सोमवार, 14 जनवरी 2013

जन्मना जायते शूद्रः

ब्राह्मण निर्धारण - जन्म या कर्म से == ब्राह्मण का निर्धारण माता-पिता की जाती के आधार पे ही होने लगा है | वैदिक शास्त्रों मैं साफ़ - साफ़ बताया है
जन्मना जायते शूद्रः
संस्कारात् भवेत् द्विजः |
वेद-पाठात् भवेत् विप्रः
ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः |
जन्म से मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज (ब्रह्मण), वेद के पठान-पाठन से विप्र और जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है |
ब्राह्मण का स्वभाव
शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च |
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास | वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है । यहाँ ब्राह्मण को क्रियासे बताया है । ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है । केवल ब्राहमण के वहा पैदा होने से ब्राह्मण नहीं होता ।
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यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म ( अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान ) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर ज्ञाता" |
किन्तु हिन्दू समाज में एतिहासिक स्थिति यह रही है कि पारंपरिक पुजारी तथा पंडित ही ब्राह्मण होते हैं ।
किन्तु आजकल बहुत सारे ब्राह्मण धर्म-निरपेक्ष व्यवसाय करते हैं और उनकी धार्मिक परंपराएं उनके जीवन से लुप्त होती जा रही हैं |

 

गौरी राय की पोस्ट से साभार

1 टिप्पणी:

  1. ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परन्तप।
    कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः॥
    [भगवद गीता अध्याय 18 श्लोक 41
    The Bhagvad Gita Chapter – 18 – Shloka -41]

    भावार्थ : हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा (जन्म से नहीं) विभक्त किए गए हैं]
    O Arjuna, all the different qualities of work of the various casts in society, namely the Brahmins, Kshastriyas, Vaisyas, and Sudras are determined according to the three modes of nature [NOT BY BIRTH].

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