कोई निर्दिष्ट पाठयक्रम था। आज कल की तरह पाठयक्रम की अवधि भी निर्धारित नहीं थी और न कोई विशिष्ट प्रमाणपत्र या उपाधि दी जाती थी। शिष्य की योग्यता और रुचि देखकर आचार्य उनके लिए अध्ययन की अवधि स्वयं निश्चित करते थे। परंतु कहीं-कहीं कुछ पाठयक्रमों की समय सीमा निर्धारित थी। चिकित्सा के कुछ पाठयक्रम सात वर्ष के थे तथा पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद प्रत्येक छात्र को छ: माह का शोध कार्य करना पड़ता था। इस शोध कार्य में वह कोई औषधि की जड़ी-बूटी पता लगाता तब जाकर उसे डिग्री मिलती थी।

* यह विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय था जिसकी स्थापना 700 वर्ष ईसा पूर्व में की गई थी।

* तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के 10,500 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे।

* यहां 60 से भी अधिक विषयों को पढ़ाया जाता था।

* 326 ईस्वी पूर्व में विदेशी आक्रमणकारी सिकन्दर के आक्रमण के समय यह संसार का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ही नहीं था, अपितु उस समय के'चिकित्सा शास्त्र'का एकमात्र सर्वोपरि केन्द्र था।

आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र 

500 ई. पू. जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला'आयुर्वेद विज्ञान'का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं एवं विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर तथा अंतड़ियों तक का ऑपरेशन बड़ी सुगमता से कर लेते थे। अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल एवं सुलभ जड़ी बूटियों से करते थे। इसके अतिरिक्त अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें ज्ञान था। शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक आचार्य के पास अनेक विद्यार्थी रहते थे। इनकी संख्या प्राय: सौ से अधिक होती थी और अनेक बार 500 तक पहुंच जाती थी। अध्ययन में क्रियात्मक कार्य को बहुत महत्त्व दिया जाता था। छात्रों को देशाटन भी कराया जाता था।

शुल्क और परीक्षा 

शिक्षा पूर्ण होने पर परीक्षा ली जाती थी। तक्षशिला विश्वविद्यालय से स्नातक होना उससमय अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। यहां धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की व्यवस्था थी। धनी छात्रा आचार्य को भोजन, निवास और अध्ययन का शुल्क देते थे तथा निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से विदित होता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, कूटनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री चाणक्य ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। उसके बाद यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। यहीं उन्होंने अपने अनेक ग्रंथों की रचना की। इस विश्वविद्यालय की स्थिति ऐसे स्थान पर थी, जहां पूर्व और पश्चिम से आने वाले मार्ग मिलते थे। चतुर्थ शताब्दी ई. पू. से ही इस मार्ग से भारतवर्ष पर विदेशी आक्रमण होने लगे। विदेशी आक्रांताओं ने इस विश्वविद्यालय को काफ़ी क्षति पहुंचाई। अंतत: छठवीं शताब्दी में यह आक्रमणकारियों द्वारा पूरी तरह नष्ट कर दिया।

पाठ्यक्रम

* उस समय विश्वविद्यालय कई विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध करता था, जैसे - भाषाएं , व्याकरण, दर्शन शास्त्र , चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, कृषि , भूविज्ञान, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान, समाज-शास्त्र, धर्म , तंत्र शास्त्र, मनोविज्ञान तथा योगविद्या आदि।

* विभिन्न विषयों पर शोध का भी प्रावधान था।

* शिक्षा की अवधि 8 वर्ष तक की होती थी।

* विशेष अध्ययन के अतिरिक्त वेद , तीरंदाजी, घुड़सवारी, हाथी का संधान व एक दर्जन से अधिक कलाओं की शिक्षा दी जाती थी।

* तक्षशिला के स्नातकों का हर स्थान पर बड़ा आदर होता था।

* यहां छात्र 15-16 वर्ष की अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने आते थे। 

स्वाभाविक रूप से चाणक्य को उच्च शिक्षा की चाह तक्षशिला ले आई। यहां चाणक्य ने पढ़ाई में विशेष योग्यता प्राप्त की

जय महाकाल !!
जय जय श्री राम !!

जय सनातन सेना......................

      बुधवार, 14 नवंबर 2012

      मुसलमान :राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान…..शंखनाद धर्म और राजनीति

      यह बात तो सब जानते है कि भारत के मुसलमान "वन्दे मातरम "का विरोध करते हैं .उनका तर्क है की , वह अल्लाह के सिवा किसी की स्तुति या वंदना नहीं कर सकते है .यह इस्लाम केविरुद्ध है.ऐसा उनका तर्क है .भारत में लगभग 19370 मदरसे चल रहे हैं ,और सबको सरकार से मदद मिलाती है .लेकिन आपने आजतक किसी मदरसे में नहीं देखा होगा कि 26 जनवरी और 15 अगस्त जैसे राष्ट्रिय पर्वों पर वहां स

      म्मान पूर्वक राष्ट्र ध्वज फहराया गया हो ,और राष्ट्र गान गाया गया हो .मुसलमान इसे गुनाह मानते हैं .कुछ समय पूर्व एक फतवा पढ़ने को मिला था ,जिसमे ,लोगों ने मुल्लों से पूछा था कि ,क्या राष्ट्र गान गाना और राष्ट्र ध्वज का सम्मान करना इस्लाम में जायज है ?उत्तर के रूप में जो फतवा दिया गया है ,उसके मुख्य अंश हिंदी और अंगरेजी में दिए जा रहे हैं .साथ में कुरान कि उन आयतों ,और हदीसों के अरबी में हवाले भी दिए जा रहे हैं ,जिनके अधर पर इसे हराम करार दिया गया .
      यह फतवा गुरुवार दिनांक -23 दिसंबर 2010 को "फतवा अल जन्नाह अल दायमा "ने जारी किया है ,जिसे ई मेल से भारत भेजा गया था .
      111877 -Thu 17/1/1432 - 23/12/2010 Basic Tenets of Faith
      Respect for the national anthem or flag" احترام النشيد الوطني او العلم"
      What is the ruling on standing when the national anthem is played, or when the flag is saluted?.
      Praise be to Allaah.- الحمد لله .
      Firstly:
      पहिली बात यह है कि ,राष्ट्र गान को गाना और सुनना हराम है !
      Playing or listening to national anthems is haraam.
      This has been discussed in the answer to question no. 5000 and 20406. It makes no difference whether what is played is songs or the national anthem or anything else.
      सवाल संख्या 5000 और 20406 पर विमर्श के बाद तय किया कि चाहे राष्ट्र गान हो ,या कोई और उस से कोई फर्क नहीं होता .
      Secondly:
      दूसरी बात यह है कि , विनम्रता से खड़ा होना है ,जो सर्फ अल्लाह के लिए ही होना चाहिए
      Standing by way of humility and veneration is not befitting unless it is done for Allaah.
      الدائمة عن طريق التواضع والتعظيم لا يليق إلا إذا تم القيام به من أجل الله
      Allaah says (interpretation of the meaning):
      “And stand before Allaah with obedience”
      इस आयत में स्पष्ट किया गया है कि ,"अल्लाह के आगे पूरे भक्ति और विनय भाव से खड़े हो" .सूरा -बकरा 2 :238
      والوقوف بين يدي الله مع طاعة
      al-Baqarah 2:238].
      और जिस दिन रूह और फ़रिश्ते पंक्तिबद्ध होकर खड़े होंगे ,वे बोलेंगे नहीं ,सिवाय उस व्यक्ति के ,जिसे रहमान अनुज्ञा दे दे .
      Allaah has said that because of His greatness and majesty, the greatest of creation (the angels) will stand for Him on the Day of Resurrection and no one will speak until after Allaah has given him permission. He says (interpretation of the meaning):
      “The Day that Ar‑Rooh [Jibreel (Gabriel)
      يَوْمَ يَقُومُ الرُّوحُ وَالْمَلَائِكَةُ صَفًّا لَّايَتَكَلَّمُونَ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرحْمَنُ وَقَالَ صَوَابًا
      [al-Naba’ 78:38].
      जो कोई किसी अल्लाह के द्वारा पैदा की गयी किसी भी चीज के आगे खड़े होकर वैसा आदर प्रकट करे ,जिसका हक़ सिर्फ अल्लाह को है ,तो रसूल ने कहा जो भी किसी मनष्य के आगे खड़ा होगा तो उसका स्थान जहन्नम में होगा .
      The one who claims that there is any created being for whom one should stand out of respect have given that created being one of the rights of Allaah.
      Hence the Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) said:
      “Whoever likes men to stand up for him, let him take his place in Hell.”
      "من يحب الرجال على الوقوف له ، فليتبوأ مقعده من النار
      Narrated by al-Tirmidhi (2755);
      classed as saheeh by al-Albaani in Saheeh al-Tirmidhi. That is because this is part of the might and pride that belongs only to Allaah.
      وذلك لأن هذا هو جزء من القوة والعزة التي ينتمي فقط إلى الله تعالى
      See: Tafseer al-Tahreer wa’l-Tanweer by al-Taahir ibn ‘Ashoor (15/51).
      जब खलीफा अल महदी रसूल की मस्जिद में दाखिल हुए तो उनके आदर में सब खड़े हो गए ,सिवाय इमरान इब्न अबी जई के .लोगों ने कहा खड़े हो जाओ यह अमीरुल मोमिनीन हैं ,उन्होंने कहा लोगों को सिर्फ दुनिया के मालिक के आगे खड़ा होना चाहिए .तुम चाहे मेरे बाल पकड कर मुझे खड़ा कर लो .
      The caliph al-Mahdi entered the Mosque of the Messenger of Allaah (peace and blessings of Allaah be upon him) and the people all stood up for him except Imam Ibn Abi Dhi’b. It was said to him: Stand up; this is the Ameer al-Mu’mineen. He said: The people should only stand up for the Lord of the Worlds.
      Al-Mahdi said: Let him be, for all the hairs of my head have stood on end.
      Siyar A’laam al-Nubala’ (7/144).
      The scholars of the Standing Committee were asked: Is it permissible to stand to show respect to any national anthem or flag?
      They replied: فلا يجوز للمسلم أن يقف احتراما لأي النشيد الوطني أو العلم
      सलमानों को यह इजाजत नहीं है कि राष्ट्र ध्वज के आगे खड़े होकर उसका आदर करें और राष्ट्रगान गायें ,चाहे उस समारोह में राष्ट्रपति भी क्यों न हो .
      It is not permissible for the Muslim to stand out of respect for any national anthem or flag, rather this is a reprehensible innovation which was not known at the time of the Messenger of Allaah (peace and blessings of Allaah be upon him) or at the time of the Rightly-Guided Caliphs (may Allaah be pleased with them), and it is contrary to perfect Tawheed and sincere veneration of Allaah alone. It is also a means that leads to shirk and is an imitation of the kuffaar in their reprehensible customs, and following them in their exaggeration about their presidents and in their ceremonies. The Prophet (peace and blessings of Allaah be upon him) forbade imitating them.
      فلا يجوز للمسلم أن يقف احتراما لأي النشيد الوطني أو العلم، بل هو من البدع المنكرة التي لم تكن معروفة في عهد رسول الله صلى الله عليه وعليه وسلم) أو في زمن الخلفاء الراشدين رضي الله عنهم)، وأنها منافية لكمال التوحيد والتبجيل خالص لله وحده. وهي أيضا وسيلة تؤدي إلى الشرك وتشبها بالكفار في عادتهم القبيحة ، ومجاراة لهم في غلوهم نظرهم حول رؤسائهم واحتفالات. وقد نهى النبي صلى الله عليه وس "
      And Allaah is the Source of strength; may Allaah send blessings and peace upon our Prophet Muhammad and his family and companions. End quote.
      Fataawa al-Lajnah al-Daa’imah فتاوى اللجنة الدائمة آل
      (1/235).
      والله أعلم
      And Allaah knows best.
      यही कारण है कि ,मुसलमानमें राष्ट्र भक्ति का आभाव है ,और वे राष्ट्रगान और तिरंगा का आदर नहीं करते .मुसलमानों का रिमोट मुल्लों के हाथों
      में होता है .यह खुराफाती मुल्ले चुपचाप फतवों से उनको भड़काते रहते हैं .लेकिन जब चाहे अपने अधिकारों कि बात करते रहते हैं .और हमारी सरकारें वोट कि खातिर उनके लिए खजाने खोल देती है .

      मंगलवार, 6 नवंबर 2012

      जानिए हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड मे 108 के महत्व को ... कुमार सतीश

      Kumar Satish530971_351578671604473_122949046_n

      हमारे हिन्दू धर्म के किसी भी शुभ कार्य, पूजा , अथवा अध्यात्मिक व्यक्ति के नाम के पूर्व ""श्री श्री 108 "" लगाया जाता है...!
      लेकिन क्या सच में आप जानते हैं कि.... हमारे हिन्दू धर्म तथा ब्रह्माण्ड में 108 अंक का क्या महत्व है....?????
      दरअसल.... वेदान्त में एक ""मात्रकविहीन सार्वभौमिक ध्रुवांक 108 "" का उल्लेख मिलता है.... जिसका अविष्कार हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों (वैज्ञानिकों) ने किया

      था l
      आपको समझाने में सुविधा के लिए मैं मान लेता हूँ कि............ 108 = ॐ (जो पूर्णता का द्योतक है).
      अब आप देखें .........प्रकृति में 108 की विविध अभिव्यंजना किस प्रकार की है :
      1. सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी/सूर्य का व्यास = 108 = 1 ॐ
      150,000,000 km/1,391,000 km = 108 (पृथ्वी और सूर्य के बीच 108 सूर्य सजाये जा सकते हैं)
      2. सूर्य का व्यास/ पृथ्वी का व्यास = 108 = 1 ॐ
      1,391,000 km/12,742 km = 108 = 1 ॐ
      सूर्य के व्यास पर 108 पृथ्वियां सजाई सा सकती हैं .
      3. पृथ्वी और चन्द्र के बीच की दूरी/चन्द्र का व्यास = 108 = 1 ॐ
      384403 km/3474.20 km = 108 = 1 ॐ
      पृथ्वी और चन्द्र के बीच 108 चन्द्रमा आ सकते हैं .
      4. मनुष्य की उम्र 108 वर्षों (1ॐ वर्ष) में पूर्णता प्राप्त करती है .
      क्योंकि... वैदिक ज्योतिष के अनुसार.... मनुष्य को अपने जीवन काल में विभिन्न ग्रहों की 108 वर्षों की अष्टोत्तरी महादशा से गुजरना पड़ता है .
      5. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति 200 ॐ श्वास लेकर एक दिन पूरा करता है .
      1 मिनट में 15 श्वास >> 12 घंटों में 10800 श्वास >> दिनभर में 100 ॐ श्वास, वैसे ही रातभर में 100 ॐ श्वास
      6. एक शांत, स्वस्थ और प्रसन्न वयस्क व्यक्ति एक मुहुर्त में 4 ॐ ह्रदय की धड़कन पूरी करता है .
      1 मिनट में 72 धड़कन >> 6 मिनट में 432 धडकनें >> 1 मुहूर्त में 4 ॐ धडकनें ( 6 मिनट = 1 मुहूर्त)
      7. सभी 9 ग्रह (वैदिक ज्योतिष में परिभाषित) भचक्र एक चक्र पूरा करते समय 12 राशियों से होकर गुजरते हैं और 12 x 9 = 108 = 1 ॐ
      8. सभी 9 ग्रह भचक्र का एक चक्कर पूरा करते समय 27 नक्षत्रों को पार करते हैं... और, प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 27 x 4 = 108 = 1 ॐ
      9. एक सौर दिन 200 ॐ विपल समय में पूरा होता है. (1 विपल = 2.5 सेकेण्ड)
      1 सौर दिन (24 घंटे) = 1 अहोरात्र = 60 घटी = 3600 पल = 21600 विपल = 200 x 108 = 200 ॐ विपल
      @@@@ उसी तरह ..... 108 का आध्यात्मिक अर्थ भी काफी गूढ़ है..... और,
      1 ..... सूचित करता है ब्रह्म की अद्वितीयता/एकत्व/पूर्णता को
      0 ......... सूचित करता है वह शून्य की अवस्था को जो विश्व की अनुपस्थिति में उत्पन्न हुई होती
      8 ......... सूचित करता है उस विश्व की अनंतता को जिसका अविर्भाव उस शून्य में ब्रह्म की अनंत अभिव्यक्तियों से हुआ है .
      अतः ब्रह्म, शून्यता और अनंत विश्व के संयोग को ही 108 द्वारा सूचित किया गया है .
      इस तरह हम कह सकते हैं कि.....जिस प्रकार ब्रह्म की शाब्दिक अभिव्यंजना प्रणव ( अ + उ + म् ) है...... और, नादीय अभिव्यंजना ॐ की ध्वनि है..... ठीक उसी उसी प्रकार ब्रह्म की ""गाणितिक अभिव्यंजना 108 "" है.
      जय महाकाल...!!!
      साभार:राजन सिंह

      सोमवार, 29 अक्टूबर 2012

      डबल करें मेमोरी की स्तोरेज क्षमता

      Nageshwar Singh Baghel
      मेमोरी कार्ड का यूज आजकल अधिकतर गैजेट्स में हो रहा है। चाहे वह मोबाइल हो, टैब हो या फिर एमपी 3 डिवाइस सभी में मेमोरी कार्ड का इस्तेमाल हो रहा है। क्या आप भी अपने 1GB वाले मेमोरी कार्ड की क्षमता 2GB करना चाहते हैं, यदि हां तो इसके लिए आपको कुछ आसान से स्टेप फॉलो करने होंगे। बात करते हैं ऐसे ही कुछ स्टेप की जिनसे आपके मेमोरी कार्ड की क्षमता 1GB से 2GB तक हो सकती है। इन स्‍टेप को फॉलो करने के बाद आपक
      े 1GB के मेमोरी कार्ड में 2GB तक का डाटा सेव किया जा सकता है।
      मेमोरी कार्ड की क्षमता बढ़ाने के लिए आपको सबसे पहले मेमोरी कार्ड को पीसी या फिर लैपटॉप में अटैच करना होगा। अब यदि मेमोरी कार्ड में कोई डाटा सेव है तो उसे अपने कंप्यूटर में सेव कर लें। मेमोरी कार्ड खाली होने पर अपने पीसी में स्‍काइमेडी सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर लें। सॉफ्टवेयर के पीसी में इंस्टॉल होने के बाद यह विंडो में खुद-ब-खुद ओपेन हो जाएगा। अब आपको इसमें फिक्‍स और कैसिंल दो ऑप्‍श्‍ान मिलेंगे।
      सॉफ्टवेयर के पैनल में आपको एक ब्राउज करने का ऑप्‍श्‍ान मिलेगा, इसमें मेमोरी कार्ड को ब्राउज कर दें। इसके बाद फिक्‍स ऑप्‍शन पर क्लिक करें। मेमोरी कार्ड को सलेक्ट करते वक्‍त आपके मेमोरी कार्ड में 955 MB साइज शो करेगा, इसका मतलब साफ है कि आपने 1 GB का कार्ड लगाया हुआ है। फिक्‍सिंग का प्रोसेस पूरा होने के बाद ऐप्लीकेशन में मेमोरी कार्ड को अनप्‍लग करने का ऑप्‍शन आएगा। मेमोरी कार्ड को निकाल कर एक बार फिर से लगा दें। अब यह आपके मेमोरी कार्ड को 2GB का शो करेगा।
      मेमोरी कार्ड की क्षमता 1GB से बढ़ाकर 2GB करने का प्रोसेस तो आपने जान लिया। शायद आपके दिमाग में भी यह आया हो कि आखिर स्‍काइमेडी सॉफ्टवेयर किस तरह काम करता है कि 1GB मेमोरी बढ़ाकर 2GB तक हो जाती है। दरअसल स्‍काइमेडी को मेन फंक्‍शन यह है कि ये डॉटा को कंप्रेस करना का काम करता है। जिससे 2GB तक का मैटर 1GB वाली मेमोरी कार्ड में एडजस्ट हो जाता है।
      नोट ---यह जानकारी मेरे मित्र आकाश बाना जी ने चैट बाक्स में भेजा है ....आप सभी करके देखे क्या यह सत्य है .....

      मेमोरी कार्ड का यूज आजकल अधिकतर गैजेट्स में हो रहा है। चाहे वह मोबाइल हो, टैब हो या फिर एमपी 3 डिवाइस सभी में मेमोरी कार्ड का इस्तेमाल हो रहा है। क्या आप भी अपने 1GB वाले मेमोरी कार्ड की क्षमता 2GB करना चाहते हैं, यदि हां तो इसके लिए आपको कुछ आसान से स्टेप फॉलो करने होंगे। बात करते हैं ऐसे ही कुछ स्टेप की जिनसे आपके मेमोरी कार्ड की क्षमता 1GB से 2GB तक हो सकती है। इन स्‍टेप को फॉलो करने के बाद आपके 1GB के मेमोरी कार्ड में 2GB तक का डाटा सेव किया जा सकता है।

मेमोरी कार्ड की क्षमता बढ़ाने के लिए आपको सबसे पहले मेमोरी कार्ड को पीसी या फिर लैपटॉप में अटैच करना होगा। अब यदि मेमोरी कार्ड में कोई डाटा सेव है तो उसे अपने कंप्यूटर में सेव कर लें। मेमोरी कार्ड खाली होने पर अपने पीसी में स्‍काइमेडी सॉफ्टवेयर डाउनलोड कर लें। सॉफ्टवेयर के पीसी में इंस्टॉल होने के बाद यह विंडो में खुद-ब-खुद ओपेन हो जाएगा। अब आपको इसमें फिक्‍स और कैसिंल दो ऑप्‍श्‍ान मिलेंगे।


सॉफ्टवेयर के पैनल में आपको एक ब्राउज करने का ऑप्‍श्‍ान मिलेगा, इसमें मेमोरी कार्ड को ब्राउज कर दें। इसके बाद फिक्‍स ऑप्‍शन पर क्लिक करें। मेमोरी कार्ड को सलेक्ट करते वक्‍त आपके मेमोरी कार्ड में 955 MB साइज शो करेगा, इसका मतलब साफ है कि आपने 1 GB का कार्ड लगाया हुआ है। फिक्‍सिंग का प्रोसेस पूरा होने के बाद ऐप्लीकेशन में मेमोरी कार्ड को अनप्‍लग करने का ऑप्‍शन आएगा। मेमोरी कार्ड को निकाल कर एक बार फिर से लगा दें। अब यह आपके मेमोरी कार्ड को 2GB का शो करेगा।

मेमोरी कार्ड की क्षमता 1GB से बढ़ाकर 2GB करने का प्रोसेस तो आपने जान लिया। शायद आपके दिमाग में भी यह आया हो कि आखिर स्‍काइमेडी सॉफ्टवेयर किस तरह काम करता है कि 1GB मेमोरी बढ़ाकर 2GB तक हो जाती है। दरअसल स्‍काइमेडी को मेन फंक्‍शन यह है कि ये डॉटा को कंप्रेस करना का काम करता है। जिससे 2GB तक का मैटर 1GB वाली मेमोरी कार्ड में एडजस्ट हो जाता है।

नोट ---यह जानकारी मेरे मित्र आकाश बाना जी ने चैट बाक्स में भेजा है ....आप सभी करके  देखे क्या यह सत्य है .....

      रविवार, 28 अक्टूबर 2012

      लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है

      गलतफहमी----> लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि...... हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं...!
      लेकिन ऐसा है नहीं..... और, सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है...!
      दरअसल.... हमारे वेदों में उल्लेख है .... 33""कोटि"" देवी-देवता..!
      अब ""कोटि"" का अर्थ""प्रकार"" भी होता है.. और ............ ""करोड़"" भी...!
      तो... मूर्खों ने उसे हिंदी में.... करोड़ पढना शुरू कर दिया...... जबकि वेदों का तात्पर्य ..... 33 कोटि... अर्थात ..... 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है...(उच्च कोटि.. निम्न कोटि..... इत्यादि शब्दतो आपने सुना ही होगा.... जिसका अर्थ भीकरोड़ ना होकर..प्रकार होता है)
      ये एक ऐसी भूल है.... जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया....!
      इसे आप इस निम्नलिखित उदहारण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं....!
      --------------- ------
      अगर कोई कहता है कि......बच्चों को""कमरे में बंद रखा"" गया है...!
      और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि...... बच्चों को कमरे में "" बंदर खा गया"" है.....!! (बंद रखा= बंदर खा)
      --------------- ------
      कुछ ऐसी ही भूल ..... अनुवादकों से हुई ..... अथवा... दुश्मनों द्वारा जानबूझ कर दिया गया.... ताकि, इसे HIGHLIGHT किया जा सके..!
      सिर्फ इतना ही नहीं....हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफउल्लेख है कि....""निरंजनो निराकारो..एको देवो महेश्वरः""..... ........ अर्थात.... इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं... जो निरंजन...निराका र महादेव हैं...!
      साथ ही... यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि..... हिन्दू सनातन धर्म..... मानव की उत्पत्तिके साथ ही बना है..... और प्राकृतिक है...... इसीलिए ... हमारे धर्ममें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है...... और, प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है..... ताकि लोगप्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें....!
      जैसे कि....
      @@ गंगा को देवी माना जाता है...... क्योंकि ... गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं..!
      @@ गाय को माता कहा जाता है ... क्योंकि .... गाय का दूध अमृततुल्य ... और, उनका गोबर... एवंगौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की... औषधीय गुण पाए जाते हैं...!
      @@ तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि.... तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं...!
      @@ इसी तरह ... वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादाऑक्सीजन देते हैं.... और, थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं...!
      यही कारण है कि.... हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में ..... प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है.....क्योंकि, प्रकृति से ही मनुष्य जाति है.... ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है..!
      अतः.... प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है.... !
      यही कारण है कि........ हमारे धर्म ग्रंथों में.... सूर्य, चन्द्र...वरुण.... वायु.. अग्नि को भी देवता माना गया है.... और, इसी प्रकार..... कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं...!
      इसीलिए, आपलोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें...... क्योंकि... ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं... जो निरंजन...निराका र महादेव हैं...! —
      .अतः कुल 33 प्रकार के देवता हैं......
      12 आदित्य है ----->धाता,मित्, अर्यमा,शक्र,वरुण,अंश,भग , विवस्वान,पूषा,सविता,त्वष्टा,एवं विष्णु..!
      8 वसु हैं......धर,ध्रुव,सोम,अह,अनिल,अनल,प्रत्युष,एवं.,प्रभाष
      11 रूद्र हैं...हर ,बहुरूप.त्र्यम्बक.अपराजिता.वृषाकपि .शम्भू.कपर्दी..रेवत ..म्रग्व्यध.शर्व..तथा.कपाली.
      2 अश्विनी कुमार हैं.....
      कुल................12 +8 +11 +2 =33
      धन्यवाद !
      यहाँ जरूर click करे !
      http://www.youtube.com/watch?v=5XtcFiZwENY

      शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012

      गृह मंत्रालय की हेल्पलाइन

      Kamal Sharma

      ---------------------------
      रिंग रिंग..........नमस्कार,
      गृह मंत्रालय के बम धमाका हेल्प लाइन में आपका स्वागत है.
      अभी ताजे ताजे हुए धमाकों की जानकारी के लिए 1 दबाएँ.
      धमाकों पर गृह मंत्री के प्री रेकॉर्डेड सदाबहार बयानों के लिए 2 दबाएँ.
      धमाकों पर प्रधान मंत्री की निंदा और कड़े कदम उठाने के बयानों के लिए 3 दबाएँ.
      धमाकों पर प्रधानमंत्री के और ज्यादा कड़े कदमों के बयान के लिए 4 दबाएँ.
      किसी ने धमाकों की जिम्मेदारी ली या नहीं ये जानने के लिए 5 दबाएँ.
      धमाकों पर दिग्विजय सिंह के RSS का हाथ है वाले बयान के लिए 6 दबाएँ.
      गलती से अगर कोइ आतंकी पकड़ा गया है और उसे कोंग्रेस सरकारी दामाद बनाने जा रही है तो उसका नाम जानने के लिए 7 दबाएँ.
      आतंकी का कोइ धर्म नहीं होता जैसे बयानों के लिए 8 दबाएँ.
      अगर आपका कोइ अपना इन धमाकों में मारा गया है तो गांधी जी की रामधुन सुनाने के लिए 9 दबाएँ. मेनू फिर से सुनने के लिए 0 दबाएँ.
      और अगर आप खुद धमाके का शिकार हुए हैं, और अभी तक जिन्दा हैं
      तो अपना गला दबाएँ.... कॉल करने के लिए धन्यवाद,
      भारत सरकार आपको शुभकामनाएँ देती है.

      बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

      प्रश्न प्रतिप्रश्न ... पवन अवस्थी

      मैडम सोनिया द्वारा ...आज गुजरात में दिए गए भाषण के सन्दर्भ में कुछ प्रश्न .???
      मनमोहन ने देश की जनता सहित मुम्बई की जनता के साथ की थी बादाखिलाफी ....
      मुम्बई में मनमोहन सिंह ने बोला था दो बार झूठ .....

      आज गुजरात के राजकोट में मैडम सोनिया ने कई आरोप लगाए तो उनके जबाब के साथ कुछ सबाल भी उठते है जिनका जबाब उनको भी देना चाहिए ...
      सोनिया मैडम का आरोप था की नर -मादा का पानी सौराष्ट्र तक नहीं पहुंचा .. मेरा सुझाब है की इस विषय में एक बार आप अपने भाषण लिखने बाली मंडली से जानकारी करे ...क्योकि नर -मादा नाम की कोई परियोजना गुजरात में नहीं है ..
      आरोप नंबर ..2 गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति मोदी सरकार ने नहीं की .. इस पर मेरा सुझाब है की मैडम आप को इस विषय पर पूरी जानकारी नहीं है ..लोकायुक्त की नियुक्ति राज्य सरकार नेता विपक्ष की सहमति से करती है और आपकी पार्टी के गुजरात विधान सभा के नेता ने इस विषय पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है ....
      गुजरात में हक मांगने पर गोली मिलती है ये कहना है आपका मैडम सोनिया ... इस बारे में कहना ये है की आपका ये बयान गन्दी राजनीति से प्रेरित है .. सच ये है की महाराष्ट्र में आपकी पार्टी की सरकार ने कुछ महीने पहले सड़को पर किसानो को दौड़ा दौड़ा कर गोली मारी थी .. जिसके सबूत मीडिया के पास है ....
      रही बात सब्सिडी बाले गैस सिलेंडर की तो मैडम सोनिया ये कौन सी बात हुई की आपकी सरकार दिल्ली में लाखो करोड़ के घोटाले कर देश का भट्टा बैठाए और घाटा कम करने के लिये गैस आदि के दाम बड़ा दे और हर्जाना भुगते राज्य सरकार .. क्या आपके मूल देश इटली में भी ऐसे ही सरकारे चलती है ..??
      अब कुछ सबाल मेरे ..............सबूतों के साथ जिसके मीडिया लिंक नीचे दिए है ...
      मैडम सोनिया आपके द्वारा नियुक्त मनमोहन ने सन 16-10-2004 ब 13-04-2009 को दो बार मुंबई के लोगो से ऑन द रिकार्ड बादा किया था की मनमोहन सिंह ब कांग्रेस पार्टी मुम्बई को संघाई जैसा विश्व स्तरीय शहर बना देगी . साथ ही मनमोहन सिंह ने देश की जनता से एक बार नहीं बल्कि कई बार बादा किया था की 100 दिन में महंगाई दूर कर दी जायेगी .. पर उस बादे से भी आपकी पार्टी ब मनमोहन सिंह पलट गए .. इस पर आपका क्या कहना है .. मैडम आप तो दुनिया की शीर्स पैसे बाली महिलाओं में शामिल हो गयी .. पर हम जैसी गरीब जनता का दिबाला निकल चुका है आपकी सरकार की कमरतोड़ महंगाई के कारण .. बड़ी मुश्किल से दो जून की रोटी मिल पा रही है उसके बाबजूद आपकी सरकार के लाखो करोड़ के घोटालों की खबरों खून जलाने ब टेंशन देने का काम कर रही है ,,, मुद्दा ये की बड़ी मुश्किल से शरीर में जो खून बन पाता है बो भो घोटालों और भ्रस्टाचार की खबरे सुन कर जल जाता है ..!!!
      *** पवन अवस्थी ***

      सोमवार, 17 सितंबर 2012

      सच तो आखिर सच है न ... गिरिजेश भोजपुरिया

      नहीं, यह किसी मन्दिर में लिया गया चित्र नहीं है। यह दिल्ली के कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद से लिया गया है जिसे बनाने के लिये 27 हिन्दू और जैन मन्दिरों को तोड़ कर उनके मलबे का उपयोग किया गया। यहीं विदिशा की वेधशाला से उखाड़ कर लाया गया प्रसिद्ध मेहरौली लौह स्तम्भ स्थापित है। इसी के प्रांगण में कथित कुतुब मिनार है जो वस्तुत: खगोलीय प्रेक्षणों के लिये प्रयुक्त विष्णु स्तम्भ थी। फोटो 1872 में लिया गया।

       

       

       

       

       

      देवस्थान मस्जिदें -1
      जामा मस्जिद, भरूच (भृगुकच्छ), 1835

      जमा मस्जिद करणावती देवस्थान मजिदें... ढाका

      ख्वाजा जहां बीजापुर देवस्थान मस्जिदें - 4
      ख्वाजाजहाँ, बीजापुर, 1885

      करीमुद्दीन बीजापुर

      देवस्थान मस्जिदें - 5
      करीमुद्दीन, बीजापुर, 1885

      देवस्थान मस्जिदें - 6
      अढ़ाई दिन का झोपड़ा, अजमेर, 1870।
      इस मन्दिर की बनावट और सुन्दरता के प्रभाव से मुहम्मद ग़ोरी इतना आतंकित हुआ कि तुरंत तोड़ कर मस्जिद में बदलने का हुक्म दिया ताकि वह बुतपरस्ती की एक अजीम निशानी मिटा सके और आगे कूच से पहले नमाज अदा कर सके। यह सम्भवत: पहला उदाहरण है जब इस काम के लिये समय तक तय कर दिया गया - जिस दिन पहुँचा उसका आधा दिन और आगे के दो दिन। ढाई दिनों में मन्दिर ध्वस

      ्त कर जैसे तैसे उसे मस्जिद में बदल दिया गया। ग़ोरी नमाज के बाद ही आगे बढ़ा। उसके साथ था तथाकथित उदार इस्लाम के सूफी रूप का एक ज़िहादी - मुइनुद्दीन चिश्ती जिसने विरोध में जुबान खोलना तो दूर, इस काम को समर्थन दिया और जिसकी अजमेर दरगाह पर जाने कितने हिन्दू मथ्था टेक चुके, टेक रहे हैं और टेकते रहेंगे।
      हमेशा याद रखिये कि जो कब्र में लेटा हुआ है उसे क़यामत से पहले खुद खुदा तक मुक्ति नहीं दे सकता, वह दूसरों को क्या मुक्ति देगा? वह दूसरों की मुरादें क्या पूरी करेगा? :-

      अढ़ाई दिन का झोपड़ा अजमेर

      395234_4558749454980_243035463_nतथाकथित अंतिम मजहब का एकमात्र निराकार ईश्वर वास्तव में घर बारी था। अन्तिम दूत के पहले अरब समाज में उसकी तीन पुत्रियाँ पूजी जाती थीं - मनात या मना:, अल उज़्ज़ और अल लात।
      दूत के आदेश पर जनवरी 630 में हमला कर मना: का मन्दिर तोड़ दिया गया, उसी वर्ष अक्टूबर में अल लात का और उसी साल के पवित्र महीने में दूत के साथियों ने अल उज़्ज़ का मन्दिर मिसमार कर दिया।
      ______________________
      यह तथ्य इसलिये शेयर किया गया है कि आप की जानकारी में रहे। बेकार की बहसों और ग़ाली गलौज से कुछ हासिल नहीं होता। अपना कोश और अध्ययन दुरुस्त कीजिये ताकि सभ्यता विरोधियों को समझ सकें और प्रतिरोध कर सकें।

      अली भवानी खानदेश 1885

      देवस्थान मस्जिदें - 7
      अली भवानी, खानदेश, 1885
      इस मन्दिर में वह शिलालेख भी है जिसमें ज्योतिर्विद भास्कराचार्य के सिद्धांत शिरोमणि के अध्ययन हेतु सोमदेव को दिये गये भूदान का उल्लेख है।

      सोमनाथ प्रभास पाटण

      देवस्थान मस्जिदें - 8
      सोमनाथ, प्रभास पाटण, 1900 [अब मन्दिर पुनर्निर्मित]
      इसे इस्लामी आक्रमणकारियों ने कुल सात बार तोड़ा और यह पुन: पुन: बनता रहा। भारतीय इतिहास में ऐसी फिरकापरस्ती का एक और उदाहरण है पुरी का जगन्नाथ मन्दिर जिसे कुल 18 बार आक्रमण झेलने पड़े!

      अटाला देवी जौनपुर देवस्थान मस्जिदें - 9
      अटाला देवी, जौनपुर

      कुतुब मीनार क़ुतुब मीनार का सच ........
      1191A.D.में मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया ,तराइन के मैदान में पृथ्वी राज चौहान के साथ युद्ध में गौरी बुरी तरह पराजित हुआ, 1192 में गौरी ने दुबारा आक्रमण में पृथ्वीराज को हरा दिया ,कुतुबुद्दीन, गौरी का सेनापति था 1206 में गौरी ने कुतुबुद्दीन को अपना नायब नियुक्त किया और जब 1206 A.D,में मोहम्मद गौरी की मृत्यु हुई tab वह गद्दी पर बैठा ,अनेक विरोधियों को समाप्त करने में उसे लाहौर में ही दो वर्ष लग गए I
      1210 A.D. लाहौर में पोलो खेलते हुए घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गयी अब इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया है कि कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार ,कुवैतुल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद भी बनवाई I
      अब कुछ प्रश्न .......
      अब कुतुबुद्दीन ने क़ुतुब मीनार बनाई, लेकिन कब ?
      क्या कुतुबुद्दीन ने अपने राज्य काल 1206 से 1210 मीनार का निर्माण करा सकता था ? जबकि पहले के दो वर्ष उसने लाहौर में विरोधियों को समाप्त करने में बिताये और 1210 में भी मरने
      के पहले भी वह लाहौर में था ?......शायद नहीं I कुछ ने लिखा कि इसे 1193AD में बनाना शुरू किया
      यह भी कि कुतुबुद्दीन ने सिर्फ एक ही मंजिल बनायीं उसके ऊपर तीन मंजिलें उसके परवर्ती बादशाह इल्तुतमिश ने बनाई और उसके ऊपर कि शेष मंजिलें बाद में बनी I यदि 1193 में कुतुबुद्दीन ने मीनार बनवाना शुरू किया होता तो उसका नाम बादशाह गौरी के नाम पर "गौरी मीनार "या ऐसा ही कुछ होता न कि सेनापति कुतुबुद्दीन के नाम पर क़ुतुब मीनार I उसने लिखवाया कि उस परिसर में बने 27 मंदिरों को गिरा कर उनके मलबे से मीनार बनवाई ,अब क्या किसी भवन के मलबे से कोई क़ुतुब मीनार जैसा उत्कृष्ट कलापूर्ण भवन बनाया जा
      सकता है जिसका हर पत्थर स्थानानुसार अलग अलग नाप का पूर्व निर्धारित होता है ? कुछ लोगो ने लिखा कि नमाज़ समय अजान देने के लिए यह मीनार बनी पर क्या उतनी ऊंचाई से किसी कि आवाज़ निचे तक आ भी सकती है ?
      उपरोक्त सभी बातें झूठ का पुलिंदा लगती है इनमें कुछ भी तर्क की कसौटी पर सच्चा नहीं lagta सच तो यह है की जिस स्थान में क़ुतुब परिसर है वह मेहरौली कहा जाता है, मेहरौली वराहमिहिर के नाम पर बसाया गया था जो सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक , और खगोलशास्त्री थे उन्होंने इस परिसर में मीनार यानि स्तम्भ के चारों ओर नक्षत्रों के अध्ययन के लिए २७ कलापूर्ण परिपथों का निर्माण करवाया था I
      इन परिपथों के स्तंभों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी उकेरी गयीं थीं जो नष्ट किये जाने के बाद भी कहीं कहींदिख जाती हैं I
      कुछ संस्कृत भाषा के अंश दीवारों और बीथिकाओं के स्तंभों पर उकेरे हुए मिल जायेंगे जो मिटाए गए होने के बावजूद पढ़े जा सकते हैं I मीनार , चारों ओर के निर्माण का ही भाग लगता है ,अलग से बनवाया हुआ नहीं लगता, इसमे मूल रूप में सात मंजिलें थीं सातवीं मंजिल पर " ब्रम्हा जी की हाथ में वेद लिए हुए "मूर्ति थी जो तोड़ डाली गयीं थी ,छठी मंजिल पर विष्णु जी की मूर्ति के साथ कुछ निर्माण थे we भी हटा दिए गए होंगे ,अब केवल पाँच मंजिलें ही शेष है इसका नाम विष्णु ध्वज /विष्णु स्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ प्रचलन में थे ,
      इन सब का सबसे बड़ा प्रमाण उसी परिसर में खड़ा लौह स्तम्भ है जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही भाषा का लेख जिसे झुठलाया नहीं जा सकता ,लिखा है की यह स्तम्भ जिसे गरुड़ ध्वज कहा गया है
      ,सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य (राज्य काल 380-414 ईसवीं) द्वारा स्थापित किया गया था और यह लौह स्तम्भ आज भी विज्ञानं के लिए आश्चर्य की बात है कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा .उसी महानसम्राट के दरबार में महान गणितज्ञ आर्य भट्ट,खगोल शास्त्री एवं भवन निर्माण
      विशेषज्ञ वराह मिहिर ,वैद्य राज ब्रम्हगुप्त आदि हुए
      ऐसे राजा के राज्य काल को जिसमे लौह स्तम्भ स्थापित हुआ तो क्या जंगल में अकेला स्तम्भ बना होगा निश्चय ही आसपास अन्य निर्माण हुए होंगे जिसमे एक भगवन विष्णु का मंदिर था उसी मंदिर के पार्श्व में विशालस्तम्भ वि ष्णुध्वज जिसमे सत्ताईस झरोखे जो सत्ताईस नक्षत्रो व खगोलीय अध्ययन के लिए बनाए गए निश्चय ही वराह मिहिर के निर्देशन में बनाये गए
      इस प्रकार कुतब मीनार के निर्माण का श्रेय सम्राट चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य के राज्य कल में खगोल शाष्त्री वराहमिहिर को जाता है I
      कुतुबुद्दीन ने सिर्फ इतना किया कि भगवान विष्णु के मंदिर को विध्वंस किया उसे कुवातुल इस्लाम मस्जिद कह दिया ,विष्णु ध्वज (स्तम्भ ) के हिन्दू संकेतों को छुपाकर उन पर
      अरबी के शब्द लिखा दिए और क़ुतुब मीनार बन गया...

       

      ......गिरिजेश भोजपुरिया

      रविवार, 16 सितंबर 2012

      पूत के पाँव पालने मे

      पवन अवस्थी

      उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के छ महीने हुए पूरे .......!!!
      जादा नहीं केबल 2437 हत्याए हुई पिछले छ महीने में ..
      1100 केस यौन ( सेक्स ) अत्याचार के
      सिर्फ 450 डकैती की घटनाये ..
      रायवरेली , मथुरा के कोंसी कलां, गाजियाबाद के कायदे के दंगो की कुछ घटनाये ...
      वाकी घटनाये जो मीडिया की नजर में आने से बच गयी उनकी बात छोडिये ... इस वीच मुख्यमंत्री के चाचा जी द्वारा नील गाय की हत्या की सलाह और उसके कबाब के टेस्टी होने की बात सहित प्रदेश के नौकरशाहों को डकैती नहीं बल्कि चोरी करने जैसा भ्रस्टाचार करने की सलाह ,आदि विषय का संज्ञान अगर आप लेना चाहते है तो नीचे दिए मीडिया लिंक पर एक नजर जरुर डाले .!
      ... अब उत्तर प्रदेश की जनता अपनी सरकार के छह महीने पूरे होने के जश्न मनाने की तैयारी में व्यस्त है या ये सरकार मुंगरी लाल के हसीन सपनों में डूबी है ये शोध का विषय अब नहीं रहा ........हां उत्तर प्रदेश के पत्रकारों और मीडिया सरकार के इस जश्न को किस रूप में लेगा कुछ पता नहीं .. बैसे जादा दिन नहीं हुए जब बर्मा के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुई इस्लामी जेहाद की हिंसा के दौरान पत्रकारों को जमीन पर गिरा-गिरा कर , लिटा लिटा कर और दौड़ा -दौड़ा कर जो इस्लामी शांति और भाईचारे का पैगाम दिया गया था उसको अगर पत्रकारों ने अपने दिमाग में रक्खा होगा तथा सत्ता की भ्रष्ट रेवड़ियो में अपना ईमान नहीं वेचा होगा तो जरुर उत्तर प्रदेश सहित देश की जनता को इस जश्न की हकीकत दिखाते समाचार देखने को मिलेगे ...!!!

      *** पवन अवस्थी ****
      http://ibnlive.in.com/news/2437-murders-in-6-months-akhilesh-admits-crisis/291901-37.html
      http://navbharattimes.indiatimes.com/six-killed-during-protest-against-desecration-of-holy-book-in-ghaziabad/articleshow/16415709.cms
      http://ibnlive.in.com/news/work-hard-steal-a-little-up-minister-to-bureaucrats/280785-37-64.html
      http://www.amarujala.com/national/nat-asking-for-laptop-to-akhilesh-two-student-arrested-by-stf-30645.html
      http://www.bhaskar.com/article/UP-OTH-mayawati-statue-manhandled-3574609-NOR.html?HT1
      http://www.bhaskar.com/article/UP-OTH-mulayam-singhs-concern-riots-in-myanmar-3594659-NOR.html

      शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

      संस्कृत ??? क्या होती है संस्कृत !

      Vijay krishna mishra
      30-03-2012  -  सार्वजनिक

      संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य -----
      1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा। संदर्भ: -  फोर्ब्स पत्रिका 1987.
      2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया
      साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है) संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी.
      3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति... स्वस्थ और बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद).
      4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी.
      नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं.
      असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं.
      दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।
      5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है। संदर्भ: - यूएनओ
      6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।
      7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.
      8. संस्कृत भाषा वर्तमान में "उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी" तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है।
      (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज "सरल किर्लियन फोटोग्राफी" भी नहीं है )
      9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है ).
      10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है

      शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

      नरेन्द्र मोदी विश्व पटल पर लाइव !!


      दिनांक 31-08-12 को नरेन्द्र मोदी ने इन्टरनेट के माध्यम से गूगल प्लस के हैंग आउट पर जिस तरह से देश विदेश केलोगों को जवाब दिया वो अभूतपूर्व पहल है ... नयी सोच के साथ नयी पहल 

      दशरथ मांझी के सपने कब पूरे होंगे...Brajesh Asopa

      Brajesh Asopa580096_406371659426590_1169731783_n

      पहाड़ का सीना चीर कर बीस फुट चौड़ा और आठ सौ साठ फुट लंबा रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी के परिवार एवं उनके गांव गहलौर की तस्वीर सरकार के लाख आश्वासनों-दावों के बावजूद आज भी वैसी है, जैसी तब थी, जब माउंटेन मै

      न ने अंतिम सांस ली.
      महादलितों की हमदर्द इस सरकार में कुछ नहीं बदला. न तो गांव की तस्वीर और न ही दशरथ मांझी के परिवार की क़िस्मत. सरकारी आश्वासन, घोषणा और वादे सब कुछ इस महादलित बस्ती के लिए खोखले साबित हुए हैं. माउंटेन मैन दशरथ मांझी के विकलांग पुत्र भगीरथ मांझी एवं विकलांग पुत्रवधू बसंती देवी आम महादलित परिवारों की तरह का़फी कठिनाई में छोटे से परिवार के साथ किसी तरह जीवनयापन के लिए मजबूर हैं. इस गांव में आने पर नहीं लगता है कि ह वही गांव है, जहां ’ज़दूर मंगरू मांझी एवं पतिया देवी की संतान दशरथ मांझी ने पहाड़ का सीना चीरकर इतिहास रच दिया.
      दशरथ मांझी का सपना था कि जिस पहाड़ी को तोड़कर उन्होंने वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी अस्सी किलोमीटर से घटाकर चौदह किलोमीटर कर दी, उस रास्ते का सरकार पक्कीकरण कर दे.
      बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित अन्य दलित और महादलित बस्तियों की तरह है, गया ज़िले के मोहड़ा प्रखंड के गहलौर गांव का महादलित टोला दशरथ नगर. सुविधाओं के नाम पर दशरथ मांझी के निधन के बाद हां एक चापाकल लगा और एक छोटे से सामुदायिक भवन का निर्माण शुरू किया गया, जिसमें सामुदायिक भवन आज भी अधूरा पड़ा है. सरकारीकर्मियों की लूटखसोट और लापरवाही का नमूना है यह गांव. नरेगा में गड़बड़ी, बीपीएल सूची अनाज वितरण में अनियमितता, प्राथमिक विद्यालय में सप्ताह में सिर्फ दो-तीन दिन ही शिक्षकों का आना, आंगनबाड़ी केंद्र का न होना आदि शिकायतें पूर्व की तरह ही विद्यमान हैं.
      इसी माहौल में जी रहे हैं दशरथ मांझी के विकलांग पुत्र एवं पुत्रवधू अपनी एकमात्र संतान लक्ष्मी कुमारी के साथ. आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली लक्ष्मी ही उनके जीवन का एकमात्र सहारा है. वह मेहनत-मज़दूरी कर कमाती है, तो उसके विकलांग मां-बाप को रोटी नसीब होती है. सरकारी योजनाओं के अनुसार भगीरथ मांझी को दशरथ मांझी के जीवित रहने के समय से ही विकलांग होने के कारण सामाजिक सुरक्षा पेंशन मिल रही है, लेकिन उनकी विकलांग पत्नी बसंती देवी को तमाम प्रयासों के बावजूद आज तक पेंशन नहीं मिल सकी. किसी तरह इंदिरा आवास मिला, जो उनके रहने का सहारा है. दशरथ मांझी के घर के बगल में स्थित प्राथमिक विद्यालय में भगीरथ मांझी एवं उनकी पत्नी बच्चों के लिए खिचड़ी बनाने का काम कर लेते हैं, जिससे प्रतिदिन दोनों को पचास रुपये मिल जाते हैं. बसंती देवी बताती हैं कि सप्ताह में तीन दिन ही मास्टर जी आते हैं, जिसके कारण तीन दिन ही खाना बन पाता है. भगीरथ मांझी बताते हैं कि सभी सरकारी घोषणाएं हवा-हवाई हो गईं. विकलांग होने के कारण वे लोग बहुत अधिक दौड़धूप नहीं कर पाते हैं. जब कभी भी सरकारी अधिकारियों से मुलाक़ात होती है, तो वह बाबा दशरथ मांझी के अधूरे सपने को पूरा करने के सरकार के वादे के बारे में पूछते ज़रूर हैं, लेकिन उन्हें सही जवाब नहीं मिल पाता. वैसे भी सुदूर पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण कभीकभार ही सरकारी कर्मचारियों का वहां आना-जाना होता है. नतीजतन, इस गांव के खुफिया और जन वितरण प्रणाली दुकानदार मनमानी कर महादलित परिवारों के इन ग़रीबों का शोषण करने से नहीं चूकते हैं. इसी गांव में रहता है दशरथ मांझी की विधवा पुत्री लौंगी देवी का परिवार. दशरथ मांझी के घरवालों के मतदाता पहचान पत्र आज तक नहीं बन पाए हैं. जबकि प्राथमिक विद्यालय की शिक्षा समिति की सचिव बसंती देवी ही हैं. वह बताती हैं कि इस विद्यालय में डेढ़ सौ बच्चों को पढ़ाने वाले एकमात्र शिक्षक स्थानीय गहलौर के मुरली मनोहर पांडेय हैं. उन्हें 2006 से अब तक शिक्षा समिति के खाते से दो लाख से अधिक रुपये निकालकर दे चुकी हूं, लेकिन आज तक विद्यालय में विकास का कोई काम नहीं हुआ और न ही शिक्षक ने कोई हिसाब-किताब शिक्षा समिति को दिया है. वह बताती हैं कि दशरथ मांझी की पुत्री लौंगी देवी को अब तक इंदिरा आवास का दस हज़ार रुपया नहीं मिला है. इस गांव के अन्य महादलित परिवार बताते हैं कि जन वितरण प्रणाली का दुकानदार गहलौर गांव के एक संपन्न परिवार के दरवाजे पर दो-तीन महीने में एक महीने का अनाज बांटने आता है और तीन-चार महीने के कूपन ले लेता है. कुल मिलाकर दशरथ मांझी के परिवार और उनके महादलित टोले के लोग आज भी बदहाल हैं और का़फी मशक़्क़त से जीवन जी रहे हैं.
      अब बात दशरथ मांझी के सपनों की. उनका सपना था कि जिस पहाड़ी को तोड़कर उन्होंने वजीरगंज और अतरी प्रखंड की दूरी अस्सी किलोमीटर से घटाकर चौदह किलोमीटर कर दी, उस रास्ते का सरकार पक्कीकरण कर दे. गांव में चिकित्सा सुविधा के लिए अस्पताल और एक अच्छे विद्यालय की व्यवस्था हो. साथ ही आरोपुर गांव में यातायात की सुविधा के लिए मुंगरा नदी पर पुल बनाया जाए. अपने इन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए दशरथ मांझी अनेक जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते हुए मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के हां पहुंचे थे, जहां मुख्‍यमंत्री ने अपनी कुर्सी पर बैठाकर इस महान पुरुष को सम्मान दिया था. आज दशरथ मांझी को ग़ुजरे ढाई वर्ष से अधिक हो गए, पर अभी तक कोई मुक़म्मल कार्य नहीं हुआ. अभी गहलौर घाटी से कुछ दूरी पर रइदी मांझी, सुकर दास, विश्वंभर मांझी द्वारा दी गई भूमि पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के निर्यण के लिए काम शुरू किया गया है, लेकिन घाटी की पहाड़ी पर सड़क निर्माण के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है. गांव के एकमात्र प्राथमिक विद्यालय की स्थिति का़फी खराब है. डेढ़ सौ बच्चों पर केवल एक शिक्षामित्र है. इतना ज़रूर हुआ है कि दशरथ मांझी द्वारा पहाड़ तोड़कर बनाए गए रास्ते के प्रवेश स्थल पर उनके स्मारक का काम पूरा हो चुका है. गहलौर होकर अतरी की ओर जाने वाली मुख्य सड़क में काम मंथर गति से हो रहा है. मुंगरा नदी पर पुल बनाने का काम अब तक शुरू नहीं हुआ है. इस प्रकार दशरथ मांझी के सपनों का गहलौर आज भी उपेक्षित और बदहाल है. अब दशरथ मांझी की संवेदनशीलता का भी उदाहरण देखिए, जब भारतीय स्टेट बैंक की वजीरगंज शाखा ने दशरथ मांझी को 2005 में सम्मानित करते हुए उपहार स्वरूप एक कंप्यूटर भेंट किया, तब दशरथ मांझी ने यह कहकर कंप्यूटर वापस कर दिया कि मैं इसका क्या करूंगा? इसके बदले हमारे गांव में रिंग बोरिंग करवाकर सार्वजनिक चापाकल लगवा दीजिए, जिससे लोगों और जानवरों को पेजल की सुविधा मिल सके. कंप्यूटर आज भी बैंक की शोभा बढ़ा रहा है, लेकिन बैंक ने चापाकल लगाना उचित नहीं समझा. दशरथ मांझी ने मज़दूरी करके परिवार की जीविका चलाते हुए जिस बिहारी आत्मसम्मान, कर्मठता, सहजता, विनम‘ता और गरिमा का परिचय दिया, वह किसी भी व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है. रेल पटरी के सहारे गया से पैदल दिल्ली यात्रा कर जगजीवन राम और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने का अद्भुत कार्य भी दशरथ मांझी ने किया था. मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके निधन के बाद राजकीय सम्मान देकर एक मिसाल क़ायम तो की, लेकिन बिहार की तस्वीर बदलने का दावा करने वाले मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार दशरथ मांझी के गांव गहलौर की तस्वीर बदलने में अभी तक कामयाब नहीं हो पाए.

      सोमवार, 27 अगस्त 2012

      कांडा का काण्ड ... सरकार का महाकाण्ड


      भारतीय आकाश कितना सुरक्षित....क्या आतंकी भारतीय आकाश में घूमते रहते हैं और आतंक फैला कर गायब हो जाते हैं?

      मीडिया अपने बाप कांडा के विधवा विलाप में इस कदर डूबी है की इसे और कुछ सूझ ही नहीं रहा है....वैसे इसी मीडिया ने एक खबर उड़ाई थी की अपने पुलिस से छिपने के दौरान कांडा किसी के हेलीकाप्टर से भागता रहा है और दिल्ली पुलिस उस हेलीकाप्टर वाले को पकड़ने की कवायद में जुटी है....पर एक दिन के बाद उस खबर को नहीं दिखाया गया

      मैं सोच रहा था की आखिर इतनी ख़बरें मीडिया दिखा रही है लेकिन इस खबर को फिर क्यूँ नहीं दिखाया जा रहा है? क्या दिल्ली पुलिस ने हेलीकाप्टर का मसला त्याग दिया है?

      पर तभी मेरे दिमाग की बिजली जली और दिमाग में एक जानकारी कौंधी की भाई उड़यन विभाग तो केंद्र सरकार के पास रहता है| अतः अगर कोई हेलीकाप्टर तो क्या किसी भी छोटे उड़यन वास्तु का प्रयोग करे तो तुरंत पता चल जायेगा....पर अगर यहाँ कांडा के हेलीकाप्टर प्रयोग का किसी को पता नहीं चला तो सीधा मतलब है की केंद्र सरकार सीधे तौर पर अपने गिरते हुए किले को बचने के लिए कांडा को निर्बाध रूप से उड़न की अनुमति दे दी लेकिन मीडिया ने एक बार उठा दिया इस बात को| अब अगर सोयी हुई जनता इस बात को पकड़ लेती तो बात बहुत बिगड़ जाती|

      अब सवाल है की ऐसा क्या बात बिगड़ जाता?

      अरे भाई जब एक हत्या और बलात्कार का फरार आरोपी खुलेआम भारत के आकाश में उड़ सकता है और देश की पुलिस को पता न चले तो इसका मतलब है की देश के भीतर ऐसे ही पता नहीं कितने देश विरोधी उड़ाने होती हों जिनकी जानकारी हमें होती ही नहीं है| और देश में उन देश विरोधी उड़ानों के जरिये ही आतंक फैलाया जाता हो| क्यूंकि विगत में हम पुरुलिया में विमान से अत्याधुनिक हथियार गिराए जाने की घटना को देख चुके हैं और उस घटना के मुख्य आरोपी को कांग्रेस ने ही बचाया|

      जागो मित्रों...हर खबर का आंकलन करो

      http://india.1hnews.com/latest/kanda-who-had-escaped-by-helicopter/

      रविवार, 26 अगस्त 2012

      उल्टा चोर कोतवाल को ....

      पवन अवस्थी523633_337055926387137_229469282_n

      जो भी भ्रष्टाचार और देश की सुरक्षा के मुद्दे पर मुहँ खोलेगा उसको बर्बाद कर दिया जाएगा .................!!!
      इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व प्रमुख के खिलाफ सरकार ने शुरू की साजिश .....
      IB के पूर्व चीफ अजित डोभाल पर सरकार की ख़ुफ़िया निगरानी शुरू ....

      अन्ना के आंदोलन को अपने मनमाफिक मोड़ देने के बाद .. बाबा रामदेव को ट्रक भर नोटिस का पुलिंदा जारी करने के साथ अब सरकार हर उस संगठन और ब्यक्तियों के पीछे पड़ चुकी है जिस जिस ने काले घन ... घोटालों और सरकार की भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ खिलाफत करने की कोशिस की है .. अन्ना और रामदेव के बाद सल्तनते दस जनपथिया के शागिर्दों का नया शिकार बने है देश की द्वितीय नंबर की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो के पूर्व निदेश अजीत डोभाल ...!
      इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) अपने एक पूर्व निदेशक अजीत डोवाल और विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआइएफ) पर निगाह रखने में व्यस्त है, जबकि उसे राष्ट्र-विरोधी तत्वों से संबंधित सूचनाएं एकत्र करनी चाहिए.
      आइबी की रिपोर्टों के आधार पर यूपीए सरकार यह प्रचार कर रही है कि देश में चल रहे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, खास तौर पर बाबा रामदेव के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन के पीछे डोवाल और वीआइएफ की उनकी टीम का दिमाग है.
      डोवाल वीआइएफ के निदेशक हैं और उनकी टीम में आरएसएस के कई प्रमुख विचारक शामिल हैं. अप्रैल, 2011 में फाउंडेशन ने भ्रष्टाचार एवं काले धन पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया था. संयोग से संगोष्ठी के तुरंत बाद ही अण्णा हजारे का अनशन शुरू हुआ और बाबा रामदेव ने रामलीला मैदान पर अपने 4 जून के धरने की घोषणा की.
      आइबी वाले तभी से वीआइएफ पर पैनी निगाह रख रहे हैं. और इन लोगों को बखूबी पहचानने वाले डोवाल के लिए यह थोड़ी मजेदार स्थिति है.... !
      अजीत डोभाल अपने समय के एक सफल और तेजतर्रार अधिकारी रहे है इन्होने पकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ प्रायोजित जेहाद पर एक पुस्तक लिखी है ""India Pakistan and The secret Jihad '' जिसका लिंक नीचे दिया हुआ है ,,,,,,,!!!
      *** पवन अवस्थी ***
      http://www.hindu.com/br/2008/04/29/stories/2008042950791300.htm
      http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/706390/73
      http://aajtak.intoday.in/story.php/content/view/695804/Total-integration-is-still-to-be-achieved-Ajit-Doval.html
      http://www.iiss.org/about-us/intranet/training/south-asia/round-table-discussions/2006-round-table-discussions/ajit-doval/
      http://www.thehindu.com/news/national/article2687373.ece?viewImage=3

      बुधवार, 22 अगस्त 2012

      क्या असम कश्मीर की राह पर ?

      दीप मणि आज़ाद


      स्वदेश चिन्तन
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      बंगलादेशी घुसपैठिए असम को बना रहे हैं कश्मीर
      जिन जिहादी ताकतों ने निरंतर हिन्दू विरोधी हिंसक अभियान चलाकर कश्मीर को हिन्दू- विहीन करके भारत से काटने के षड्यंत्र रचे हैं, वही तत्व अब असम को भी हिन्दू-विहीन करने की खूनी मुहिम चला रहे हैं। बलात् मतान्तरण, नरसंहार, आगजनी और पलायन का जो मंजर कश्मीर घाटी में चलाया गया वही असम में दोहराया जा रहा है। असम सहित पूरे देश में बंगलादेशी घुसपैठियों की तादाद चार करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। इन बंगलादेशी घुसपैठियों से न केवल जनसंख्या का अनुपात ही बिगड़ा है अपितु असम के कश्मीर बन जाने का खतरा भी पैदा हो गया है। जहां कश्मीर में दूसरे पाकिस्तान ने जन्म ले लिया है, वहीं असम में तीसरे पाकिस्तान की जमीन इन बंगलादेशी घुसपैठियों ने तैयार कर दी है।
      असम में इस समय 38 विद्रोही गुट सक्रिय हैं। इनमें 13 गुटों पर स्थानीय और बंगलादेशी मुसलमानों का पूरा कब्जा है। मुस्लिम सिक्युरिटी काउंसिल, इस्लामिक लिबरेशन आर्मी, मुस्लिम वालंटियर फोर्स, इस्लामिक सेवक संघ, रेवोल्युशनरी मुस्लिम कमांडोज, मुस्लिम टाइगर फोर्स, यूनाइटेड रिफोरमेशन प्रोटेस्ट आफ इंडिया, हरकत उल मुजाहिद्दीन और हरकत उल जिहाद इत्यादि हथियारबंद संगठनों को पाकिस्तान और चीन से सहायता मिलती है। ये सभी संगठन बंगलादेशी मुसलमानों को सीमा पार से आने, छिपने, रहने, कारोबार करने, हिन्दुओं की जमीनों पर कब्जा करने, भारत की नागरिकता लेने और मताधिकार प्राप्त करने में मदद करते हैं।
      असम के अनेक जिले मुस्लिम-बहुल हो गए हैं। यहां हिन्दुओं का जीना असंभव बन गया है। 126 विधानसभा क्षेत्रों में 56 पर बंगलादेशियों का वर्चस्व स्थापित हो गया है। पूर्वोत्तर भारत के दूरदराज के इलाकों तक इनकी बस्तियां बढ़ रही हैं। मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर और नागालैंड भी इनके शिकंजे में आने वाले हैं। राजधानी दिल्ली सहित भारत के प्राय: सभी बड़े शहरों तक इन विदेशी घुसपैठियों ने पांव पसार लिए हैं। इनका गैर कानूनी जमावड़ा, स्थानीय मुस्लिम संगठनों का सहयोग, सरकार की देशघातक राजनीति, सुरक्षा बलों को दिए जाने वाले आधे-अधूरे आदेश और हिन्दुओं की मजबूरी लाचारी ही वर्तमान त्रासदी का आधार है। बंगलादेशी मुसलमानों द्वारा किया गया यह वर्तमान शक्ति प्रदर्शन पूर्व नियोजित है। सौ से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। 500 गांवों के 5000 घर फूंक दिए गए हैं। लगभग 5 लाख लोग 200 शिविरों में पहुंच गए हैं।
      सीआरपीएफ के इंटेलीजेंस सैल की रपट के अनुसार बंगलादेशियों की घुसपैठ ने असम का जनसांख्यिकी संतुलन बिगाड़ दिया है। इससे गैर-इस्लामिक धार्मिक समूहों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन असम को मुस्लिम राज्य बनाने के उद्देश्य से हिन्दुओं को पलायन कर जाने, इस्लाम कबूल करने अथवा परिणाम भुगतने की धमकियां देते हैं। इतना सब कुछ होते हुए भी सरकार खामोश है। सीमा पर घुसपैठ जारी है। पहले से आए घुसपैठियों की शिनाख्त नहीं हो रही। उन्हें वापस भेजने की कोई योजना नहीं है। सीमा को सील करने जैसा सशक्त कदम भी नहीं उठाया जा रहा