रविवार, 12 अगस्त 2012

पोर पोर मे घुन .... राजीव चतुर्वेदी

1992 में नागुर बार एसोसिएसन के समारोह में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन. वेंकटचलैया बिफर पड़े थे. उन्होंने कहा था --- "मैं 90 जजों को जानता हूँ जो दारू और दावत के लिए वकीलों के घर शाम को आ धमकते हैं. मैं ऐसे जजों को भी जानता हूँ जो लालच और अवैध लाभ के लिए विदेशी दूतावासों के दरवाजों पर दस्तक देते घूमते हैं." यह नहीं कि न्याय पालिका के शीर्ष से संताप का यह स्वर पहली बार फूटा हो, पहले भी लोग यही कहते 
रहे हैं और आज भी यह क्रम जारी है. "न्यायपालिका में कुछ सड़े अंडे सडांध पैदा कर रहे हैं. न्यायिक विलम्ब और भ्रष्टाचार का परष्पर रिश्ता है. ---सोली सोराबजी (तत्कालीन ) एटोर्नी जनरल ऑफ इंडिया. "भ्रष्ट जजों पर मुकदमा चलाने के लिए ट्रिब्यूनल होना चाहिए . कोई जज तब तक सफल भ्रष्ट नहीं हो सकता जब तक उसके भ्रष्टाचार को वकीलों का सक्रीय सहयोग न हो." --जे.एस.वर्मा (तत्कालीन ) मुख्य न्याधीश सुप्रीम कोर्ट. "मुंबई के न्यायाधीश ने माफिया डोन छोटा शकील से 40 लाख रुपये लिए और वह अब फरार है. पुलिस को अब इस जे.डब्लू.सिंह नामक जज की तलाश है. हम उसकी गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगायेंगे."---मुंबई उच्चन्यायालय की खंड पीठ. आज की न्यायिक व्यवस्था पर इन तमाम "ख़ास लोगों" की टिप्पणीयाँ भी उतनी प्रमाणिक और सटीक नहीं हो सकतीं, जितनी देश के "आम आदमी" की राय. क्यों नहीं देश के जन -गण -मन से पूछा जाता है कि देश की न्याय व्यवस्था कैसी है ? अदालतों के गलियारों में फूलती दम और पिचकी जेब लिए वादकारी से पूछो कि वह कैसा न्याय किस कीमत पर भोगता है ? गाँव की सिकुडती झोपडी और शहर में वकील की बड़ी होती कोठी का परस्पर समानुपातिक रिश्ता है. सुना है न्याय की देवी की आँखें बंद हैं और यह भी सुना है कि वह देखने के लिए "कोंटेक्ट लेंस" लगाती है. है कोई कोंटेक्ट
जो मुंसिफी की परीक्षा में असफल हुआ वह भी वकालत करने लगता है. फिर चालू होता है चतुरता , चापलूसी और चालाकी का अद्भुत समीकरण. इस समीकरण का एक उपकरण है राजनीति. सभी का योग बना दो तो उच्च न्यायालय का जज बनने का संयोग विकसित होता है. इस संयोग में अभिषेक मनु सिंघवी का जज बनाने का नुस्खा भी शामिल है और एस.सी.माहेश्वरी जैसी जज बनाने की कई आढतें भी हैं. बहरहाल नारायण दत्त तिवारी और अभिषेक मनु सिंघवी जैसी प्रतिभाओं की "ख़ास" सेवा कर हाई कोर्ट का जज बनेवालों की फेहरिश्त शोध का विषय है. उच्च न्यायालय में न्याय के नाम पर जो हो रहा है जगजाहिर है. किस प्रक्रिया से स्थानीय वकील उसी उच्च न्यायालय में जज नियुक्त किये जा रहे हैं जहा वह दसियों साल वकालत कर रहे थे और वकीलों की गुटबाजी का हिस्सा थे. फिर उच्च न्यायालय के अधिकाँश जजों के बेटे -बेटी, भाई-भतीजे उसी उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं और चालू होता है तेरा लड़का मेरी अदालत में और मेरा लड़का तेरी अदालत में का गारंटी फार्मूला. दूसरी ओर न्याय के इन गलियारों में कोई न्याय पाने नहीं आता यहाँ लोग मुकदमा जीतने आते हैं. 
गुजरे साल "ओ.आर.जी. मार्ग" ने एक सर्वेक्षण किया था. देश के नागरिकों ने न्यायपालिका को भी भ्रष्ट माना और अंक तालिका में भ्रष्टाचार के लिए 5.4 अंक दिए.बेहमई की विधवाएं न्याय की गुहार आज तक कर ही रहीं है और फूलन देवी इस बीच दो बार सांसद हो कर ससम्मान संसदीय भाषा में स्वर्गवासी भी हो गयी. दस्यु सरगना मलखान सिंह सौ से अधिक मुकदमों में "बाइज्जत बारी" हो गया. मुकदमा चलाते-चलाते लाखू भाई पाठक मर गए और नरसिम्हा राव दोष मुक्त हो गए. भोपाल गैस काण्ड का क्या हश्र हुआ ? मुंबई के एक जज जे.डब्लू. सिंह के छोटा शकील से रिश्ते, उन्हें 40 लाख का लाभ दे देते हैं, बदले में जज साहब उस गिरोह के कुछ सदस्यों को जमानत दे देते हैं.
अदालतों की शब्दावली में "पैरोकार" बड़ा रहस्यमय शब्द है. जज साहब के सामने उनका पेशकार जब हाथ नीचे बढ़ा कर मुन्सीयों /वकीलों /वादकारियों से हाथ में जो लेता है उसे "पैरोकारी" और "कार्यवाही" कहा जाता है. यह "संज्ञेय अपराध" जज साहब की निगाहों के सामने जब हो रहा होता है तब वह रंगमंच के किसी मजे पात्र के जैसे जज साहब किसी फाइल को पढने का कार्यक्रम करने लगते हैं. दरअसल पैरोकारी से ही पेशकार शाम को मेंम साहब के पास तरकारी पहुंचाता है. 26 जनवरी 1997 को हमीरपुर (उत्तर प्रदेश) में वहां के विधायक अशोक चंदेल ने सरेबाजार दो अबोध बच्चों सहित पांच लोगों को सरे बाज़ार गोलियों से भून दिया. हामीरपुर का अधिकार क्षेत्र इलाहाबाद उच्चन्यायालय को है जहाँ अशोक चंदेल की गिरफ्तारी रोकने की याचिका जब खारिज कर दी गयी तो उसने लखनऊ में "पैरोकारी" की और इसी पैरोकारी के प्रताप से उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के पीठासीन एक जज ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. इन जज साहब ने 5 बार अशोक चंदेल की गिरफ्तारी पर रोक लगाई. जब पाप का घड़ा भर गया तो मुख्य न्यायाधीश को अपने इस साथी जज के आचरण पर संदेह हुआ और अशोक चंदेल की गिरफ्तारी के आदेश हुए. 23 अक्टूबर 98 को अशोक चंदेल ने हमीरपुर के अतिरिक्त जिला जज आर.बी.लाल की अदालत में समर्पण किया. "पैरोकारी" का प्रताप यहाँ भी काम आया. जज आर.बी लाल ने बिना दूसरे पक्ष को सुने, बिना अभियुक्तों को जेल भेजे तत्काल जमानत देदी. आर.बी.लाल नामक इस जज को इसी हरकत के कारण 30 अक्टूबर 1998 को उच्चन्यायालय ने निलंबित कर दिया.
निर्मल यादव पंजाब एंड हरियाण उच्च न्यायलय की जज थीं उन पर आरोप यह था कि रिश्वत के लिए 15 लाख रूपए की पोटली उनके यहाँ भेजी गयी लेकिन घूस लेकर गया कर्मचारी भूलवश मिलते- जुलते नाम वाली एक अन्य महिला जज निर्मल जीत कौर के यहाँ 13 अगस्त' 08 को घूस दे आया. याह घूस हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल ने भिजवाई थी. न्यायमूर्ति निर्मल जीत कौर ने रिपोर्ट दर्ज करवा दी जिसकी विवेचना CBI ने की और अभियुक्त जज निर्मल यादव व अन्य के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल कर दिया . इस बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश ने जज निर्मल यादव की विभागीय जांच भी करवाई. यह जांच इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच. एल. गोखले की अध्यक्षता में हुई. इस जांच समिति ने भी उनको भ्रष्टाचार का दोषी पाया और पड़ से हटाने की सिफारिश की. लेकिन फिर रहस्यमय तरीके से भारत के अटॉर्नी जनरल मिलन बनर्जी ने विधि मंत्रालय को यह मुकदमा वापस लेने की सलाह दी और आज कल यही निर्मल यादव उत्तराखंड उच्च न्यायलय की पीठासीन जज हैं....अब समझ लीजिए न्याय कैसा होता होगा ? " ----राजीव चतुर्वेदी

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