गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

क्या नोबल पुरस्कार विकसित देशों का छलावा है ?

कैलाश सत्यार्थी को नाबेल पुरस्कार मिलने पर गर्व भले की कर लीजिये लेकिन यह किसी भी प्रकार से देश केहित में नही है. विकासशील देशों का विकास रोकने के लिए उनके देश के कुछ लोगों को ऐसे पुरस्कार देना विकसित देशों की रणनीति का एक हिस्सा है.विकसित देशों की पैसे वाली विदेशी संस्थाए भारत या अन्य विकासशील देशो के विकास में बाधा डालने वाले हर व्यक्ति और हर NGO को पैसा देने या पुरस्कार देने को तो तुरंत तैयार हो जाते हैं लेकिन किसी समस्या का हल करने में लगे लोगों को मदद देने को कभी उपलब्धनहीं होते हैं.
कैलाश सत्यार्थी ने वाराणसी के पास भदोई में कालीन की फैक्ट्रियों में काम करने वाले बच्चो के लिए आवाज उठाकर प्रशिद्धि पाई थी. कालीन उद्योग में गरीब मुस्लिम परिवार के बच्चे ही ज्याद काम करते थे. बच्चों को मुक्त कराने के नाम पर फैक्ट्रियों को बंद करवाया लेकिन उन बच्चो का क्या हुआ कभी उन्होंने जान्ने की कोशिश भी नहीं की. ऐसे ही उन्होंने अपने वालेंटियर के साथ गोंडा में एक सर्कस पर हमला कर उसे बंद करवाया और बच्चों को मुक्त कराने का दावा किया. इनसे पूँछिये कि - क्या सर्कस का कलाकार बन्ने की ट्रेनिंग क्या 18 साल की उम्र के बाद दी जा सकती है.
अभी कल को कोई तथाकथित समाजसेवी खडा हो जाए कि - फिल्मो में भी बच्चों से काम कराना बाल मजदूरी है तो क्या 18 साल के युवा से 4 साल के बच्चे का रोल करायेगे ? बाल मजदूर बाली फैक्ट्री के मालिक को तो तंग किया जाएगा लेकिन किसी अनाथालय या बच्चो की स्किल डेवलपमेंट के लिए कोई मदद नही दी जायेगी. क्या कैलाश सत्यार्थी ने फैक्ट्रियों और सर्कस के मालिकों को तंग करने के अलावा कभी ऐसा काम किया है जिससे गरीब बच्चों और उनके माँ -बाप को दो वक्त का खाना मिल सके.
विकसित देश ऐसे पुरस्कारों के नाम पर विकाशशील देशों के विकास में बाधा डालने का ही काम करते हैं कभी मदद नही करते. अभी आप किसी फैक्ट्री के पल्यूशन के खिलाफ उसको बंद कराने के लिए आवाज उठाइये आपको पैसा और अवार्ड मिलने शुरू हो जायेंगे लेकिन यदि कोई व्यक्ति या संस्था जो पल्युसन कंट्रोल इक्विपमेंट बनाता है उसको किसी तरह की मदद नहीं की जाती है. डैम का बिरोध करने वालों पर पैसे की बरसात हो आयेगी लेकिन डैम के लिए तकनीक मांगोगे तो नहीं मिलेगी.
कैलाश सत्यार्थी जैसे जाने कितने ही समाजसेवी, समाजसेवा के नाम पर विकास में बाधा डालते हुए विदेशों से पैसा और पुरस्कार पा रहे हैं और वास्तव में काम करने वाले लोगों को कोई मदद नहीं मिलती. पंजाब में भी पल्यूशन को लेकर फैक्ट्रियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले "संत सींचेवाल" को तो बहुत सम्मान और इनाम दिए गए हैं , लेकिन उद्ध्योगों का पल्यूशन ख़तम करने की तकनीक डेवलप करने वालों को आजतक किसी भी संस्था ने किसी भी तरह की कोई मदद नहीं की है.
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