शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
सोचिए ज़रा !
देश के ६६ वे स्वतंत्रता दिवस एवं ६५ वी वर्षगाँठ को धरती से लेकर अन्तरिक्ष तक सभी ने सर्वत्र बड़े धूम धाम से मनाया .....इस दौरान बहुत कुछ सुना, लिखा और देखा गया ...! लालकिले की प्राचीर से भी देश की तमाम बीमारियाँ गिनाई गयीं लेकिन उनकी दवा और इलाज के तरीके पर चुप्पी छाई रही .....इन सबके बीच देश के आर्थिक विकास में वृद्धि कैसे हो इस को लेकर चिंता जरुर व्यक्त की गयी, क्यों न हो आखिर कभी सात समंदर पार अमेरिका से बराक ओबामा गरियाते हैं तो कभी देश के अन्दर ही रतन टाटा जैसे उद्धयोगपति आर्थिक विकास में वृद्धि के उपाय लागू करने के वादों को पूरा करने का दबाव बनाते हैं ...! ऐसा नहीं है कि पिछले ६५ वर्षों में कोई आर्थिक विकास नहीं हुआ हो... वास्तव में आर्थिक विकास तो हुआ है लेकिन देश की आम जनता का नहीं बल्कि १० से २० प्रतिशत उद्धयोगपतियों का, सत्तासीन राजनेताओं का और माफियाओं का ...!
योजना आयोग गरीबी की नयी-नयी परिभाषाएं गढ़ रहा है ....३२ रुपये रोज कमाने वाला गरीब नहीं माना जायेगा......यह कैसा आर्थिक विकास है...? यह समझ से परे है, क्योंकि घर में खाने को दो वक़्त की रोटी भले न जुटाई जा सके लेकिन हर हाथ में मोबाईल देने की बात की जाती है .....! पिछले ६५ वर्षों में इस आर्थिक विकास में हम अभी तक देश के पूरे लोगों को बुनियादी सुविधाए ....बिजली ,पानी, मकान और सड़क तक उपलब्ध नहीं करा सके हैं.....हमारे किसान आत्महत्या कर रहे हैं .....शिक्षा, बेरोजगारों की संख्या बढ़ा रही है ....जो पहले गरीब थे वे आज और गरीब तथा अमीर और अमीर होते जा रहे हैं......यह खाई और अधिक बढ़ती जा रही है.....तो ऐसे आर्थिक विकास में वृद्धि करने से आखिर क्या लाभ ...और किसको लाभ होगा ....?
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